शिमला: आयुर्वेद भारत की सबसे पुरानी औषिधि है, जिससे बड़ी से बड़ी बिमारी को ठीक किया जाता रहा है, लेकिन बदलते समय के साथ अंग्रेजी दवाइयों के आने से आयुर्वेद की पहचान फीकी पड़ती जा रही है. कोरोना काल मे आयुर्वेद काफी कारगर साबित हुआ है. कोरोना से ग्रसित मरीजों को आयुर्वेदिक काढ़ा व आयुर्वेदिक इलाज देने से भी मरीजों को फर्क पड़ा इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता. आयुर्वेद विभाग के सेवानिवृत्त ओएसडी व रजिस्ट्रार डॉ. के.के. शर्मा ने बताया आयुर्वेद शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है, जिससे बीमारी से लड़ने में सहायता मिलती है.
शर्मा ने बताया कि आयुर्वेद कोरोना से लड़ने मे भी सक्षम है. उनका कहना था कि यदि 10 व्यक्ति कोरोना संक्रमित के संपर्क में आ गए हो तो यह आवश्यक नहीं सभी को कोरोना हो जाए. जिसकी इम्युनिटी कमजोर होगी वह कोरोना से ग्रसित होगा, जबकि जिसकी इम्युनिटी मजबूत होगी वह इस संक्रामक बीमारी से बच जाएगा. उन्होंने कहा कि कोरोना काल में आयुर्वेद विभाग ने 7 लाख 50 हाजर काढ़े के पैकेट आईजीएमसी समेत उप सब सेंटरों में दिए गए.
आयुर्वेद की गंभीर बीमारियों से भी लड़ने सक्षम है. मधुमेह से ग्रसित मरीजों के लिए भी आयुर्वेद में बहुत अच्छा इलाज है. मधुमेह से ग्रसित को अन्य बीमारियां भी होने लगती है, लेकिन आयुर्वेदिक इलाज से मधुमेह तो नियंत्रित रहता है और अन्य बीमारी होने की संभावना भी कम हो जाती है. हिमाचल में अभी आयुर्वेद को अधिक बढ़ावा नहीं मिल पाया. यहां अभी भी आयुर्वेद को अपनी पहचान बनाने में काफी संघर्ष करना पड़ रहा है, जबकि स्वास्थ्य मंत्री डॉ. राजीव सैजल भी आयुर्वेद के जानकार हैं.
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