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साल भर के इंतजार के बाद 7 दिन के लिए मंडी आते हैं बड़ादेव, जानिए देव कमरूनाग का इतिहास

मंडी के आराध्य देव माने जाते हैं कमरूनाग. साल में एक बार आते हैं मंडी आते हैं देव. देव कमरूनाग के दर्शन के लिए उमड़ता है जनसैलाब. बारिश के देवता के रूप में पूजे जाते हैं देव कमरूनाग

देव कमरूनाग की मंदिर
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Published : Mar 5, 2019, 1:28 PM IST

मंडी: छोटी काशी में मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में दूर-दूर से देवी देवता पहुंचतें हैं. इस बार महोत्सव 5 से 11 मार्च तक मनाया जा रहा है. इस पर्व में देव कमरूनाग का विशेष स्थान है. देव कमरूनाग को मंडी का आराध्य देव माना जाता है.

dev kamrunag
देव कमरूनाग की मंदिर

माना जाता है कि कभी देव कमरूनाग पांडवों के अराध्य थे. वर्ष में सिर्फ एक बार मंडी जिला मुख्यालय पर आने वाले देव कमरूनाग के दर्शन के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ता है.

जानिए कौन हैं देव कमरूनाग
देव कमरूनाग के भक्त सिर्फ हिमाचल प्रदेश में ही नहीं, बल्कि समूचे उत्तर भारत में मौजूद हैं. मंडी जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर देव कमरूनाग का मूल स्थान स्थित है. इसलिए जब देव कमरूनाग मंडी आते हैं तो इनके दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है.

देव कमरूनाग साल में सिर्फ एक बार शिवरात्रि महोत्सव के दौरान ही मंडी आते हैं और उनका यह प्रवास सिर्फ 7 दिनों का ही होता है. देव कमरूनाग को बड़ा देव भी कहा जाता है. देव कमरूनाग कभी किसी वाहन में नहीं जाते. न इनका कोई देवरथ है और न ही कोई पालकी. सिर्फ एक छड़ी के रूप में इनकी प्रतिमा को लाया जाता है.

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100 किलोमीटर का पैदल सफर तय करने के बाद देव कमरूनाग के कारदार मंडी पहुंचते हैं. इनके आगमन के बाद ही मंडी का अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव शुरू होता है. देव कमरूनाग सात दिनों तक टारना माता मंदिर में ही विराजमान रहते हैं.

बारिश के देवता के रूप में पूजे जाते हैं देव कमरूनाग
देव कमरूनाग को बारिश का देवता भी माना जाता है. जब कभी सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाए तो जनपद के लोग देवता के दरबार जाकर बारिश की गुहार लगाते हैं. वहीं लोग अपनी अन्य मनोकामनाओं को लेकर भी देवता के दर पर पहुंचते हैं. मान्यता है कि कमरूनाग की स्थापना के बाद इंद्रदेव नाराज हो गए और उन्होंने घाटी में बारिश करवाना बंद कर दिया. लोगों के अनुरोध पर देव कमरूनाग इंद्रदेव से बादल चुरा लाए थे. तभी से इन्हें बारिश के देवता के रूप में भी पूजा जाता है.

लोगों की देव कमरूनाग के प्रति अटूट आस्था है, यही कारण है कि लोग वर्ष में सिर्फ एक बार होने वाले देव कमरूनाग के आगमन का बेसब्री से इंतजार करते हैं.

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दंत कथाओं के अनुसार महाभारत काल के रत्तन यक्ष ही देव कमरूनाग हैं. रत्तन यक्ष महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से युद्ध में शामिल होने के लिए जा रहे थे. इस बात की भनक भगवान श्रीकृष्ण को लग गई. उन्हें रत्तन यक्ष की शक्ति का अंदाजा था. ऐसे में पांडव कौरवों को कुरूक्षेत्र के रण में हराने में असमर्थ होते.

भगवान श्रीकृष्ण ने छलपूर्वक रत्तन यक्ष की परीक्षा लेते हुए उनका सिर वरदान में मांग लिया. रत्तन यक्ष ने महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा जाहिर की. इसे स्वीकार करते हुए श्रीकृष्ण ने युद्ध स्थल के बीचोबीच उनका सिर बांस के डंडे से ऊंचाई पर बांध दिया. युद्ध के बाद पांडवों ने कमरूनाग के रूप में रत्तन यक्ष को अपना आराध्यदेव माना. पांडवों के हिमालय प्रवास के दौरान कमरूनाग की पहाड़ियों में स्थापित कर दिया.

मंडी: छोटी काशी में मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में दूर-दूर से देवी देवता पहुंचतें हैं. इस बार महोत्सव 5 से 11 मार्च तक मनाया जा रहा है. इस पर्व में देव कमरूनाग का विशेष स्थान है. देव कमरूनाग को मंडी का आराध्य देव माना जाता है.

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देव कमरूनाग की मंदिर

माना जाता है कि कभी देव कमरूनाग पांडवों के अराध्य थे. वर्ष में सिर्फ एक बार मंडी जिला मुख्यालय पर आने वाले देव कमरूनाग के दर्शन के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ता है.

जानिए कौन हैं देव कमरूनाग
देव कमरूनाग के भक्त सिर्फ हिमाचल प्रदेश में ही नहीं, बल्कि समूचे उत्तर भारत में मौजूद हैं. मंडी जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर देव कमरूनाग का मूल स्थान स्थित है. इसलिए जब देव कमरूनाग मंडी आते हैं तो इनके दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है.

देव कमरूनाग साल में सिर्फ एक बार शिवरात्रि महोत्सव के दौरान ही मंडी आते हैं और उनका यह प्रवास सिर्फ 7 दिनों का ही होता है. देव कमरूनाग को बड़ा देव भी कहा जाता है. देव कमरूनाग कभी किसी वाहन में नहीं जाते. न इनका कोई देवरथ है और न ही कोई पालकी. सिर्फ एक छड़ी के रूप में इनकी प्रतिमा को लाया जाता है.

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100 किलोमीटर का पैदल सफर तय करने के बाद देव कमरूनाग के कारदार मंडी पहुंचते हैं. इनके आगमन के बाद ही मंडी का अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव शुरू होता है. देव कमरूनाग सात दिनों तक टारना माता मंदिर में ही विराजमान रहते हैं.

बारिश के देवता के रूप में पूजे जाते हैं देव कमरूनाग
देव कमरूनाग को बारिश का देवता भी माना जाता है. जब कभी सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाए तो जनपद के लोग देवता के दरबार जाकर बारिश की गुहार लगाते हैं. वहीं लोग अपनी अन्य मनोकामनाओं को लेकर भी देवता के दर पर पहुंचते हैं. मान्यता है कि कमरूनाग की स्थापना के बाद इंद्रदेव नाराज हो गए और उन्होंने घाटी में बारिश करवाना बंद कर दिया. लोगों के अनुरोध पर देव कमरूनाग इंद्रदेव से बादल चुरा लाए थे. तभी से इन्हें बारिश के देवता के रूप में भी पूजा जाता है.

लोगों की देव कमरूनाग के प्रति अटूट आस्था है, यही कारण है कि लोग वर्ष में सिर्फ एक बार होने वाले देव कमरूनाग के आगमन का बेसब्री से इंतजार करते हैं.

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दंत कथाओं के अनुसार महाभारत काल के रत्तन यक्ष ही देव कमरूनाग हैं. रत्तन यक्ष महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से युद्ध में शामिल होने के लिए जा रहे थे. इस बात की भनक भगवान श्रीकृष्ण को लग गई. उन्हें रत्तन यक्ष की शक्ति का अंदाजा था. ऐसे में पांडव कौरवों को कुरूक्षेत्र के रण में हराने में असमर्थ होते.

भगवान श्रीकृष्ण ने छलपूर्वक रत्तन यक्ष की परीक्षा लेते हुए उनका सिर वरदान में मांग लिया. रत्तन यक्ष ने महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा जाहिर की. इसे स्वीकार करते हुए श्रीकृष्ण ने युद्ध स्थल के बीचोबीच उनका सिर बांस के डंडे से ऊंचाई पर बांध दिया. युद्ध के बाद पांडवों ने कमरूनाग के रूप में रत्तन यक्ष को अपना आराध्यदेव माना. पांडवों के हिमालय प्रवास के दौरान कमरूनाग की पहाड़ियों में स्थापित कर दिया.

बारिश व बर्फबारी के कारण 30 सड़कों पर वाहनों की आवाजाही प्रभावित
कुल्लू
जिला कुल्लू में हो रही मूसलाधार बारिश और बर्फबारी से एक बार फिर लोगों की परेशानियां बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। जिला कुल्लू में एनएच 305 औट लुहरी सैंज के अलावा करीब 30 सड़कें बंद हो गई हैं और एचआरटीसी की बसें भी विभिन्न रूटों पर फंस गई हैं। लोक निर्माण विभाग की भी कई सड़के अवरूद्ध हो गई है। लगातार विभिन्न जगहों पर हो रहे भूस्खलन से मार्ग पर आने जाने वालों को भी खतरा बना हुआ है। ऐसे में लोग घबराए हैं। लोगों का कहना है कि शिवरात्रि पर्व के चलते हमें कई घरों तक जाना पड़ता है और ऐसे मौसम में भूस्खलन का डर लगा रहता है। विभाग के अनुसार अुनसार जहां पर भी मार्ग को बहाल करते हैं। कुछ समय बाद दूसरी जगह से भूस्खलन होना आरंभ हो जाता है। ऐसे में पूरी मशीने लगी है और दिन रात मार्गो को बहाल करने में जुटे हुए हैं। लगातार हो रही बारिश के कारण मार्गो को बहाल करने में काफी मेहनत करनी पड़ रही है। पिछले दिन तक करीब पांच मार्ग रह गए थे, जिन्हें आज बहाल कर दिया जाएगा। उधर, आइपीएच विभाग और विद्युत आपूर्ति विभाग को भी बारिश से क्षति हुई है। कई जगहों पर पाइपें क्षतिग्रस्त हुई है और कई जगहों पर बिजली की तारें टूट गई हैं। जिससे कई ग्रामीण इलाके अंधेरे में जीवन यापन कर रहे हैं।

उधर, एनएच 305 औट लुहरी सैंज मार्ग पिछले दो माह से बंद पड़ा हुआ है। यहां पर भी लगातार हो रही बर्फबारी से मार्ग को बहाल करने में दिक्कत पेश आ रही है। जलोड़ी जोत में हर दिन बर्फबारी हो रही है। जिस कारण मार्ग को बहाल करने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इससे आठ रूट प्रभावित हुए हैं। वहीं, उपायुक्त कुल्लू यूनुस ने कहा कि लगातार हो रही भारी बारिश के चलते लोग पैदल यात्रा न करें। ऊंचाई वाले स्थानों की ओर रूख न करें। जिला भर में हो रहे नुकसान के लिए तुरंत एक्शन कमेटी बनाई गई है। जहां पर भी नुक्सान हुआ है। स्थानीय एसडीएम को तुरंत सूचित करें।


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