ETV Bharat / city

हिमाचल में लगेंगे भूस्खलन अलर्ट यूनिट अर्ली वा‌र्निंग सिस्टम, PM ने भी की थी IIT के वैज्ञानिकों की सराहना

अर्ली वा‌र्निंग सिस्टम भूस्खलन के खतरे को भांपने में (Early warning system in Himachal) अहम भूमिका अदा कर रहे हैं. आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं द्वारा बनाए गए इस सिस्टम की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सराहना की है. बता दें कि यह उपकरण भूचाल (मिट्टी की चाल) की पूर्व चेतावनी देकर भूस्खलन से होने वाले नुकसान को कम करता है और पूरी दुनिया के लिए एक अभूतपूर्व प्रणाली है.

Early warning system in Himachal
आईआईटी मंडी द्वारा विकसित अर्ली वार्निंग सिस्टम
author img

By

Published : Jan 16, 2022, 8:40 PM IST

मंडी: आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं द्वारा बनाए गए भूस्खलन अलर्ट यूनिट अर्ली वा‌र्निंग सिस्टम भूस्खलन के खतरे को भांपने में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं. अब इनको पूरे हिमाचल में स्थापित करने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए 50 लाख रुपए की फंडिग हो चुकी है. किन्नौर, मंडी और कांगड़ा में सबसे अधिक यूनिट लगाने की तैयारी की जा रही है.

बता दें कि डिवाइस का प्रोटोटाइप पहली बार जुलाई-अगस्त 2017 में आईआईटी मंडी के कामंद परिसर के पास घरपा पहाड़ी पर लगाया गया था जो एक सक्रिय भूस्खलन क्षेत्र रहा है. पहली बार 2018 में मंडी जिला प्रशासन के सहयोग से कोटरोपी भूस्खलन क्षेत्र में इसे स्थापित किया गया था. मंडी जिले में अब तक (Early warning system developed by IIT Mandi) 18 सिस्टम लगाए गए हैं.

इनके अतिरिक्त बलियानाला (नैनीताल जिला), उत्तराखंड, भारतीय रेलवे के कालका-शिमला रेलमार्ग के किनारे धर्मपुर और हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में तीन-तीन सिस्टम लगाए गए हैं. वहीं, अब हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र के कई जिलों के कई स्थानों पर सिस्टम लगाने की योजना पर काम (Early warning system in Himachal) जारी है. यह भूस्खलन निगरानी प्रणाली प्रचलित निगरानी प्रणालियों की तुलना में कम लागत की है. सेंसर और अलर्टिंग मैकेनिज्म के साथ सिस्टम का बिक्री मूल्य लगभग एक लाख रुपये है जो करोड़ों रुपयों में उपलब्ध इसी स्तर की प्रचलित प्रणालियों से लगभग 200 गुना कम है.

भूस्खलन दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा- भूस्खलन दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा है. इनमें से सर्वाधिक भारत में होती है. दरअसल देश के 15 प्रतिशत क्षेत्रों में भूस्खलन का खतरा बना रहता है. पूरी दुनिया में हर साल भूस्खलन में 5,000 से अधिक लोग जिंदा दफन हो जाते हैं और भूस्खलन से सालाना 26,000 करोड़ रुपये से अधिक का आर्थिक नुकसान होता है.

पांच लोगों की टीम ने किया है तैयार ये सिस्टम- बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंडी दौरे के दौरान आईआईटी मंडी द्वारा विकसित भूस्खलन निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणाली की सराहना की थी. यह उपकरण भूचाल (मिट्टी की चाल) की पूर्व चेतावनी देकर भूस्खलन से होने वाले नुकसान को कम करता है और पूरी दुनिया के लिए एक अभूतपूर्व प्रणाली है.

उपकरण का विकास स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. वरुण दत्त और स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर डॉ. के वी उदय, डारेक्टर प्रवीण, अंकुश पठानिया और बिजनेस मैनेजर चंदन वैद्य ने किया है. मैनेजर चंदन वैद्य ने बताया कि आईआईटी मंडी की टीम द्वारा बनाए गए इस युनिट को (Early warning system in mandi) काफी सफलता मिली है. सरकार की ओर से उन्हें 50 लाख की राशि यूनिट लगाने के लिए मिल चुकी है और जल्द ही कांगड़ा, मंडी किन्नौर में नए युनिट लगाए जाएंगे.

यह अब तक प्रचलित निगरानी प्रणालियों की तुलना में बहुत कम लागत का बेहतर विकल्प है. भूस्खलन निगरानी प्रणाली दूर सड़क पर लगी होती है जो भूचाल (मिट्टी की चाल) के बारे में टेक्स्ट मैसेज के जरिए हूटर और ब्लिंकर से चेतावनी देती है. इसके अतिरिक्त यह 5 मिमी से अधिक बारिश के पूर्वानुमान की भी पूर्व चेतावनी देती है. भूस्खलन की चेतावनी भूचाल की वास्तविक घटना से 10 मिनट पहले दे देती है. यह सिस्टम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग की मदद से मौसम की कठिनतम घटनाओं की भी पूर्व चेतावनी देता है.

ये भी पढ़ें: हिमाचल में खेती-बागवानी में सोलर फेंसिंग मददगार, जंगली जानवरों और बंदरों से हो रही फसल की सुरक्षा

मंडी: आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं द्वारा बनाए गए भूस्खलन अलर्ट यूनिट अर्ली वा‌र्निंग सिस्टम भूस्खलन के खतरे को भांपने में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं. अब इनको पूरे हिमाचल में स्थापित करने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए 50 लाख रुपए की फंडिग हो चुकी है. किन्नौर, मंडी और कांगड़ा में सबसे अधिक यूनिट लगाने की तैयारी की जा रही है.

बता दें कि डिवाइस का प्रोटोटाइप पहली बार जुलाई-अगस्त 2017 में आईआईटी मंडी के कामंद परिसर के पास घरपा पहाड़ी पर लगाया गया था जो एक सक्रिय भूस्खलन क्षेत्र रहा है. पहली बार 2018 में मंडी जिला प्रशासन के सहयोग से कोटरोपी भूस्खलन क्षेत्र में इसे स्थापित किया गया था. मंडी जिले में अब तक (Early warning system developed by IIT Mandi) 18 सिस्टम लगाए गए हैं.

इनके अतिरिक्त बलियानाला (नैनीताल जिला), उत्तराखंड, भारतीय रेलवे के कालका-शिमला रेलमार्ग के किनारे धर्मपुर और हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में तीन-तीन सिस्टम लगाए गए हैं. वहीं, अब हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र के कई जिलों के कई स्थानों पर सिस्टम लगाने की योजना पर काम (Early warning system in Himachal) जारी है. यह भूस्खलन निगरानी प्रणाली प्रचलित निगरानी प्रणालियों की तुलना में कम लागत की है. सेंसर और अलर्टिंग मैकेनिज्म के साथ सिस्टम का बिक्री मूल्य लगभग एक लाख रुपये है जो करोड़ों रुपयों में उपलब्ध इसी स्तर की प्रचलित प्रणालियों से लगभग 200 गुना कम है.

भूस्खलन दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा- भूस्खलन दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा है. इनमें से सर्वाधिक भारत में होती है. दरअसल देश के 15 प्रतिशत क्षेत्रों में भूस्खलन का खतरा बना रहता है. पूरी दुनिया में हर साल भूस्खलन में 5,000 से अधिक लोग जिंदा दफन हो जाते हैं और भूस्खलन से सालाना 26,000 करोड़ रुपये से अधिक का आर्थिक नुकसान होता है.

पांच लोगों की टीम ने किया है तैयार ये सिस्टम- बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंडी दौरे के दौरान आईआईटी मंडी द्वारा विकसित भूस्खलन निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणाली की सराहना की थी. यह उपकरण भूचाल (मिट्टी की चाल) की पूर्व चेतावनी देकर भूस्खलन से होने वाले नुकसान को कम करता है और पूरी दुनिया के लिए एक अभूतपूर्व प्रणाली है.

उपकरण का विकास स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. वरुण दत्त और स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर डॉ. के वी उदय, डारेक्टर प्रवीण, अंकुश पठानिया और बिजनेस मैनेजर चंदन वैद्य ने किया है. मैनेजर चंदन वैद्य ने बताया कि आईआईटी मंडी की टीम द्वारा बनाए गए इस युनिट को (Early warning system in mandi) काफी सफलता मिली है. सरकार की ओर से उन्हें 50 लाख की राशि यूनिट लगाने के लिए मिल चुकी है और जल्द ही कांगड़ा, मंडी किन्नौर में नए युनिट लगाए जाएंगे.

यह अब तक प्रचलित निगरानी प्रणालियों की तुलना में बहुत कम लागत का बेहतर विकल्प है. भूस्खलन निगरानी प्रणाली दूर सड़क पर लगी होती है जो भूचाल (मिट्टी की चाल) के बारे में टेक्स्ट मैसेज के जरिए हूटर और ब्लिंकर से चेतावनी देती है. इसके अतिरिक्त यह 5 मिमी से अधिक बारिश के पूर्वानुमान की भी पूर्व चेतावनी देती है. भूस्खलन की चेतावनी भूचाल की वास्तविक घटना से 10 मिनट पहले दे देती है. यह सिस्टम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग की मदद से मौसम की कठिनतम घटनाओं की भी पूर्व चेतावनी देता है.

ये भी पढ़ें: हिमाचल में खेती-बागवानी में सोलर फेंसिंग मददगार, जंगली जानवरों और बंदरों से हो रही फसल की सुरक्षा

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.