कुल्लूः जिला के कई क्षेत्रों में सेब के बगीचों में स्कैब बीमारी लगने से सेब की फसल को इस साल भारी नुकसान हुआ है. पहले ओलावृष्टि के कारण सेब और अन्य फलों को नुकसान हुआ था, लेकिन अब स्कैब के कारण भी बागवानों को आर्थिक तौर पर काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. कुल्लू के अलावा शिमला, मंडी और किन्नौर में भी स्कैब की समस्या सेब हो रही है.
बागवानों को सब्जी मंडी में स्कैब वाला सेब आधे दामों में बेचना पड़ रहा है. गौर रहे कि अस्सी के दशक में पूरे सूबे में स्कैब का कहर बरसा था. बागवानी विभाग के विशेषज्ञों के अथक प्रयास से इससे बागवानों को निजात मिली थी, लेकिन स्कैब बीमारी का प्रकोप एक बार फिर बढ़ने लगा है. विशेषज्ञों की मानें तो अधिक नमी और चांदीनुमा कली और हरी कली अवस्था में जिन बागवानों ने स्प्रे नहीं की है, उन क्षेत्रों में स्कैब का प्रकोप दिखाई दे रहा है.
कुल्लू, बंजार, आनी, निरमंड, नग्गर खंडों में स्कैब कहर बरस रहा है. घाटी के बागवान अमित, ज्ञान ठाकुर, अशोक ठाकुर, घणू राम, रविंद्र शर्मा, कर्म चंद, रामनाथ, मोहर सिंह, नवीन ने कहा कि स्कैब के कारण सेब भी मंडी में कम रेट में बिक रहा है.
इससे बागवानों को काफी नुकसान हो रहा है. किसान सभा के उपाध्यक्ष देव राज नेगी ने सरकार से मांग की है कि स्कैब रोग से ग्रस्त सेब को सरकार 1982 की तर्ज पर खरीद फरोख्त करे. उन्होंने कहा कि स्कैब वाला सेब न खरीदने से बागवानों को काफी नुकसान झेलना पड़ सकता है. उन्होंने कहा कि इससे पता चलेगा कि सरकार बागवानों की कितनी हितैषी है.
वहीं, बागवानी विभाग के विषयवाद विशेषज्ञ उत्तम पराशर ने कहा कि जिला के सभी ब्लॉकों से स्कैब रोग की रिपोर्ट है. उन्होंने कहा कि बागवानों ने दवा के छिड़काव के बारे में अवगत करवाया है. पराशर ने कहा कि अब बीमारी पर काफी नियंत्रण है. जिन बागवानों ने चांदी कली और हरी कली की अवस्था में दवा का छिड़काव नहीं किया है, उन बगीचों में रोग पनपा है.
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