शिमला: बीजेपी ने जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान दिवस हिमाचल प्रदेश के सभी 68 विधानसभा क्षेत्रों में मनाया. 23 जून 1953 को रहस्यमई परिस्थितियों में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु हो गई थी. प्रदेश में मुख्य कार्यक्रम प्रदेश बीजेपी कार्यालय दीप कमल चक्कर में आयोजित किया गया. इस अवसर पर भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं बलिदान दिवस के संयोजक संजीव कटवाल मौजूद रहे.
संयोजक संजीव कटवाल ने बताया कि सभी कार्यकर्ताओं ने अपने अपने घरों में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के चित्र पर माला अर्पण एवं पुष्पांजलि की. संजीव कटवाल ने कहा कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को कोलकाता में हुआ था. उनके पिता आशुतोष मुखर्जी विख्यात शिक्षाविद, बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे.
उन्होंने बताया की डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1917 में दसवीं की परीक्षा उतीर्ण 1923 में लॉ की उपाधि प्राप्त कर विदेश चले गए. 1926 में इंग्लैंड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे. इसके बाद 8 अगस्त 1934 को 33 वर्ष की अल्पायु में कोलकाता विश्वविद्यालय के सबसे कम आयु के कुलपति बने. उन्होंने बताया कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1939 में राजनीति में प्रवेश किया और उन्होंने कांग्रेस की तुष्टीकरण राजनीति का खुलकर विरोध किया.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने गैर कांग्रेसी हिंदूओं की मदद से कृषक प्रजा परिषद पार्टी से मिलकर प्रगतिशील गठबंधन का निर्माण किया और इस सरकार में मंत्री भी बने. उन्होंने कहा कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी सावरकर के राष्ट्रवाद के प्रति आकर्षित हुए और हिंदू महासभा में सम्मिलित हुए.
संयोजक संजीव कटवाल ने बताया कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी धर्म के आधार पर विभाजन के कट्टर विरोधी थे. उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी और सरदार पटेल के आग्रह पर अगस्त 1947 को स्वतंत्र भारत में वे गैर कांग्रेसी मंत्री के रूप में शामिल हुए और उद्योग मंत्री बने और उन्हें अपने मंत्रिमंडल कार्यकाल में चितरंजन मे रेल इंजन का कारखाना, विशाखापट्टनम में जहाज बनाने का कारखाना एवं बिहार में खाद का कारखाना स्थापित करवाया. उनके सहयोग से ही हैदराबाद निजाम को भारत में विलीन होना पड़ा.
कटवाल ने बताया कि राष्ट्रहित की प्रतिबद्धता और उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण उन्हें मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया और अपनी पार्टी बनाई अक्टूबर 1951 में भारतीय जनसंघ का उदय हुआ और उनके पहले संस्थापक अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी बने. डॉक्टर मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते थे. जम्मू कश्मीर के दो विधान दो निशान और दो प्रधान के सख्त विरोधी थे.
वह जम्मू कश्मीर की धारा 370 का कड़ा विरोध करते थे और उन्होंने जम्मू की प्रजा परिषद पार्टी से मिलकर आंदोलन भी खड़ा किया. 1952 में जम्मू में उन्होंने विशाल रैली में संकल्प लिया कि तत्कालीन नेहरू सरकार को चुनौती दी और कहा था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त करवा लूंगा या आपन जीवन बलिदान कर दूंगा.
8 मई 1953 को तत्कालीन विदेश मंत्री माननीय अटल बिहारी वाजपेई वैद्य गुरु दत्त डॉक्टर बर्मन आदि को लेकर जम्मू के लिए कूच किया, लेकिन जम्मू-कश्मीर के प्रवेश द्वार माधोपुर बैरियर पर उन्हें गिरफ्तार कर दिया. इसके बाद 40 दिन तक जेल में बंद रखा. 23 जून 1953 को रहस्यमई परिस्थितियों में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु हो गई.
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