कुल्लू: हिमाचल प्रदेश सरकार के द्वारा प्राकृतिक खेती के लिए जहां किसानों को (Natural Farming In Himachal) जागरूक किया जा रहा है तो वहीं, प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण भी आम किसानों के काम आ रहा है. प्राकृतिक खेती से कृषि उत्पादों की गुणवत्ता भी बढ़ रही है. वहीं, किसान भी अब इसकी ओर आकर्षित होने लगे हैं. जिला कुल्लू के उपमंडल आनी में भी एक व्यक्ति ने सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद घर आकर खेतीबाड़ी में रुचि दिखाई. किसान बालक राम का कहना है कि रसायनिक खेती में काफी मेहनत करने के बाद भी आय कम और खर्च अधिक आ रहा था. ऐसे में धीरे-धीरे, नए-नए तरीके अपनाकर बागीचे की देखभाल करता रहा. इसके बाद प्राकृतिक विधि से खेती की तो आय में दोगुना इजाफा हुआ है.
प्रशिक्षण शिविर ने बदल दी जिंदगी: जिला कुल्लू के आनी खंड के बखनाओं पंचायत निवासी बालक राम की जिंदगी एक प्रशिक्षण शिविर ने बदल दी. वर्ष 2019 में बागवानी के प्रशिक्षण के लिए नौणी विश्वविद्यालय पहुंचे बालक राम किसी वजह से बागवानी का (Balak Ram is doing natural farming) प्रशिक्षण नहीं ले पाए. वह विश्वविद्यालय परिसर से वापस आने का सोच ही रहे थे तभी उन्हें प्राकृतिक खेती के ऊपर आयोजित हो रहे प्रशिक्षण शिविर के बारे में पता चला. उत्सुकतावश वह प्राकृतिक खेती के इस शिविर में जा पहुंचे. वहां मिली शुरुआती जानकारी से बालक राम इतने प्रभावित हुए कि इस विधि का पूरा प्रशिक्षण हासिल करने के बाद ही घर लौटे.
प्राकृतिक विधि से सेब के अलावा ये फसलें भी उगाई: एसडीएम कार्यालय से बतौर अधीक्षक सेवानिवृत्त बालक राम ने बताया कि सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने खेती-बागवानी के ऊपर पूरा समय देना शुरू किया. नौणी में एक महीने के प्रशिक्षण के बाद उन्होंने घर लौटकर प्राकृतिक विधि से टमाटर लगाया. स्थानीय संसाधनों और देसी गाय के गोबर- गोमूत्र से तैयार आदानों का इस्तेमाल करने पर उन्हें अच्छे परिणाम मिले और अन्य फसलों एवं सेब पर भी इस विधि का प्रयोग करना शुरू किया. बालक राम अभी तक प्राकृतिक विधि से फ्रासबीन, लहसुन, मूली, मटर, गोभी, प्याज, सेब और राजमाह जैसी फसलें ले चुके हैं.
सेब में सड़न रोग की समस्या से निपटने में खट्टी लस्सी कारगर: 3.5 बीघा भूमि (जिसमें 105 और 40, 40 वर्ग मीटर के तीन पॉलीहाउस शामिल हैं) पर कृषि बागवानी के दौरान उन्हें कुछ अनुभव भी हुए हैं. जिसमे उन्होंने प्राकृतिक खेती से सब्जियों के पत्तों पर आने वाले पीलेपन से छुटकारा पाया. वहीं, सेब में सड़न रोग की समस्या से निपटने में खट्टी लस्सी कारगर सिद्ध हुई है. आदानों के प्रयोग से फसल सुरक्षा भी पहले की तुलना में बेहतर हुई है. बालक राम ने बताया (Balak Ram is doing natural farming) कि पहले 80 प्रतिशत पौधों पर आकस्मिक पतझड़ रोग का प्रकोप होता था जो अब घटकर 40 प्रतिशत के आसपास रह गया है. 2020 में सेब की फसल पर मौसम की मार से फ्रूट सेटिंग सही नहीं हुई, जिससे सेब के उत्पादन में कमी आई. हालांकि बाकी फसलों की इस साल अच्छी उपज रही.
किसानों को देते हैं उन्नत बीज: इसी साल बालक राम ने बीज संरक्षण करना और साथी किसानों को उन्नत बीज देना शुरू किया है. वह किसानों को गेहूं की बंसी किस्म का बीज और आधा दर्जन सब्जियों के बीज भी दे रहे हैं. अपने खेत और बागीचे में वह अन्य फसलों, फलदार पौधों और फूलों की दिशा में काम कर रहे हैं. किसान बालक राम के पास कुल 14.5 बीघा भूमि है. इसमें से शुरू में पांच बीघा में प्राकृतिक खेती पर कार्य किया. इसमें गोभी, टमाटर, बैंगन, फ्रासबीन, लहसुन, मूली, प्याज, मटर, राजमाह की खेती कर रहे हैं.
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