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सेना की नौकरी छोड़ पर्यावरण बचा रहे भगवंत राणा, जीभी गांव को बना रहे पर्यटक स्थल - जीभी गांव कुल्लू

उपमंडल बंजार के जीभी गांव को पर्यटक स्थल बनाने के लिए भगवान सिंह राणा अपना अहम योगदान दे रहे हैं. साल 1992 में सेना की नौकरी छोड़ने के बाद जब भगवान सिंह राणा वापस जीभी गांव आए और गांव की सुंदरता को पूरे दुनिया में उबारने के लिए उन्होंने इको टूरिज्म की शुरुआत की.

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जीभी गांव
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Published : Feb 8, 2020, 7:51 PM IST

कुल्लू: जिला के प्राकृतिक सुंदरता से भरे गांव बाहरी राज्यों के पर्यटकों का मन मोह रहे हैं. उसी में से एक उपमंडल बंजार का जीभी गांव जो देशी व विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है. गांव को पर्यटक की द्रष्टि से विकसित करने के लिए ग्रामीण भगवंत सिंह राणा ने विशेष भूमिका अदा की है.

साल 1992 में सेना की नौकरी छोड़ने के बाद जब भगवान सिंह राणा वापस जीभी गांव आए, तो यहां की सुंदरता को पूरे दुनिया में उबारने के लिए उन्होंने इको टूरिज्म की शुरुआत की. हालांकि उनके इस प्रयास को देखकर पहले गांव के लोग उन्हें पागल समझते थे, लेकिन धीरे-धीरे जब जीबी गांव के सौंदर्य को देखने के लिए पर्यटक पहुंचने लगे तो उन्होंने भी सहयोग देना शुरू किया.

वीडियो

भगवंत सिंह राणा के प्रयासों से आज पूरे गांव में इको टूरिज्म पॉलिसी के तहत छोटे-छोटे गेस्ट हाउस व कॉटेज का निर्माण किया जा रहा है. उन्होंने जीभी खड्ड में बनने वाले हाइड्रो प्रोजेक्ट के खिलाफ भी लंबी लड़ाई लड़ी और आखिर इस लंबी लड़ाई का नतीजा उनके पक्ष में आया. उसके बाद गांव के कई युवा भी उनकी इस मुहिम के साथ जुड़ते गए और गांव का विकास होता गया .

जिला कुल्लू के अन्य पर्यटन स्थलों पर बड़े-बड़े कंक्रीट के भवनों को देखकर उन्होंने निर्णय लिया कि जीभी गांव में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए मिट्टी के पुराने घरों का निर्माण किया जाएगा, जिससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा. भगवान सिंह राणा ने जीभी गांव को कचरे से मुक्त रखने के लिए भी ग्रामीणों के साथ कई अभियान चलाते हैं और स्कूल के बच्चों को भी जागरूक करते हैं.

ये भी पढ़ें: धारा-118 का उल्लंघन: उद्योग लगाने के नाम पर एंठी जमीन, विजिलेंस जांच शुरू

भगवान सिंह राणा ने बताया कि सेना की नौकरी के दौरान जब उनकी पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर में हुई थी. तभी उन्हें वहां के जंगलों को देखकर लगा कि वैसे ही जंगल उनके गांव में भी है, तो ऐसे में वहां पर भी पर्यटन को शुरू किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि पहले उन्होंने इस मुहिम को अकेले ही शुरू किया था, लेकिन फिर धीरे-धीरे दूसरे लोग भी अपना सहयोग देने लगे.

भगवान सिंह राणा ने बताया कि हमारी मुहिम का नतीजा ये हुआ है कि अब हर साल हजारों सैलानी जीभी गांव आते हैं और ग्रामीणों को घर पर ही रोजगार मिल रहा है. अब ग्रामीणों ने भी ये निर्णय लिया है कि वे कंक्रीट के भवन ना बनाकर अपने घरों को मिट्टी पत्थर और लकड़ी से बनाएंगे, ताकि यहां आने वाले पर्यटक अपने आप को प्रकृति के नजदीक महसूस कर सकें.

कुल्लू: जिला के प्राकृतिक सुंदरता से भरे गांव बाहरी राज्यों के पर्यटकों का मन मोह रहे हैं. उसी में से एक उपमंडल बंजार का जीभी गांव जो देशी व विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है. गांव को पर्यटक की द्रष्टि से विकसित करने के लिए ग्रामीण भगवंत सिंह राणा ने विशेष भूमिका अदा की है.

साल 1992 में सेना की नौकरी छोड़ने के बाद जब भगवान सिंह राणा वापस जीभी गांव आए, तो यहां की सुंदरता को पूरे दुनिया में उबारने के लिए उन्होंने इको टूरिज्म की शुरुआत की. हालांकि उनके इस प्रयास को देखकर पहले गांव के लोग उन्हें पागल समझते थे, लेकिन धीरे-धीरे जब जीबी गांव के सौंदर्य को देखने के लिए पर्यटक पहुंचने लगे तो उन्होंने भी सहयोग देना शुरू किया.

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भगवंत सिंह राणा के प्रयासों से आज पूरे गांव में इको टूरिज्म पॉलिसी के तहत छोटे-छोटे गेस्ट हाउस व कॉटेज का निर्माण किया जा रहा है. उन्होंने जीभी खड्ड में बनने वाले हाइड्रो प्रोजेक्ट के खिलाफ भी लंबी लड़ाई लड़ी और आखिर इस लंबी लड़ाई का नतीजा उनके पक्ष में आया. उसके बाद गांव के कई युवा भी उनकी इस मुहिम के साथ जुड़ते गए और गांव का विकास होता गया .

जिला कुल्लू के अन्य पर्यटन स्थलों पर बड़े-बड़े कंक्रीट के भवनों को देखकर उन्होंने निर्णय लिया कि जीभी गांव में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए मिट्टी के पुराने घरों का निर्माण किया जाएगा, जिससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा. भगवान सिंह राणा ने जीभी गांव को कचरे से मुक्त रखने के लिए भी ग्रामीणों के साथ कई अभियान चलाते हैं और स्कूल के बच्चों को भी जागरूक करते हैं.

ये भी पढ़ें: धारा-118 का उल्लंघन: उद्योग लगाने के नाम पर एंठी जमीन, विजिलेंस जांच शुरू

भगवान सिंह राणा ने बताया कि सेना की नौकरी के दौरान जब उनकी पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर में हुई थी. तभी उन्हें वहां के जंगलों को देखकर लगा कि वैसे ही जंगल उनके गांव में भी है, तो ऐसे में वहां पर भी पर्यटन को शुरू किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि पहले उन्होंने इस मुहिम को अकेले ही शुरू किया था, लेकिन फिर धीरे-धीरे दूसरे लोग भी अपना सहयोग देने लगे.

भगवान सिंह राणा ने बताया कि हमारी मुहिम का नतीजा ये हुआ है कि अब हर साल हजारों सैलानी जीभी गांव आते हैं और ग्रामीणों को घर पर ही रोजगार मिल रहा है. अब ग्रामीणों ने भी ये निर्णय लिया है कि वे कंक्रीट के भवन ना बनाकर अपने घरों को मिट्टी पत्थर और लकड़ी से बनाएंगे, ताकि यहां आने वाले पर्यटक अपने आप को प्रकृति के नजदीक महसूस कर सकें.

Intro:
Special news for desk anjli tiwari
एक ऐसा व्यक्ति जो उम्र के ढलते पड़ाव में भी बचा रहा पर्यावरण
जीभी गांव में नेचर टूरिज्म को दे रहा बढ़ावा
नेचर की सुरक्षित करने का युवाओं को दे रहा ज्ञान
सेना की नोकरी के बाद जीभी गांव को बनाया टूरिज्म का हबBody:




जिला कुल्लू के प्राकृतिक सुंदरता से भरे गांव आज बाहरी राज्यों के पर्यटकों का मन मोह रहे हैं तो वहीं उपमंडल बंजार का जीभी गांव भी देसी व विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनते जा रहा हैं। जीभी गांव जहां गर्मियों में सैलानियों से भरा रहता है तो वहीं सर्दियों में भी यहां की सुंदरता को निहारने के लिए पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है। लेकिन कुछ सालों पहले इस गांव को कोई नहीं जानता था। इस गांव के एक व्यक्ति की दृढ़शक्ति से यह टूरिज्म का हब बनता जा रहा है। ग्रामीण भगवंत सिंह राणा के प्रयासों से आज पूरे गांव में इको टूरिज्म पॉलिसी के तहत छोटे-छोटे गेस्ट हाउस व कॉटेज का निर्माण किया जा रहा है। तो वही गांव की सुंदरता को बचाए रखने के लिए भी इनका प्रयास सराहनीय है। साल 1992 में सेना की नौकरी छोड़ने के बाद जब भगवान सिंह राणा वापस अपने जीभी गांव आए तो यहां की सुंदरता को पूरे दुनिया में उबारने के लिए उन्होंने इको टूरिज्म की शुरुआत की। हालांकि उनके इस प्रयास को देखकर पहले गांव के लोग उन्हें पागल समझते थे। लेकिन धीरे-धीरे जब जीबी गांव के सौंदर्य को देखने के लिए पर्यटक यहां पहुंचने लगे और यहां के लोगों के लिए भी रोजगार के द्वार खुलते गए। भगवान सिंह राणा ने जीभी खड्ड में बनने वाले हाइड्रो प्रोजेक्ट के खिलाफ भी लंबी लड़ाई लड़ी और आखिर इस लंबी लड़ाई का नतीजा उनके पक्ष में आया। उसके बाद से गांव के कई युवा भी उनकी इस मुहिम के साथ जुड़ते गए और आज जीभी गांव किसी परिचय का मोहताज नहीं है। जिला कुल्लू के अन्य पर्यटन स्थलों पर बड़े-बड़े कंक्रीट के भवनों को देखकर उन्होंने निर्णय लिया कि जीभी गांव में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए मिट्टी के पुराने घरों का निर्माण किया जाएगा जो पूरी तरह से पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं। वही जीभी गांव को कचरे से मुक्त रखने के लिए भी वे ग्रामीणों के संग मिलकर अभियान चलाते हैं तथा इस बारे में विशेष रूप से स्कूल के बच्चों को भी जागरूक किया जाता है। भगवान सिंह राणा ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि सेना की नौकरी के दौरान जब उनकी पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर में थी तो उन्हें वह
वहां के जंगलों को देखकर लगा कि ठीक वैसे ही जंगल और पर्यावरण उनके गांव में भी है तो ऐसे में वहां पर भी पर्यटन को शुरू किया जा सकता है। Conclusion:

इस मुहिम में वे काफी समय तक अकेले ही चले रहे लेकिन जब पर्यटकों का आना बढ़ने लगा तो गांव के कुछ और अन्य लोग भी उनके साथ इस मुहिम में जुड़ गए। जिसका नतीजा यह है कि अब हर साल हजारों सैलानी जीभी गांव आते हैं और ग्रामीणों को घर पर ही रोजगार मिल रहा है। अब ग्रामीणों ने भी यह निर्णय लिया है कि वे कंक्रीट के भवन ना बनाकर अपने घरों को मिट्टी पत्थर और लकड़ी से बनाएंगे ताकि यहां आने वाले पर्यटक अपने आप को प्रकृति के नजदीक महसूस कर सकें।
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