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लाहौल व कुल्लू में फागली उत्सव की धूम, पारंपरिक व्यंजनों की खुशबू से महक उठी घाटी

जनजातीय जिला लाहौल स्पीति में हालड़ा के बाद अब फागली उत्सव की धूम शुरू हो गई है. वहीं, कुल्लू में भी लाहौल के लोगों ने फागली उत्रसव को मनाया. इस दौरान घरों में खूब मेहमाननवाजी भी की गई और पारंपरिक व्यंजनों की खुशबू से घाटी महक उठी.

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Published : Feb 24, 2020, 4:45 PM IST

Updated : Feb 24, 2020, 5:32 PM IST

fagli festival celebrated in kullu
लाहौल व कुल्लू में फागली उत्सव की धूम

कुल्लू: जनजातीय जिला लाहौल स्पीति में हालड़ा के बाद अब फागली उत्सव की धूम शुरू हो गई है. वहीं, कुल्लू में भी लाहौल के लोगों ने फागली उत्सव को मनाया. इस दौरान घरों में खूब मेहमाननवाजी भी की गई और पारंपरिक व्यंजनों की खुशबू से घाटी महक उठी.

जनजातीय क्षेत्र लाहौल की पट्टन घाटी के मूलिंग, गोशाल, जहालमा से लेकर तिंदी तक फागली उत्सव धूमधाम के साथ मनाया गया. गोशाल में ग्रामीणों ने स्थानीय मंदिर में एकत्रित होकर पूजा-अर्चना की और सामूहिक भोज का आयोजन किया.

वहीं, घाटी के अन्य हिस्सों में भी ग्रामीणों ने अपने-अपने ईष्ट देवी-देवताओं की पूजा के बाद गांव के सभी घरों में जाकर पारंपरिक पकवानों का आदान प्रदान कर खुशियां बांटी. इस मौके पर पारंपरिक व्यंजनों की खुशबू से घाटी महक उठी. फागली के दिन घाटी के लोगों ने अपने बुजुर्गों को जूब भेंट कर आशीर्वाद लिया.

लाहौल की भिन्न-भिन्न घाटी के लोगों ने फागली को अलग-अलग नाम दिए हैं. इनमें कुहन, कुस, फागली, लोसर व जुकारू शामिल हैं. फागली की पूर्व संध्या पर लोगों ने माता लक्ष्मी की पूजा के बाद इष्ट देवों से सुख-समृद्धि व खुशहाली की कामना की.

मान्यता है कि सर्दियों में बर्फ अधिक पड़ने से लोग कई महीनों तक एक-दूसरे से अलग-थलग पड़ जाते थे. स्थानीय निवासी शमशेर सिंह का कहना है कि सर्दियों में राक्षसों एवं आसुरी शक्तियों का आतंक अधिक हो जाने के कारण लोग घरों से बाहर कम ही निकलते थे. ऐसे में लोग इष्ट देवी-देवताओं से प्रार्थना करते थे कि उनकी रक्षा की जाए.

बता दें कि फागली उत्सव को लाहौल घाटी में नया साल के रूप में मनाया जाता है और बौद्ध धर्म के लोगों का भी नया साल शुरू होता है. फागली उत्सव घाटी में 3 दिनों तक मनाया जाएगा और इस दौरान मेहमाननवाजी का भी दौर चलता रहेगा.

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कुल्लू: जनजातीय जिला लाहौल स्पीति में हालड़ा के बाद अब फागली उत्सव की धूम शुरू हो गई है. वहीं, कुल्लू में भी लाहौल के लोगों ने फागली उत्सव को मनाया. इस दौरान घरों में खूब मेहमाननवाजी भी की गई और पारंपरिक व्यंजनों की खुशबू से घाटी महक उठी.

जनजातीय क्षेत्र लाहौल की पट्टन घाटी के मूलिंग, गोशाल, जहालमा से लेकर तिंदी तक फागली उत्सव धूमधाम के साथ मनाया गया. गोशाल में ग्रामीणों ने स्थानीय मंदिर में एकत्रित होकर पूजा-अर्चना की और सामूहिक भोज का आयोजन किया.

वहीं, घाटी के अन्य हिस्सों में भी ग्रामीणों ने अपने-अपने ईष्ट देवी-देवताओं की पूजा के बाद गांव के सभी घरों में जाकर पारंपरिक पकवानों का आदान प्रदान कर खुशियां बांटी. इस मौके पर पारंपरिक व्यंजनों की खुशबू से घाटी महक उठी. फागली के दिन घाटी के लोगों ने अपने बुजुर्गों को जूब भेंट कर आशीर्वाद लिया.

लाहौल की भिन्न-भिन्न घाटी के लोगों ने फागली को अलग-अलग नाम दिए हैं. इनमें कुहन, कुस, फागली, लोसर व जुकारू शामिल हैं. फागली की पूर्व संध्या पर लोगों ने माता लक्ष्मी की पूजा के बाद इष्ट देवों से सुख-समृद्धि व खुशहाली की कामना की.

मान्यता है कि सर्दियों में बर्फ अधिक पड़ने से लोग कई महीनों तक एक-दूसरे से अलग-थलग पड़ जाते थे. स्थानीय निवासी शमशेर सिंह का कहना है कि सर्दियों में राक्षसों एवं आसुरी शक्तियों का आतंक अधिक हो जाने के कारण लोग घरों से बाहर कम ही निकलते थे. ऐसे में लोग इष्ट देवी-देवताओं से प्रार्थना करते थे कि उनकी रक्षा की जाए.

बता दें कि फागली उत्सव को लाहौल घाटी में नया साल के रूप में मनाया जाता है और बौद्ध धर्म के लोगों का भी नया साल शुरू होता है. फागली उत्सव घाटी में 3 दिनों तक मनाया जाएगा और इस दौरान मेहमाननवाजी का भी दौर चलता रहेगा.

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Last Updated : Feb 24, 2020, 5:32 PM IST
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