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कृषि विभाग का किसानों के लिए जागरूकता कार्यक्रम, प्राकृतिक खेती के बताए गए फायदे - रासायनिक खाद करसोग

करसोग में कृषि विभाग के विशेषज्ञों ने तीन गांव भबनाड़ा, गड़ा माहूं और सवा माहूं में कैम्प आयोजित किया. इस कार्यक्रम के दौरान किसानों को रासायनिक खाद के प्रयोग बिना प्राकृतिक तरीके से बागवानी और कृषि की उपज लेने के बारे में प्रशिक्षण दिया गया.

Agriculture camp Karsog
कृषि विभाग करसोग
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Published : Jan 3, 2020, 3:24 PM IST

करसोग: जिला मंडी के करसोग में कृषि विभाग के विशेषज्ञों ने तीन गांव भबनाड़ा, गड़ा माहूं और सवा माहूं में कैम्प आयोजित कर किसानों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की तकनीक के बारे में जागरूक किया. इस अभियान से किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने के लिए शुरू किया है.

इस कार्यक्रम के दौरान किसानों को रासायनिक खाद के प्रयोग बिना प्राकृतिक तरीके से बागवानी और कृषि की उपज लेने के बारे में प्रशिक्षण दिया गया. बागवानों को बताया गया कि किस तरह प्राकृतिक तरीके से पेस्ट बनाकर पौधों में लगाया जा सकता है. इसके अलावा किसानों को जीवामृत, घन जीवामृत व बीजामृत से रबी सीजन में अच्छी फसल लेने के टिप्स दिए गए. इस कार्यक्रम में आसपास के गांव सहित करीब दो सौ किसानों ने भाग लिया.

वीडियो रिपोर्ट

इस कैम्प के बारे में करसोग कृषि विशेषज्ञ राम कृष्ण चौहान ने बताया कि विभाग की टीम के साथ खेतों में जाकर किसानों को बिजाई करने और प्राकृतिक तकनीक से जीवामृत के बारे में जानकारी दी गई. इस दौरान किसानों को बताया गया कि प्राकृतिक खेती की तकनीक अपनाने से रासायनिक खेती की तुलना में कई गुणा अधिक पैदावार मिल सकती है जिससे किसान आर्थिक तौर पर समृद्ध होने के साथ ही पेस्टिसाइड से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव से भी बच सकेंगे.

इसको देखते हुए किसानों को प्राकृतिक तरीके से तैयार जीवामृत, घन जीवामृत सहित बीजामृत तैयार करने के बारे में जानकारी दी गई जिसे गाय के गोबर, बेसन, गुड़ और मिट्टी आदि से तैयार किया जाता है. इस तकनीक से किसान एक ड्रम से पांच बीघा जमीन में जीवामृत का छिड़काव कर सकता है. इसके बाद 21 दिन के अंतराल में फिर से जीवामृत व घन जीवामृत का छिड़काव होता है. रासायनिक खाद की तुलना में ये तकनीकी काफी सस्ती है.

कृषि विभाग के एसएमएस रामकृष्ण चौहान ने कहा कि करसोग विकासखंड के तहत भबनाड़ा, गड़ा माहूं और सवा माहूं में किसानों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक तकनीक से खेती करने की तकनीक के बारे में जानकारी दी गई. उन्होंने कहा कि इस दौरान बागवानों को प्राकृतिक तरीके से ट्री पेस्ट तैयार करने की विधि बताई गई.

ये भी पढ़ें: सोलन में शराब ठेकों पर एक्साइज विभाग का चला डंडा,1.5 करोड़ की रकम पर ठेकेदारों ने मारी है कुंडली

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करसोग: जिला मंडी के करसोग में कृषि विभाग के विशेषज्ञों ने तीन गांव भबनाड़ा, गड़ा माहूं और सवा माहूं में कैम्प आयोजित कर किसानों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की तकनीक के बारे में जागरूक किया. इस अभियान से किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने के लिए शुरू किया है.

इस कार्यक्रम के दौरान किसानों को रासायनिक खाद के प्रयोग बिना प्राकृतिक तरीके से बागवानी और कृषि की उपज लेने के बारे में प्रशिक्षण दिया गया. बागवानों को बताया गया कि किस तरह प्राकृतिक तरीके से पेस्ट बनाकर पौधों में लगाया जा सकता है. इसके अलावा किसानों को जीवामृत, घन जीवामृत व बीजामृत से रबी सीजन में अच्छी फसल लेने के टिप्स दिए गए. इस कार्यक्रम में आसपास के गांव सहित करीब दो सौ किसानों ने भाग लिया.

वीडियो रिपोर्ट

इस कैम्प के बारे में करसोग कृषि विशेषज्ञ राम कृष्ण चौहान ने बताया कि विभाग की टीम के साथ खेतों में जाकर किसानों को बिजाई करने और प्राकृतिक तकनीक से जीवामृत के बारे में जानकारी दी गई. इस दौरान किसानों को बताया गया कि प्राकृतिक खेती की तकनीक अपनाने से रासायनिक खेती की तुलना में कई गुणा अधिक पैदावार मिल सकती है जिससे किसान आर्थिक तौर पर समृद्ध होने के साथ ही पेस्टिसाइड से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव से भी बच सकेंगे.

इसको देखते हुए किसानों को प्राकृतिक तरीके से तैयार जीवामृत, घन जीवामृत सहित बीजामृत तैयार करने के बारे में जानकारी दी गई जिसे गाय के गोबर, बेसन, गुड़ और मिट्टी आदि से तैयार किया जाता है. इस तकनीक से किसान एक ड्रम से पांच बीघा जमीन में जीवामृत का छिड़काव कर सकता है. इसके बाद 21 दिन के अंतराल में फिर से जीवामृत व घन जीवामृत का छिड़काव होता है. रासायनिक खाद की तुलना में ये तकनीकी काफी सस्ती है.

कृषि विभाग के एसएमएस रामकृष्ण चौहान ने कहा कि करसोग विकासखंड के तहत भबनाड़ा, गड़ा माहूं और सवा माहूं में किसानों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक तकनीक से खेती करने की तकनीक के बारे में जानकारी दी गई. उन्होंने कहा कि इस दौरान बागवानों को प्राकृतिक तरीके से ट्री पेस्ट तैयार करने की विधि बताई गई.

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Intro:प्राकृतिक खेती को शीर्ष शिखर तक ले जाने को सरकार ने इस तकनीक से अधिक से अधिक किसानों को जोड़ने के लिए अभियान छेड़ा है। इसी कड़ी में कृषि विभाग के विशेषज्ञों ने करसोग तहसील तीन गांव भबनाड़ा, गड़ा माहूं और सवा माहूं में केम्प आयोजित कर किसानों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की तकनीक के बारे में जानकारी दी। Body:
इस दौरान किसानों को रासायनिक खाद के प्रयोग बिना प्राकृतिक तरीके से बागवानी और कृषि की उपज लेने के बारे प्रशिक्षण दिया गया। बागवानों को बताया गया कि किसी तरह प्राकृतिक तरीके से पेस्ट बनाकर पौधों में लगाया जा सकता है, इसके अतिरिक्त किसानों को जीवामृत, घन जीवामृत व बीजामृत से रबी सीजन में अच्छी फसल लेने के टिप्स दिए गए। जिसमें आसपास के गांव सहित करीब दो सौ किसानों ने भाग लिया। इसमें करसोग कृषि विशेषज्ञ राम कृष्ण चौहान ने खुद अपनी टीम के साथ खेतों में जाकर किसानों को बिजाई करने और प्राकृतिक तकनीक से जीवामृत के बारे में जानकारी दी। इस दौरान किसानों को बताया गया कि प्राकृतिक खेती की तकनीक अपनाने से रासायनिक खेती की तुलना में कई गुणा अधिक पैदावार ली जा सकती है। जिससे किसान आर्थिक तौर पर समृद्ध होने के साथ पेस्टिसाइड से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव से भी बच सकेंगे। जीवामृत तैयार करने की विधि बताई: रबी के इस सीजन में करसोग के अधिकतर क्षेत्रों में मटर की बिजाई का कार्य चल रहा है। इसको देखते हुए किसानों को प्राकृतिक तरीके से तैयार जीवामृत, घन जीवामृत सहित बीजामृत तैयार करने के बारे में जानकारी दी गई। जिसे देसी गाय के गोबर, बेसन, गुड़ और मिट्टी आदि से तैयार किया जाता है। इस तकनीक से किसान एक ड्रम से पांच बीघा जमीन में जीवामृत का छिड़काव कर सकता है। इसके बाद 21 दिन के अंतराल में फिर से जीवामृत व घन जीवामृत का छिड़काव होता है। रासायनिक खाद की तुलना में ये तकनीकी काफी सस्ती है। इसमें किसानों को किसी भी तरह की खाद खेतों में डालने की जरूरत नहीं होती है। इसके अलावा किसानों को खेत मे गोबर डालने की भी आवश्यकता नहीं है। इसके लिए देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घन जीवामृत व बीजामृत बनाया जाता है। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है।। बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है। इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है।
Conclusion:कृषि विभाग के एसएमएस रामकृष्ण चौहान ने कहा कि करसोग विकासखंड के तहत भबनाड़ा, गड़ा माहूं और सवा माहूं में किसानों को सरकार की महत्वपूर्ण योजना सुभाष पालेकर प्राकृतिक तकनीक से खेती करने की तकनीक के बारे में जानकारी दी गई। उन्होंने कहा कि इस दौरान बागवानों को प्राकृतिक तरीके से ट्री पेस्ट तैयार करने की विधि बताई गई। जोकि गोबर और गौ मूत्र से तैयार किया जाता है। इससे किसानों का बहुत पैसा बचेगा।
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