कुल्लू: सेब की कीमतों में आई भारी गिरावट और कार्टन की कीमतें बढ़ने से सैंज घाटी में 25 फीसदी सेब अभी भी बगीचों में पड़ा हुआ है. आलम ये है कि मंडियों तक उत्पाद पहुंचाने के बाद कुल्लू बागवानों का पूरा खर्चा नहीं निकल पा रहा है. घाटी के निचले क्षेत्र में सेब का सीजन पूरी तरह से सिमट चुका है लेकिन, देर से तैयार होने वाला ऊपरी क्षेत्र का सेब पेड़ों पर ही है.
मिली जानकारी के अनुसार चंडीगढ़, परमाणू, सोलन, जालंधर, लुधियाना समेत दिल्ली की आजादपुर सब्जी मंडी सहित स्थानीय मंडियों में सेब 700 से एक हजार रुपये प्रति कार्टन की दर से बिक रहा है. टकोली और बंदरोल सब्जी मंडी में छह सौ से आठ सौ रुपये तक भाव दिया जा रहा है. ऐसे में बागवान सेब को पेड़ों से तुड़ान करने से कतरा रहे हैं.
बागवान प्रेम ठाकुर ने बताया कि इस कीमत पर खर्चे भी पूरे नहीं हो पा रहे हैं और जिसने बगीचें ठेके पर लिए हैं, उन्हें घाटे का डर सता रहा है. तुड़ान, ढुलान, ग्रेडिंग और पैकिंग में एक कार्टन पर ढाई से तीन सौ रुपये खर्च हो रहा है. उन्होंने बताया कि ठेकेदार, बागवानों का भुगतान करने के बाद कुछ भी नहीं बचा पा रहा है, जबकि जो बागवान खुद मंडियों में सेब बेच रहे हैं, वे खुली पैकिंग को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं. जिससे कार्टन पर होने वाला खर्च बच रहा है.
बागवान जीवन नेगीने बताया कि स्थानीय मंडियों में खुला सेब 18 से 24 रुपये प्रति किलो के भाव से बिक रहा है. सैंज घाटी में इस बार सेब का रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन हुआ है. अधिकतर उत्पाद टकोली और बंदरोल स्थित सब्जी मंडी में बेचा जा रहा है. उन्होंने बताया कि रोजाना सेब की दर्जनों जीपें मंडियों में जा रही हैं. सेब सैंज घाटी की आर्थिकी की रीढ़ है.
बागवान शेर नेगी कहते हैं कि इस बार सेब की बंपर पैदावार होने से बागवान खुश हैं और स्थानीय मंडियों में सेब की बाढ़ आ गई है. उन्होंने बताया कि बाहरी मंडियों के लिए कई गाड़ियां भेजी जा चुकी हैं, लेकिन कीमत में आई गिरावट से घाटी के ऊपरी क्षेत्र में अभी भी 25 फीसदी सेब पेड़ पर ही है.