शिमला: बाबा भलकू के द्वारा हिमाचल प्रदेश के लिए दिए गए योगदान आम जनता तक पहुंचाने के लिए हिमालय साहित्य संस्कृति एवं पर्यावरण मंच द्वारा साहित्य यात्रा और संवाद का आयोजन किया जा (Baba Bhalku Sahitya Yatra in Shimla) रहा है. अंग्रेजी हुकूमत में भी अपनी प्रतिभा को मनवाने वाले बाबा भलकू की स्मृति में शिमला-कालका ट्रैक पर रेलवे में सफर के दौरान कहानी, संस्मरण, कविता व संगीत के सत्रों के साथ उन्हें याद करेंगे. जिसमें स्टेशनों के नाम से कहानी, संस्मरण, कविता और संगीत के सत्र तय किए गए हैं.
![Baba Bhalku](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/16094226_bhalku.jpg)
13 अगस्त को यह यात्रा शिमला रेलवे स्टेशन से सुबह 10:40 बजे शुरू की गई और बड़ोग में 1:40 बजे पहुंची. दोपहर के भोजन के बाद लेखक दूसरी रेल से 2:17 बजे शिमला के वापस चले. इस दौरान भी कई साहित्यिक संगोष्ठियां आयोजित की गई. शिमला स्टेशन पर यह यात्रा शाम 5:30 बजे पहुंची. वहीं, 14 अगस्त को लेखक भलकू के पुश्तैनी गांव चायल से आठ किलोमीटर दूर झाजा देखने जाएंगे, जहां पर गांव में लेखक, पंचायत और स्थानीय लोगों के साथ भी साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन किया जाएगा और बाबा भलखू के परिजनों से मुलाकात भी की जाएगी.
![Baba Bhalku Sahitya Yatra](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/16094226_lekhak.jpg)
हिमालय मंच के अध्यक्ष एवं प्रख्यात लेखक एसआर हरनोट ने कहा कि विश्व धरोहर के रूप में विख्यात शिमला-कालका रेल में हिमालय साहित्य, संस्कृति एवं पर्यावरण मंच द्वारा 13 व 14 अगस्त को चौथी भलखू स्मृति साहित्य यात्रा का आयोजन राष्ट्रीय स्तर पर किया जा रहा है, जिसमें 40 लेखक भाग ले रहे हैं. इस साहित्य यात्रा में देश भर से 13 लेखक भी शामिल हैं. इस बार यह संगोष्ठी दो दिनों की होगी.
![Baba Bhalku Sahitya Yatra in Shimla](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/hp-sml-shimlabababalkhuyatra-avb-hp10009_13082022162956_1308f_1660388396_927.jpg)
वहीं, दूसरे राज्य से आए हुए कहानीकार और साहित्यकारों ने इस यात्रा में हिस्सा लिया और कहा कि बाबा भलकू के जीवन के बारे में पूरी दुनिया को पता होना चाहिए. उन्होंने कहा कि आज से पहले भी वो कई बार शिमला आए, पर बाबा भलकू के बारे में पता नहीं था. उन्होंने कहा कि आज इस यात्रा से उन्हें मौका मिला है उन के बारे में जानने का. उन्होंने किस तरह का योगदान दिया है, जहां पर बड़े-बड़े इंजीनियरों ने आपने हाथ खड़े कर दिए वहीं, बाबा भलकू ने अपनी लाठी से पूरा रेलवे का सर्वे कर दिया. ऐसे महान व्यक्ति के बारे में जानकारी लेना और दुनिया को उन के बारे में बताना बहुत जरूरी है.
![shimla](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/16094226_shimla.jpg)
बता दें कि कालका-शिमला रेलवे हैरिटेज ट्रैक का इतिहास अपने आप में बेहद खास है. साल 1903 में बना यह रेलवे ट्रैक कालका से शिमला का जोड़ता है. ब्रिटिश हुक्मरानों ने ब्रिटिश शासन काल की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला को जोड़ने के लिए इस तरह का निर्माण करवाया. सर्पीली पहाड़ियों के बीच से ट्रेन शिमला पहुंचाना बिलकुल आसान नहीं था. सोलन के समीप इंजीनियर बड़ोग टनल के दो छोर को नहीं मिला पा रहा था. जिस वजह से रेलवे ट्रैक का काम रुक गया था. इससे नाराज होकर अंग्रेज सरकार ने इंजीनियर पर 1 रुपये का जुर्माना लगाया था. असफलता और जुर्माने से खुद को अपमानित महसूस कर कर्नल बरोग ने आत्महत्या कर ली थी.
![Baba Bhalku Sahitya Yatra](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/16094226_baba.jpg)
इसके बाद टनल को बनाने का काम मस्तमौला बाबा भलकू को (Biography of Baba Bhalku) सौंपा गया. हैरत की बात है कि बाबा भलकू अपनी छड़ी के साथ पहाड़ और चट्टानों को ठोक ठोक कर स्थान को चिन्हित करते चले गए और अंग्रेज अधिकारी उनके पीछे चलते रहे. खास बात यह रही कि बाबा भलकू का अनुमान सौ फीसदी सही रहा. बाबा भलकू की वजह से सुरंग के दोनों छोर मिल गए. इस तरह सुरंग नंबर 33 पूरी हुई. साथ ही रेलवे के इतिहास में अमर हो गया बाबा भलकू का नाम. शिमला गजट में दर्ज है कि ब्रिटिश हुकूमत ने बाबा भलकू को पगड़ी और मेडल देकर सम्मानित किया था. सोलन जिला के मशहूर पर्यटन स्थल चायल के समीप झाजा गांव के रहने वाले थे.
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