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धूमधाम से मनाई जाने वाली बूढ़ी दिवाली को लगी कोरोना की नजर, व्यापारी नाखुश

वैश्विक महामारी कोरोना की मार हर तबके और त्योहार पर पड़ी है, जिससे सभी लोगों की आर्थिक गाड़ी पटरी से उतर गई है. कोरोना का असर त्योहारों पर भी पड़ा है. हिमाचल में मनाई जाने वाली बूढ़ी दिवाली भी इससे अछूती नहीं रही है.

budi diwali will celebrated in paonta sahib
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Published : Dec 12, 2020, 7:57 PM IST

Updated : Dec 14, 2020, 5:30 PM IST

पांवटा साहिब: वैश्विक महामारी कोरोना की मार हर तबके और त्योहार पर पड़ी है, जिससे सभी लोगों की आर्थिक गाड़ी पटरी से उतर गई है. कोरोना का असर त्योहारों पर भी पड़ा है. हिमाचल में मनाई जाने वाली बूढ़ी दिवाली भी इससे अछूती नहीं रही है.

पांवटा साहिब के गिरीपार क्षेत्र में हर साल बूढ़ी दिवाली पर हजारों की संख्या में लोग मंदिर परिसर में इक्ट्ठा होकर धूमधाम से इस त्योहार को मनाते हैं, लेकिन इस साल कोरोना की वजह से पहाड़ी क्षेत्र का ये त्योहार फीका रहेगा.

हालांकि, क्षेत्र में मशाल यात्रा के साथ हर साल की तरह इस बार भी बूढ़ी दिवाली का आगाज हो चुका है, लेकिन कोरोना को लेकर सरकार ने SOP जारी किए हैं. जिसमें 50 से ज्यादा लोगों के जुटने पर मनाही है. ऐसे में त्यौहार की रोनक फीकी रहने के आसार दिख रहे हैं.

वीडियो.

वहीं, कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो कोरोना संकट में अपनी परम्पराओं को संजोए रखने के लिए छोटे रूप में ही सही इस त्यौहार और इस जुड़ी परंपराओं निभा रहे हैं. आपको बता दें कि बूढ़ी दिवाली के दिन महिलाएं मुड़ा, शाकुली, खिलो, कचरी, चिऊलो जैसे स्वादिष्ट पकवान बनाती हैं और घर आए महमानों को परोसती हैं.

बूढ़ी दिवाली मनाने के पीछे ये है मान्यता

इस त्यौहार को मनाने के पीछे मान्यता है कि पांडवों ने हिमाचल और उत्तराखंड में अपने वनवास का सबसे ज्यादा समय बिताकर वो वापस हस्तिनापुर चले गए थे. जिससे पांडवों के घर वापस आने की खुशी में ये बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है. परंपरा के अनुसार अमावस्या की रात गांव के लोग मंदिर परिसर में जुट जाते हैं. इसके बाद मशाल यात्रा निकाली जाती है. गांव के लोग एक जगह खड़े होकर पहाड़ी नाटी करते हैं.

वहीं, बूढ़ी दिवाली मनाने के पीछे भी एक और मान्यता है. मंदिर के पुजारी की माने तो लोगों को यहां भगवान राम के वनवास से अयोध्या पहुंचने की जानकारी देर से मिली थी, जिस वजह से इसे बूढ़ी दिवाली कहा जाता है. पहाड़ी क्षेत्र के लोग शिरगुल देवता और परशुराम देवता की पूजा पाठ के साथ बड़ी धूमधाम से इस त्योहार को मनाते हैं.

कोविड की वजह से कारोबारी निराश

कारोबारियों का कहना है कि हर साल की तरह इस साल बूढ़ी दिवाली फीकी रहेगी, क्योंकि कोविड के कारण लोग एक साथ इक्ट्ठा नहीं हो पाएंगे, जिससे उनके कारोबार में तेजी नहीं आएगी..हर त्योहार की तरह ये त्योहार भी कोरोना की भेंट चढ़ चुका है. कोरोना महामारी के बीच लोग अपनी संस्कृति और सरकार के नियमों को ध्यान में रखकर त्योहार मना रहे हैं. उम्मीद है कि आने वाले समय में लोगों को कोरोना से मुक्ती मिलेगी और लोग अपने हर पर्व को खुशी से मनाएंगे.

ये भी पढ़ें: सोने सी खरी है जनरल जोरावर की शौर्य कहानी, जन्म स्थान की फिर भी पक्की नहीं निशानी

पांवटा साहिब: वैश्विक महामारी कोरोना की मार हर तबके और त्योहार पर पड़ी है, जिससे सभी लोगों की आर्थिक गाड़ी पटरी से उतर गई है. कोरोना का असर त्योहारों पर भी पड़ा है. हिमाचल में मनाई जाने वाली बूढ़ी दिवाली भी इससे अछूती नहीं रही है.

पांवटा साहिब के गिरीपार क्षेत्र में हर साल बूढ़ी दिवाली पर हजारों की संख्या में लोग मंदिर परिसर में इक्ट्ठा होकर धूमधाम से इस त्योहार को मनाते हैं, लेकिन इस साल कोरोना की वजह से पहाड़ी क्षेत्र का ये त्योहार फीका रहेगा.

हालांकि, क्षेत्र में मशाल यात्रा के साथ हर साल की तरह इस बार भी बूढ़ी दिवाली का आगाज हो चुका है, लेकिन कोरोना को लेकर सरकार ने SOP जारी किए हैं. जिसमें 50 से ज्यादा लोगों के जुटने पर मनाही है. ऐसे में त्यौहार की रोनक फीकी रहने के आसार दिख रहे हैं.

वीडियो.

वहीं, कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो कोरोना संकट में अपनी परम्पराओं को संजोए रखने के लिए छोटे रूप में ही सही इस त्यौहार और इस जुड़ी परंपराओं निभा रहे हैं. आपको बता दें कि बूढ़ी दिवाली के दिन महिलाएं मुड़ा, शाकुली, खिलो, कचरी, चिऊलो जैसे स्वादिष्ट पकवान बनाती हैं और घर आए महमानों को परोसती हैं.

बूढ़ी दिवाली मनाने के पीछे ये है मान्यता

इस त्यौहार को मनाने के पीछे मान्यता है कि पांडवों ने हिमाचल और उत्तराखंड में अपने वनवास का सबसे ज्यादा समय बिताकर वो वापस हस्तिनापुर चले गए थे. जिससे पांडवों के घर वापस आने की खुशी में ये बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है. परंपरा के अनुसार अमावस्या की रात गांव के लोग मंदिर परिसर में जुट जाते हैं. इसके बाद मशाल यात्रा निकाली जाती है. गांव के लोग एक जगह खड़े होकर पहाड़ी नाटी करते हैं.

वहीं, बूढ़ी दिवाली मनाने के पीछे भी एक और मान्यता है. मंदिर के पुजारी की माने तो लोगों को यहां भगवान राम के वनवास से अयोध्या पहुंचने की जानकारी देर से मिली थी, जिस वजह से इसे बूढ़ी दिवाली कहा जाता है. पहाड़ी क्षेत्र के लोग शिरगुल देवता और परशुराम देवता की पूजा पाठ के साथ बड़ी धूमधाम से इस त्योहार को मनाते हैं.

कोविड की वजह से कारोबारी निराश

कारोबारियों का कहना है कि हर साल की तरह इस साल बूढ़ी दिवाली फीकी रहेगी, क्योंकि कोविड के कारण लोग एक साथ इक्ट्ठा नहीं हो पाएंगे, जिससे उनके कारोबार में तेजी नहीं आएगी..हर त्योहार की तरह ये त्योहार भी कोरोना की भेंट चढ़ चुका है. कोरोना महामारी के बीच लोग अपनी संस्कृति और सरकार के नियमों को ध्यान में रखकर त्योहार मना रहे हैं. उम्मीद है कि आने वाले समय में लोगों को कोरोना से मुक्ती मिलेगी और लोग अपने हर पर्व को खुशी से मनाएंगे.

ये भी पढ़ें: सोने सी खरी है जनरल जोरावर की शौर्य कहानी, जन्म स्थान की फिर भी पक्की नहीं निशानी

Last Updated : Dec 14, 2020, 5:30 PM IST
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