शिमला: शुक्रवार को राजधानी शिमला में आंगनबाड़ी, आशा व मिड-डे मील वर्कर ने अपनी विभिन्न मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन किया. संयुक्त समिति के आह्वान पर 7-8 अगस्त 2020 को दो दिवसीय हड़ताल के तहत हिमाचल प्रदेश के ग्यारह जिलों के जिला मुख्यालयों में सीटू से संबंधित वर्कर्ज यूनियन ने ये प्रदर्शन किया.
इस दौरान वर्कर ने केंद्र व प्रदेश सरकार को चेताया कि अगर आईसीडीएस, मिड-डे मील व नेशनल हेल्थ मिशन जैसी परियोजनाओं का निजीकरण किया गया व आंगनबाड़ी, मिड-डे मील व आशा वर्कर को नियमित कर्मचारी घोषित न किया गया तो देशव्यापी आंदोलन और तेज होगा.
सीटू से संबंधित आंगनबाड़ी वर्कर महासचिव हिमी कुमारी ने कहा कि अखिल भारतीय हड़ताल के आह्वान के तहत हिमाचल प्रदेश में दर्जनों जगह धरने- प्रदर्शन किए गये, जिसमें प्रदेशभर में हजारों योजनाकर्मियों ने भाग लिया.
उन्होंने केंद्र सरकार से वर्ष 2013 में हुए भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार आंगनबाड़ी, मिड-डे मील व आशा कर्मियों को नियमित करने की मांग की है. उन्होंने आंगनबाड़ी व आशा कर्मियों को हरियाणा की तर्ज पर वेतन और अन्य सुविधाएं देने की मांग की.
न्यूनतम वेतन 8250 रुपये लागू करने की मांग
उन्होंने मिड-डे मील वर्करज के लिए हिमाचल प्रदेश का न्यूनतम वेतन 8250 रुपये लागू करने की मांग की है. उन्होंने योजनाकर्मियों के लिए पेंशन, ग्रेच्युटी, मेडिकल व छुट्टियों की सुविधा लागू करने की भी मांग की. उन्होंने केंद्र सरकार को चेताया है कि वह इन योजनाओं के निजीकरण का ख्याली पुलाव बनाना बंद करे.
देश के अंदर चलने वाली सभी योजनाओं से देश के लगभग एक करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है जिसमें से नब्बे प्रतिशत महिलाएं हैं. उन्होंने हैरानी जताई है कि महिलाओं की सबसे ज्यादा संख्या योजना कर्मियों के रूप में है व यह सरकार उनका सबसे ज्यादा आर्थिक शोषण कर रही है. केंद्र सरकार लगातार इन योजनाओं को कमजोर करने की कोशिश कर रही है.
उन्होंने कहा कि इन सभी योजना कर्मियों को महीने का 2300 से लेकर 6300 रुपये वेतन दिया जा रहा है, जोकि देश व प्रदेश का न्यूनतम वेतन भी नहीं है. यह सरकार शिक्षा के अधिकार के नाम पर पच्चीस बच्चों से नीचे संख्या होने पर हर दो वर्करज में से एक की छंटनी कर रही है.
बारह महीने का वेतन लागू करने की मांग
उन्होंने मांग की है कि मल्टीपर्पस वर्कर का काम मिड-डे मील कर्मियों से ही करवाया जाए व उनके वेतन में बढ़ोतरी की जाए. उन्होंने मांग की है कि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के वर्ष 2019 के निर्णय को तुरन्त लागू करके दस महीने के बजाए बारह महीने का वेतन लागू किया जाए. यूनियन ने आंगनबाड़ी कर्मियों को वर्ष 2013 का नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत बकाया राशि का भुगतान करने की मांग की है.
इसके अलावा यूनियन ने ये मांग भी की है कि प्री-नर्सर्री कक्षाओं का जिम्मा आंगनबाड़ी वर्करज को दिया जाए, क्योंकि वे काफी प्रशिक्षित कर्मी हैं. इसकी एवज में उनका वेतन बढ़ाया जाए व उन्हें नियमित किया जाए.
उन्होंने कहा कि कोविड-19 के दौरान आशा कर्मियों ने फ्रंटलाइन वॉरियर की तरह कार्य किया है, लेकिन उन्हें इन सेवाओं व सामान्य परिस्थितियों में भी उनकी भूमिका की एवज में केवल शोषण ही नसीब हुआ है. आशा वर्करज की सेवाओं के मध्यनजर उन्हें हरियाणा की तर्ज पर वेतन व सुविधाएं मिलनी चाहिए.
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