कुल्लू: भारत को आजाद हुए पूरे 75 साल(75 years of independence) हो चुके हैं. आजादी के बाद भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में अभूतपूर्व तरक्की भी की है, लेकिन आज भी हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला(three village of kullu district) में तीन ऐसे गांव हैं, जहां ना तो बिजली है और ना ही सड़क. ऐसे में ग्रामीणों का जीवन बिना बिजली व सड़क के कैसे बीत रहा होगा. इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है.
वहीं, अब प्रदेश सरकार(state government) ने भी तीनों गांव में बिजली पहुंचाने के लिए कसरत करनी शुरू कर दी है. यह तीनों गांव वाइल्ड लाइफ सेंचुरी(protection for wildlife) और ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के तहत आते हैं. वन्यजीवों के लिए संरक्षण(protection for wildlife) और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए वाइल्ड लाइफ सेंचुरी(wild life century) और ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क(great himalayan national park) अहम मुद्दा है. सरकार के द्वारा किए जा रहे प्रयासों से अब ऐसे गांव के लिए उम्मीद की नई किरण जग गई है.
बीते माह शिमला में राज्य वन्य प्राणी जीव बोर्ड(wildlife board) की नौवीं बैठक आयोजित की गई. इस बैठक में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर(cm jairam thakur), शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर(Education Minister Govind Thakur) व अन्य अधिकारी भी उपस्थित रहे. बैठक में कुल्लू जिला के साथ गाड़ापारली पंचायत के शाक्टी, मरोड़ और शुगाड गांव के लिए हाईटेंशन ट्रांसमिशन लाइन बिछाने के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान की गई है. अब वह मंजूरी मिलने पर बिजली बोर्ड के अधिकारियों ने बिजली लाइन के सर्वे का कार्य भी शुरू कर दिया है. लेकिन इस मामले में अब अंतिम निर्णय राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के द्वारा दिया जाएगा.
जिला कुल्लू के विद्युत नगरी सैंज घाटी(power city sainj valley) के गाड़ापारली पंचायत के तहत शाक्टी, मरोड़ और शुगाड गांव आते हैं. जो आजादी के 75 साल के बाद भी विकास की राह देख रहे हैं. सैंज घाटी में कई बिजली परियोजनाएं कार्यरत हैं जो देश के विभिन्न राज्यों को रोशन करती है, लेकिन अपने 3 गांव को वह आज तक रोशन नहीं कर पाई. ग्रामीणों की सुविधा के लिए सरकार के द्वारा सोलर लाइटें(solar lights) तो उपलब्ध करवाई गई है, लेकिन बारिश व बर्फबारी के चलते सोलर लाइट भी काम नहीं कर पाती है. ऐसे में ग्रामीणों को अपना जीवन यापन लालटेन के सहारे करना पड़ रहा है.
स्थानीय ग्रामीण प्रकाश ठाकुर, केहर सिंह, राकेश, सोनू, सुनील का कहना है कि सैंज घाटी में बसे इन गांवों में सरकारी सुविधा के नाम पर एक प्राथमिक पाठशाला है और लोगों को 40 किलोमीटर पैदल सैंज में उच्च शिक्षा के लिए जाना पड़ता है. मरोड़ गांव तक भी पैदल पहुंचने के लिए 9 घंटे दुर्गम रास्तों पर पैदल सफर करना पड़ता है. ऐसे में अगर गांव में कोई बीमार हो जाए तो उसे कुर्सियां या चारपाई पर उठाकर लाने के अलावा उनके पास कोई दूसरी सुविधा नहीं है.
वहीं, डीसी कुल्लू आशुतोष गर्ग(dc kullu ashutosh garg) का कहना है कि नेशनल पार्क होने के कारण बिजली पहुंचाने के लिए वनों की कटाई की मंजूरी मिलना व्यावहारिक नहीं है. लेकिन अब गांव में बिजली पहुंचाने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है. विद्युत विभाग के अधीक्षण अभियंता(superintending engineer of electrical department) को भी निर्देश दिए गए हैं कि निजी तौर पर विशेष प्रक्रिया को पूरा करें.
हालांकि अनापत्ति प्रमाण पत्र के लिए यह मामला वाइल्ड लाइफ बोर्ड(wild life board) को भेजा गया है और इसकी स्वीकृति मिलते ही बिजली की लाइनों को बिछाने का काम शुरू किया जाएगा. लपाह में भी कुछ समय पहले एक मोबाइल का टावर स्थापित किया गया था. जो अब खराब पड़ा है. इस बारे में संबंधित कंपनी के साथ बात की गई है, ताकि मोबाइल टावर की सुविधा भी इन 3 गांव के ग्रामीणों को मिल सके.
ये भी पढ़ें: कृषि कानून वापस लेने के फैसले का संयुक्त किसान मंच ने किया स्वागत, केंद्र को घेरा