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उम्मीदों वाली दिवाली: मिट्टी के दीयों से इस साल कारीगरों को है 'रोशनी' की आस - कुम्हारों को अच्छा कारोबार होने की उम्मीद

दीपावली पर्व से पहले धनतेरस को लेकर कुल्लू में बाजार सजने लगे हैं. कारीगरों को मलाल है कि जितनी मेहनत से मिट्टी के समान को तैयार किया जाता है उतनी आज इस काम पर मजदूरी भी नहीं निकल पा रही है. रंग-बिरंगे दीयों के साथ-साथ मिट्टी की मूर्तियों के अलावा मिट्टी के खेल-खिलौने भी बाजारों में बिक्री के लिए उतारे हैं, जिससे कि लोग आकर्षित हो सकें. ऐसे में कारीगरों को उम्मीद है कि इस बार मिट्टी के दीयों से दशकों पूर्व की पारंपरिक दीपावली देखने को मिल सकती है.

Potters expect good business on Diwali
कुल्लू में इस साल दिवाली पर कुम्हारों को उम्मीद
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Published : Nov 1, 2021, 3:27 PM IST

Updated : Nov 1, 2021, 4:32 PM IST

कुल्लू: रोशनी और सौभाग्य के महापर्व दीपावली के मौके पर मिट्टी के दीयों का अलग ही महत्व है. मान्यता है कि मिट्टी का दीपक जलाने से शौर्य और पराक्रम में वृद्धि होती है और परिवार में सुख समृद्धि आती है, लेकिन महंगाई के चलते अब दीयों का चलन कम हो गया है. तेल की महंगाई ने लोगों का रुझान मोमबत्ती और बिजली की झालरों की ओर कर दिया. इस बार भी सरसों के तेल की बढ़ती कीमतों और चाइनीज उत्पादों ने कुम्हारों के चेहरों पर निराशा लानी शुरू कर दी है.



देश में दीपावली का पर्व नजदीक है. दीपावली के पर्व पर अन्य मिट्टी के दीये बनाने वाले कारीगरों के कारोबार पर मिट्टी के दीये की बिक्री कम होने की वजह से रोजी-रोटी का संकट गहरा गया है. दीपावली के त्योहार को देखते हुए मिट्टी के दीये बनाने वाले कारीगर इन दिनों परेशानी वाला जीवन जीने को मजबूर हैं. पहले जहां दिवाली पर्व आते ही इनके चेहरों पर रौनक आ जाती थी तो वहीं अब मिट्टी से बने समान कि बिक्री नाममात्र को रह जाने से इनका कारोबार पूरी तरह चौपट होने के कगार पर है.

वीडियो.

कारीगरों के हाथों से बनाए हुए दीये और मिट्टी के बर्तन जहां हर घर में दिवाली समेत और दिनों में भी रोशनी बिखरते रहे हैं, वहीं अब बाजार में आधुनिक सामान आ जाने की बजह से इसकी मांग अब बहुत कम हो गई है. कुल्लू पहुंचे बिलासपुर के कारीगर सुख राम ने बताया कि हमें अपने पुरखों से विरासत में यही काम मिला.

सुख राम ने कहते हैं कि, 'दिवाली में हमारे हाथों से बने दीप और मिट्टी के बर्तन कभी देश के कई हिस्सों के साथ विदेशों तक जाते थे, लेकिन आज इसकी मांग न होने की वजह से रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो है. बड़े बुजुर्ग के साथ ही छोटे-छोटे मासूम बच्चों के हाथों से बनने और संवरने वाले यह दीप और मिट्टी के बर्तनों की जगह भले ही आज इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और आधुनिक तकनीक से बने सामानों ने ले ली हो. पर सड़कों पर अपना बाजार सजाने वाले इन कारीगरों को यह आस है कि आज नहीं तो कल फिर जमाना इसी पर लौटेगा.'

ये भी पढ़ें: हमीरपुर में लोग खूब खरीद रहे दिव्यांग बच्चों द्वारा बनाई गई मोमबत्तियां, गांधी चौक पर लगा स्टॉल

कारीगरों का कहना है कि जितनी मेहनत से मिट्टी के समान को तैयार किया जाता है उतनी आज इस काम पर मजदूरी भी नहीं निकल पा रही है. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के बाद से आर्थिक दंश झेल रहे कुम्हारों को भी उम्मीद है कि इस दीपावली में उनके नुकसान की भरपाई हो पाएगी. समय के अनुसार इस बार अपनी मिट्टी की कला में भी परिवर्तन किया है.

ये भी पढ़ें: सिरमौर पुलिस की छापेमारी, 2 लाख से ज्यादा नकदी के साथ पकड़े 20 जुआरी

कुल्लू: रोशनी और सौभाग्य के महापर्व दीपावली के मौके पर मिट्टी के दीयों का अलग ही महत्व है. मान्यता है कि मिट्टी का दीपक जलाने से शौर्य और पराक्रम में वृद्धि होती है और परिवार में सुख समृद्धि आती है, लेकिन महंगाई के चलते अब दीयों का चलन कम हो गया है. तेल की महंगाई ने लोगों का रुझान मोमबत्ती और बिजली की झालरों की ओर कर दिया. इस बार भी सरसों के तेल की बढ़ती कीमतों और चाइनीज उत्पादों ने कुम्हारों के चेहरों पर निराशा लानी शुरू कर दी है.



देश में दीपावली का पर्व नजदीक है. दीपावली के पर्व पर अन्य मिट्टी के दीये बनाने वाले कारीगरों के कारोबार पर मिट्टी के दीये की बिक्री कम होने की वजह से रोजी-रोटी का संकट गहरा गया है. दीपावली के त्योहार को देखते हुए मिट्टी के दीये बनाने वाले कारीगर इन दिनों परेशानी वाला जीवन जीने को मजबूर हैं. पहले जहां दिवाली पर्व आते ही इनके चेहरों पर रौनक आ जाती थी तो वहीं अब मिट्टी से बने समान कि बिक्री नाममात्र को रह जाने से इनका कारोबार पूरी तरह चौपट होने के कगार पर है.

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कारीगरों के हाथों से बनाए हुए दीये और मिट्टी के बर्तन जहां हर घर में दिवाली समेत और दिनों में भी रोशनी बिखरते रहे हैं, वहीं अब बाजार में आधुनिक सामान आ जाने की बजह से इसकी मांग अब बहुत कम हो गई है. कुल्लू पहुंचे बिलासपुर के कारीगर सुख राम ने बताया कि हमें अपने पुरखों से विरासत में यही काम मिला.

सुख राम ने कहते हैं कि, 'दिवाली में हमारे हाथों से बने दीप और मिट्टी के बर्तन कभी देश के कई हिस्सों के साथ विदेशों तक जाते थे, लेकिन आज इसकी मांग न होने की वजह से रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो है. बड़े बुजुर्ग के साथ ही छोटे-छोटे मासूम बच्चों के हाथों से बनने और संवरने वाले यह दीप और मिट्टी के बर्तनों की जगह भले ही आज इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और आधुनिक तकनीक से बने सामानों ने ले ली हो. पर सड़कों पर अपना बाजार सजाने वाले इन कारीगरों को यह आस है कि आज नहीं तो कल फिर जमाना इसी पर लौटेगा.'

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कारीगरों का कहना है कि जितनी मेहनत से मिट्टी के समान को तैयार किया जाता है उतनी आज इस काम पर मजदूरी भी नहीं निकल पा रही है. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के बाद से आर्थिक दंश झेल रहे कुम्हारों को भी उम्मीद है कि इस दीपावली में उनके नुकसान की भरपाई हो पाएगी. समय के अनुसार इस बार अपनी मिट्टी की कला में भी परिवर्तन किया है.

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Last Updated : Nov 1, 2021, 4:32 PM IST
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