शिमला: देश के लिए सामरिक महत्व की भानुपल्ली-बिलासपुर-बेरी-लेह रेल लाइन (Bhanupally Bilaspur Beri Leh rail line) के रास्ते की एक और अड़चन दूर (Beri Leh rail line gets forest clearance) हो गई है. केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 56 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि की फॉरेस्ट क्लीयरेंस रेल विकास निगम के नाम कर दी है. यह मंजूरी उक्त रेल लाइन के दूसरे हिस्से यानी 23.9 किमी से 38.3 किमी के दायरे में होगी. यह क्षेत्र हिमाचल के बिलासपुर फॉरेस्ट डिवीजन (Bilaspur Forest Division) के तहत आता है.
अधिसूचना के अनुसार केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से कुल 56.36 हेक्टेयर वन भूमि की डायवर्जन की मंजूरी मिली है. इसमें से 48.39 हेक्टेयर भूमि की स्थिति ओपन सरफेस एरिया के तहत है और बाकि 7.97 हेक्टेयर हिस्सा सुरंग के रूप में है. इस संदर्भ में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने सारी औपचारिकताएं पूरी कर दी हैं. वन भूमि में पेड़ों के कटान को न्यूनतम रखने की बात कही गई है. मंजूरी में शर्त शामिल की गई है कि 12,096 से अधिक पेड़ नहीं काटे जाएंगे. कैंपा कोष के लिए 54 लाख से अधिक की राशि तय हुई है. अन्य शर्तें केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के तय फॉर्मेट के अनुसार हैं. इन शर्तों में वनस्पतियों और वन्य प्राणियों की रक्षा सहित वन भूमि पर श्रमिक शिविर किसी भी हालत में स्थापित न करने की शर्त है.
बता दें कि इस रेल लाइन के कार्य को 2025 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. रेल लाइन में 26 छोटे-बड़े पुल और 20 टनल का भी निर्माण किया जाएगा. 6753. 42 करोड़ रुपए से बनने वाली इस रेल लाइन का पहले चरण के तहत 20 किमी तक का कार्य प्रगति पर है. इसके अलावा अगले चरण के लिए 20 से 34 किमी के लिए भूमि अधिग्रहण की सभी औपचारिकताओं को भी पूरा कर लिया गया है.
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रेल लाइन में जिस बड़ी टनल का निर्माण होना है, उनमें टी-10 टनल भी शामिल है. इसकी लंबाई 3800 मीटर होगी. इसके अलावा टी-8 टनल की लंबाई भी 2900 मीटर होगी. डीपीआर के अनुसार पुलों, टनलों, सिविल कार्य, इलेक्ट्रिकल, सिग्नलिंग और टेलीकम्यूनिकेशन, भूमि अधिग्रहण और अन्य कार्यों पर करीब 99,000 करोड़ रुपए खर्च होंगे. हिमाचल और लद्दाख में 1100-1100 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा. इसमें 26 फीसदी वन भूमि भी शामिल है. भूमि अधिग्रहण पर 11.5 हजार करोड़ रुपए का खर्च आएगा.
रेललाइन में चार खंड होंगे: पहला खंड बैरी से मंडी, दूसरा मंडी से मनाली, तीसरा मनाली से उपशी और चौथा उपशी से लेह तक का होगा. रेल विकास निगम लिमिटेड के तहत बन रही परियोजना में पूर्व में 20 किमी तक की मंजूरी मिली थी. इस परियोजना में 20 किमी तक लंबी सुरंगों के निर्माण के लिए पहले से ही अनुबंध दिए जा चुके हैं. परियोजना के पहले चरण में राज्य के अधीन जो भी भूमि थी उसका अधिग्रहण करके प्रभावित परिवारों को 40 करोड़ रुपया मुआवजा दिया जा चुका है.
वर्ष 2017 में शुरुआती चरण में राज्य सरकार ने भूमि अधिग्रहण के लिए अपने स्तर पर 12 करोड़ रुपए जारी किए थे. वर्ष 2016 में केंद्र सरकार के रेल बजट में उक्त रेल मार्ग के लिए 190 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था. सामरिक महत्व की इस सुरंग से भारतीय सेना को सालभर लेह तक रसद पहुंचाने में कोई दिक्कत नहीं आएगी. इसके अलावा इस रेल लाइन से अलग सेना के लिए लेह में चीन सीमा (border with china in himachal) तक करीब 13 किलोमीटर ट्रैक भी बिछाया जाएगा. यह ट्रैक लेह के शेशरथांग के करीब नदी के किनारों से होकर बिछाया जाएगा. रेल लाइन के मुख्य ट्रैक पर भी शेशरथांग समेत पांच स्टेशन ऐसे होंगे, जहां सेना को सामान उतारने-चढ़ाने की विशेष सुविधा दी जाएगी.
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