शिमला: हिमाचल उपचुनावों में मंडी संसदीय सीट पर 12,661 लोगों के मत नोटा के पक्ष में गए हैं. इससे साबित होता है कि लोग भाजपा से तो नाराज हैं ही, कांग्रेस से भी कोई खास खुश नहीं है. मंडी संसदीय सीट से कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिभा सिंह ने 7490 वोटों से जीत हासिल की. जबकि मंडी जिले में ही 8195 लोगों ने नोटा दबाया. संसदीय क्षेत्र में 1.7 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का प्रयोग किया.
आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो मंडी के नौ हलकों में 8195, कुल्लू के चार हलकों में 2514,, भरमौर में 379, लाहौल स्पीति में 120, रामपुर, किन्नौर में 518 लोगों ने नोटा दबाया. मंडी में नाचन में 1959 मतदाताओं ने और बल्ह में 1647 मतदाता नोटा दबाया है, जबकि इन दोनों हलकों से विस चुनावों में सबसे अधिक समर्थन सरकार को मिला था. इसके अलावा मंडी सदर में 925, जोगिंद्रनगर में 807, द्रंग में 572, सरकाघाट में 565, करसोग में 463 और सराज में 374 मतदाताओं ने नोटा दबाकर नाराजगी जाहिर की. इसी तरह कुल्लू जिले में मनाली में 476, कुल्लू में 993, बंजार में 513, आनी में 352 यानी 2514 मतदाताओं ने नोटा दबाया, जबकि भरमौर में 379, लाहौल स्पीति में 120 और रामपुर किन्नौर में 518 ने इसका प्रयोग किया है. इसके अलावा जुब्बल-कोटखाई में 176, अर्की विधानसभा क्षेत्र में 1626, फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनावों में 389 लोगों ने नोटा का प्रयोग किया.
उपचुनावों की घोषणा के बाद ही चुनाव प्रचार के दौरान प्रदेश के कई संगठनों ने लोगों से अपील करते हुए मतदान के समय नोटा प्रयोग करने को कहा था. इनमें देवभूमि क्षत्रिय संगठन, सवर्ण मोर्चा और हिमाचल प्रदेश सामान्य वर्ग संयुक्त मोर्चा भी शामिल है. इन संगठनों ने सवर्ण आयोग का गठन न करने पर उपचुनाव में नोटा दबाने की अपील की थी. मंडी क्षेत्र में 70 प्रतिशत आबादी सामान्य वर्ग की है. 12,661 लोगों ने द्वारा नोटा का प्रयोग सरकार को एक चेतावनी की तरह है.
मंडी हलके में आठ हजार से अधिक लोगों द्वारा नोटा का प्रयोग करके यह बात साबित कर दी थी कि जमीनी स्तर पर कार्य न होने से लोग नाराज हैं. इसके अलावा सामान्य वर्ग से जुड़े लोगों ने भी उनकी लगातार हो रही अनदेखी पर सरकार को दी चेतावनी के अनुरूप ही कार्य किया है. हैरानी की बात यह है कि पोस्टल बैलेट में भी 35 ने नोटा पर मुहर लगाई.
ये भी पढ़ें: अधूरे विकास कार्यों को पूरा करना मेरी प्राथमिकता: सांसद प्रतिभा सिंह
लाहौल स्पीति में भी कुछ पंचायतों में युवाओं द्वारा चुनाव बहिष्कार की बातें सामने आ रही हैं. युवा जिले में भारी संख्या में लगाई जा रही जल विद्युत परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं. इन लोगों का कहना है कि जल विद्युत परियोजनाओं के लिए नदियों के बहाव के साथ छेड़खानी की जा रही है. इसके अलावा जमीन के अंदर से सुरंगों का निर्माण भी किया जा रहा है. जिसके कारण यहां भूस्खलन जैसी घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही. यहां के लोग लगातार जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण का विरोध कर रहे हैं, लेकिन लंबे समय से विरोध के बावजूद सरकारें स्थानीय लोगों की बात को अनसुना कर रही हैं.
कई वर्षों से नौकरी की आस लगाए बैठे करूणामूलक परिवारों ने चुनावों में अपना रोष व्यक्त करने की बात कही थी. संघ के अध्यक्ष अजय कुमार ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि करीब 4500 परिवार प्रदेश भर में नौकरी की आस लगाए बैठे हैं, लेकिन सरकारें इनकी समस्या का कोई हल नहीं निकाल रही है. चुनावों में सरकार के विरोध या फिर नोटा के माध्यम से संघ ने प्रदेशवासियों से अपील की थी.
ये भी पढ़ें: क्षेत्रवाद के नारे को छोड़कर मिलकर विकास कार्य करें सभी नेता: विक्रमादित्य सिंह
नोटा बेशक जनता के भीतर छिपे आक्रोश और निराशा का ही प्रतीक है. 2009 में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने संबंधी अपनी मंशा से अवगत कराया था. 2013 में सुप्रीम कोर्ट के दिये गए एक आदेश के बाद चुनावों में नोटा का प्रयोग शुरू हुआ. एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि जनता को मतदान के लिये नोटा का भी विकल्प उपलब्ध कराया जाए. नोटा के तहत ईवीएम मशीन में नोटा का गुलाबी बटन होता है.
इसके अलावा अगर मतदाता को उम्मीदवार उपयुक्त नहीं लगते हैं तो वो नोटा का बटन दबाकर अपना विरोध दर्ज करा सकता है. नोटा का मतलब नन ऑफ द अबव होता है. इस आदेश के बाद भारत नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने वाला विश्व का 14वां देश बना है. चुनाव आयोग यह विकल्प उपलब्ध करवाते समय यह स्पष्ट किया था कि नोटा के मत गिने तो जाएंगे पर इसे रद्द मतों की श्रेणी में रखा जाएगा. इस तरह से साफ ही था कि नोटा का चुनाव के नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ेगा. भारत, ग्रीस, युक्रेन, स्पेन, कोलंबिया और रूस समेत कई देशों में नोटा का विकल्प लागू है.