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आ गई मां रेणुका और भगवान परशुराम के मिलन की घड़ी, पिता के आदेश पर कर दिया था माता बध! - मां -बेटे के मिलन का प्रतीक मेला

7 नवंबर से मां-बेटे के मिलन का प्रतीक अंतरराष्ट्रीय श्री रेणुका जी मेला शुरू होने जा रहा है. ये मेला प्रदेश के प्राचीन मेलों में से एक है और हर साल ये कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक उत्तर भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान श्री रेणुका जी में मनाया जाता है.

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Published : Nov 6, 2019, 12:23 PM IST

Updated : Nov 6, 2019, 1:19 PM IST

नाहन: आखिर मां-बेटे के मिलन की वो घड़ी आ गई जिसका साल भर सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है. सात नवंबर से मां -बेटे के मिलन का प्रतीक अंतरराष्ट्रीय श्री रेणुका जी मेला शुरू होने जा रहा है.

ये मेला प्रदेश के प्राचीन मेलों में से एक है और हर साल ये कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक उत्तर भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान श्री रेणुका जी में मनाया जाता है. श्री रेणुका जी सिरमौर जिला के नाहन से 40 किलोमीटर दूर उत्तर भारत का प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है. यहां स्थित प्राकृतिक झील को मां रेणुका जी की प्रति छाया कहा जाता है. श्री रेणुका जी मेला मां के वात्सल्य एवं पुत्र की श्रद्धा का एक अनूठा आयोजन है. पांच दिन तक चलने वाले इस मेले में आसपास के सभी स्थानीय देवता अपनी-अपनी पालकी में मां-पुत्र के इस मिलन में शामिल होते हैं. कई धार्मिक अनुष्ठान सांस्कृतिक कार्यक्रम, हवन, यज्ञ, इस मेले में आयोजित किए जाते हैं.

वीडियो.

श्री रेणुका जी विकास बोर्ड के अध्यक्ष व डीसी सिरमौर डॉ आरके परुथी ने बताया कि इस साल भी श्री रेणुका जी मेला 7 से 12 नवंबर तक आयोजित किया जा रहा है. मेले का शुभारंभ विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल करेंगे, जबकि समापन समारोह में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर शिरकत करेंगे.

शाही परिवार के सदस्य व पूर्व विधायक कंवर अजय बहादुर सिंह ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय श्री रेणुका जी मेला माता रेणुका जी और उनके बेटे भगवान परशुराम के मिलन का प्रतीक है. दशमी के दिन भगवान परशुराम अपनी माता रेणुका से मिलने के लिए पालकी से श्री रेणुका जी पहुंचते हैं.

भगवान परशुराम की पालकी सबसे पहले गिरी नदी के तट पर पहुंचती है, जिसका स्वागत शाही परिवार के सदस्य करते हैं. उन्होंने बताया कि भगवान परशुराम की पालकी के साथ-साथ क्षेत्र के विभिन्न स्थानों से आधा दर्जन से अधिक देवपालकियां भी यहां पहुंचती हैं, जिन्हें 6 दिनों तक यहां लोगों के दर्शनों के लिए रखा जाता है.

एक कथा के मुताबिक राजा सहस्तरबाहु एक बार जमदग्नि ऋषि के आश्रम पहुंचे. सहस्त्रबाहु एवं उसके सैनिकों का खूब सत्कार किया. सहस्त्रवाहु जमदग्नि ऋषि के पास बंधी हुई कामधेनु गाय को अपने साथ ले जाने की जिद करने लगे. ऋषि जमदग्नि ने उन्हें समझाया कि कामधेनु गाय उनके पास कुबेर जी की अमानत है और इसे वो किसी को नहीं सौंप सकते. ये सुनकर गुस्साए सहस्त्रबाहु ने महर्षि जमदग्नि की हत्या कर दी. यह सुनकर मां रेणुका शोकवश राम सरोवर मे कूद गई. राम सरोवर ने मां रेणुका की देह को ढ़कने का प्रयास किया जिससे इसका आकार स्त्री देह के समान हो गया.

उधर भगवान परशुराम महेन्द्र पर्वत पर तपस्या मे लीन थे, लेकिन योगशक्ति से उन्हें पूरा घटनाक्रम का अहसास हुआ और उनकी तपस्या टूट गई. परशुराम अति क्रोधित होकर सहस्त्रबाहु को ढूंढने निकल पड़े. भगवान परशुराम ने सेना सहित सहस्त्रबाहु का वध कर दिया.

एक और पौराणिक कथा के अनुसार श्री रेणुका जी में महर्षि जमदग्नि तपस्या में लीन रहते थे. महार्षि जमदग्नि जी की पत्नी रेणुका पतिव्रता रहते हुए धर्म कर्म में लीन रहती थी. वे प्रतिदिन गिरी गंगा का जल पीते थे और उससे ही स्नान करते थे. उनकी पत्नी रेणुका कच्चे घड़े में नदी से पानी लाती थी. माता रेणुका के सतीत्व के कारण कच्चा घड़े की मिट्टी पानी मे कभी नहीं गली.

एक दिन जब माता रेणुका पानी लेकर सरोवर से आ रही थी तो दूर एक गर्नधव जोड़े को काम-क्रीड़ा में व्यस्त देखकर वो भी क्षण भर के लिए रुक गई, जिससे उनको देर हो गई. ऋषि जमदग्नि ने अंर्तध्यान से जब विलंब का कारण जाना तो वो रेणुका के सतीत्व के प्रति आशंकित हो गए. जमदग्नि ऋषि ने क्रोधित हो गए. उन्होंने एक-एक कर अपने 100 पुत्रों को माता रेणुका का वध करने का आदेश दिया, लेकिन उनमें से केवल परशुराम ने ही पिता की आज्ञा का पालन करके मां का वध कर दिया.

वध करने के बाद ऋषि जमदग्नि ने पुत्र परशुराम से वर मांगने को कहा. भगवान परशुराम ने अपने पिता से माता को एक बार फिर जीवित करने का वरदान मांगा. तभी मां रेणुका ने वचन दिया कि वो हर साल इस दिन डेढ़ घड़ी के लिए अपने पुत्र भगवान परशुराम से मिलने आएंगी.

नाहन: आखिर मां-बेटे के मिलन की वो घड़ी आ गई जिसका साल भर सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है. सात नवंबर से मां -बेटे के मिलन का प्रतीक अंतरराष्ट्रीय श्री रेणुका जी मेला शुरू होने जा रहा है.

ये मेला प्रदेश के प्राचीन मेलों में से एक है और हर साल ये कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक उत्तर भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान श्री रेणुका जी में मनाया जाता है. श्री रेणुका जी सिरमौर जिला के नाहन से 40 किलोमीटर दूर उत्तर भारत का प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है. यहां स्थित प्राकृतिक झील को मां रेणुका जी की प्रति छाया कहा जाता है. श्री रेणुका जी मेला मां के वात्सल्य एवं पुत्र की श्रद्धा का एक अनूठा आयोजन है. पांच दिन तक चलने वाले इस मेले में आसपास के सभी स्थानीय देवता अपनी-अपनी पालकी में मां-पुत्र के इस मिलन में शामिल होते हैं. कई धार्मिक अनुष्ठान सांस्कृतिक कार्यक्रम, हवन, यज्ञ, इस मेले में आयोजित किए जाते हैं.

वीडियो.

श्री रेणुका जी विकास बोर्ड के अध्यक्ष व डीसी सिरमौर डॉ आरके परुथी ने बताया कि इस साल भी श्री रेणुका जी मेला 7 से 12 नवंबर तक आयोजित किया जा रहा है. मेले का शुभारंभ विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल करेंगे, जबकि समापन समारोह में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर शिरकत करेंगे.

शाही परिवार के सदस्य व पूर्व विधायक कंवर अजय बहादुर सिंह ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय श्री रेणुका जी मेला माता रेणुका जी और उनके बेटे भगवान परशुराम के मिलन का प्रतीक है. दशमी के दिन भगवान परशुराम अपनी माता रेणुका से मिलने के लिए पालकी से श्री रेणुका जी पहुंचते हैं.

भगवान परशुराम की पालकी सबसे पहले गिरी नदी के तट पर पहुंचती है, जिसका स्वागत शाही परिवार के सदस्य करते हैं. उन्होंने बताया कि भगवान परशुराम की पालकी के साथ-साथ क्षेत्र के विभिन्न स्थानों से आधा दर्जन से अधिक देवपालकियां भी यहां पहुंचती हैं, जिन्हें 6 दिनों तक यहां लोगों के दर्शनों के लिए रखा जाता है.

एक कथा के मुताबिक राजा सहस्तरबाहु एक बार जमदग्नि ऋषि के आश्रम पहुंचे. सहस्त्रबाहु एवं उसके सैनिकों का खूब सत्कार किया. सहस्त्रवाहु जमदग्नि ऋषि के पास बंधी हुई कामधेनु गाय को अपने साथ ले जाने की जिद करने लगे. ऋषि जमदग्नि ने उन्हें समझाया कि कामधेनु गाय उनके पास कुबेर जी की अमानत है और इसे वो किसी को नहीं सौंप सकते. ये सुनकर गुस्साए सहस्त्रबाहु ने महर्षि जमदग्नि की हत्या कर दी. यह सुनकर मां रेणुका शोकवश राम सरोवर मे कूद गई. राम सरोवर ने मां रेणुका की देह को ढ़कने का प्रयास किया जिससे इसका आकार स्त्री देह के समान हो गया.

उधर भगवान परशुराम महेन्द्र पर्वत पर तपस्या मे लीन थे, लेकिन योगशक्ति से उन्हें पूरा घटनाक्रम का अहसास हुआ और उनकी तपस्या टूट गई. परशुराम अति क्रोधित होकर सहस्त्रबाहु को ढूंढने निकल पड़े. भगवान परशुराम ने सेना सहित सहस्त्रबाहु का वध कर दिया.

एक और पौराणिक कथा के अनुसार श्री रेणुका जी में महर्षि जमदग्नि तपस्या में लीन रहते थे. महार्षि जमदग्नि जी की पत्नी रेणुका पतिव्रता रहते हुए धर्म कर्म में लीन रहती थी. वे प्रतिदिन गिरी गंगा का जल पीते थे और उससे ही स्नान करते थे. उनकी पत्नी रेणुका कच्चे घड़े में नदी से पानी लाती थी. माता रेणुका के सतीत्व के कारण कच्चा घड़े की मिट्टी पानी मे कभी नहीं गली.

एक दिन जब माता रेणुका पानी लेकर सरोवर से आ रही थी तो दूर एक गर्नधव जोड़े को काम-क्रीड़ा में व्यस्त देखकर वो भी क्षण भर के लिए रुक गई, जिससे उनको देर हो गई. ऋषि जमदग्नि ने अंर्तध्यान से जब विलंब का कारण जाना तो वो रेणुका के सतीत्व के प्रति आशंकित हो गए. जमदग्नि ऋषि ने क्रोधित हो गए. उन्होंने एक-एक कर अपने 100 पुत्रों को माता रेणुका का वध करने का आदेश दिया, लेकिन उनमें से केवल परशुराम ने ही पिता की आज्ञा का पालन करके मां का वध कर दिया.

वध करने के बाद ऋषि जमदग्नि ने पुत्र परशुराम से वर मांगने को कहा. भगवान परशुराम ने अपने पिता से माता को एक बार फिर जीवित करने का वरदान मांगा. तभी मां रेणुका ने वचन दिया कि वो हर साल इस दिन डेढ़ घड़ी के लिए अपने पुत्र भगवान परशुराम से मिलने आएंगी.

Intro:- यहां नारी देह के आकार में स्थित है मां रेणुका, कल से शुरू होगा अंतरराष्ट्रीय मेला श्री रेणुका जी
- मां रेणुका से मिलने आएंगे भगवान परशुराम, मां बेटे के मिलन का प्रतीक है यह मेला
नाहन। आखिर मां बेटे के मिलन की वह घड़ी आ गई है, जिसका साल भर सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है। जी हां 7 नंबर से मां-बेटे के मिलन का प्रतीक अंतरराष्ट्रीय मेला श्री रेणुका जी शुरू हो रहा है। यह मेला हिमाचल प्रदेश के प्राचीन मेलों में से एक है और हर वर्ष यह मेला कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक उत्तर भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान श्री रेणुका जी में मनाया जाता है।


Body:यह नारी दे के आकार में स्थित है मां श्री रेणुका जी की प्रतिछाया
मध्य हिमालय की पहाड़ियों के आंचल में सिरमौर की कृपा क्षेत्र का पहला पड़ाव श्री रेणुका जी है। यह स्थान नाम से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर भारत का प्रसिद्ध धार्मिक एवं पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है, जहां नारी दे के आकार के प्राकृतिक झील, जिसे मां रेणुका जी की प्रति छाया भी माना जाता है, स्थित है।

क्या कहते हैं रेणुका जी विकास बोर्ड के अध्यक्ष?
श्री रेणुका जी विकास बोर्ड के अध्यक्ष एवं डीसी सिरमौर डॉ आरके परुथी ने बताया कि इस साल भी श्री रेणुका जी मेला धूमधाम के साथ आयोजित किया जा रहा है। 7 से 12 नवंबर तक यह मेला आयोजित होगा। मेले का शुभारंभ विधानसभा अध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल करेंगे। जबकि समापन समारोह के मौके पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करेंगे। मेले की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है।
बाइट 1 : डॉ आरके परुथी, डीसी सिरमौर

वही शाही परिवार के सदस्य एवं पूर्व विधायक कंवर अजय बहादुर सिंह बताते हैं कि अंतरराष्ट्रीय श्री रेणुका जी मेला माता रेणुका जी और उनके बेटे भगवान परशुराम के मिलन का प्रतीक है। दशमी के दिन भगवान परशुराम अपनी माता रेणुका से मिलने श्री रेणुका जी पहुंचते हैं। ढोल नगाड़ों के साथ पारंपरिक तरीके से भगवान परशुराम की पालकी जम्मू कोटी से श्री रेणुका जी पहुंचती है। सर्वप्रथम गिरी नदी के तट पर देव पालकी का स्वागत शाही परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता है। भगवान परशुराम की पालकी के साथ-साथ क्षेत्र के विभिन्न स्थानों से आधा दर्जन से अधिक देवपालकियां भी यहां पहुंचती हैं, जिन्हें 6 दिनों तक यहां लोगों के दर्शनों के लिए रखा जाता है।
बाइट 2 : कंवर अजय बहादुर सिंह, सदस्य शाही परिवार



Conclusion:कुल मिलाकर यह मेला कई दशकों से लोगों की आस्था के साथ-साथ मां-बेटे के मिलन का प्रतीक है, जिसमें देव आस्था के साथ-साथ लोक संस्कृति के विकास की झलक देखने को मिलती है।
Last Updated : Nov 6, 2019, 1:19 PM IST
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