कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में आज भी सदियों पुरानी परंपराएं कायम हैं. कुल्लू में एक-दो दिन ही नहीं बल्कि पूरे 40 दिनों तक इस तरह की होली मनाता है. बैरागी समुदाय (bairagi community in kullu) के लोग होली के रंगों में रिश्तों की इस डोर को पिछले करीब साढ़े तीन सौ सालों से संभाले हुए हैं. इस रिवायत को इतने लंबे समय से निभाते रहे हैं. लिहाजा, बैरागी समुदाय के लोगों द्वारा मनाई जाने वाली यह होली रिश्तों की अहमियत से काफी मायने रखती है. ब्रज की भाषा में होली के गीत वृंदावन के बाद कुल्लू घाटी में ही गूंजते हैं.
बैरागी समुदाय के लोग टोलियां बनाकर ब्रज भाषा में होली के गीत गा रहे हैं. रघुनाथ मंदिर में भी होली के गीत गाए जा रहे हैं. बैरागी समुदाय की ओर से मनाई जाने वाली इस होली का संबंध नग्गर के झीड़ी और राधा कृष्ण मंदिर नग्गर ठावा से भी है. होलिका दहन के दूसरे दिन भगवान रघुनाथ के मंदिर में कार्यक्रम का आयोजन होता है. इस दौरान भगवान रघुनाथ को झूला झुलाया जाएगा.
16वीं सदी में हुआ था भगवान रघुनाथ का कुल्लू आगमन- भगवान रघुनाथ के कुल्लू आगमन पर 16वीं सदी से लेकर अयोध्या की तर्ज पर होली उत्सव की परंपरा चली आ रही है. उस समय से बैरागी समुदाय के लोग इस परंपरा को निभा रहे हैं. होलाष्टक में 8 दिन तक संध्या बेला में समुदाय के लोग होली गीत गाते हैं. होलिका दहन के दूसरे दिन भगवान रघुनाथ मंदिर में विशेष कार्यक्रम में शामिल होते हैं. इसके साथ होली उत्सव का समापन होता है.
हर रोज हो रहा होली गायन- समुदाय से जुड़े राजकुमार महंत, एकादशी महंत, श्याम सुंदर महंत और विनोद महंत ने कहा कि अधिष्ठाता भगवान रघुनाथ के मंदिर में होली तक हर दिन बैरागी समुदाय की ओर से होली गायन के साथ होली खेली जाएगी. इसके साथ ही हनुमान मंदिर महंतबेहड़ में भी होली गायन का आयोजन हर रोज किया जा रहा है. स्थानीय निवासी प्रदीप कपूर का कहना है कि होली गायन के माध्यम से ब्रज भाषा में होली के गीत गाये जा रहे है और भगवान रघुनाथ के मंदिर में भी भक्तों द्वारा भजन किया जा रहा है.
वसंत पंचमी से हो जाती है होली की शुरुआत- जानकारों के मुताबिक जब वसंत पंचमी के अवसर पर भगवान रघुनाथ की रथयात्रा रघुनाथपुर से निकलती है तो वहां से हनुमान का वेश धारण किए हुए बैरागी समुदाय का व्यक्ति लोगों पर गुलाल डालना शुरू कर देता है. इसके बाद पैदल यात्रा रथ मैदान पहुंचती हैं. जहां पर रथ में विराज कर भगवान रघुनाथ अपने अस्थायी शिविर पहुंचते हैं. इस रथ को रस्सियों से खींचकर अस्थायी शिविर तक लाया जाता है. इस दौरान जिस पर यह गुलाल गिरता है, वह शुभ माना जाता है. इसके बाद भगवान रघुनाथ की पूजा अर्चना और भरत मिलाप होने के बाद भगवान रघुनाथ से लोग आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और शाम को रघुनाथ जी वापस रघुनाथपुर चले जाते हैं.
भगवान रघुनाथ के साथ होली खेलता है बैरागी समुदाय- बैरागी समुदाय के एकादशी महंत व श्याम सुंदर ने बताया कि 16वीं सदी का समृद्ध इतिहास है. जब रघुनाथ जी इस देवभूमि में पधारे तब से यहां पर होली पर्व मनाया जाने लगा. उन्होंने कहा कि इसके पीछे आदि वैष्णव संत बिहारी जी का नाम आता है, जिनके सुझाव से अयोध्या से यह मूर्ति आई थी और होली का पर्व वसंत पंचमी से शुरू होता है. हर होलाष्टक को संध्या बेला में बैरागी समुदाय के लोग मंदिर में जाकर रघुनाथ जी के साथ होली खेलते हैं. इसके साथ ही नग्गर के ठावा में स्थित राधा कृष्ण मंदिर मे भी होली गायन का आयोजन किया गया है.