धर्मशाला: अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस (International Justice day) के मौक पर रविवार को मैकलोडगंज में चीन की दमनकारी नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया (Tibetans protest against China in Mcleodganj) गया. प्रदर्शन के माध्यम से नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ तिब्बत (National Democratic Party of Tibet), गुचु सुम मूवमेंट एसोसिएशन ऑफ तिब्बत और स्टूडेंट फॉर फ्री तिब्बत के सदस्यों ने लोगों को चीन की तिब्बत विरोधी नितियों के बारे में बताया.
इस दौरान तिब्बती वुमन एसोसिएशन (Tibetan Women Association) की उपाध्यक्ष श्रृंग डोलमा ने कहा कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की तानाशाही के तहत तिब्बत के अंदर अन्यायपूर्ण मानवाधिकार स्थितियों को स्वीकार करते हुए इस दिन को मनाना महत्वपूर्ण है. उन्होंने ने कहा कि 20वीं सदी के दौरान चीनी कम्युनिस्ट शासन ने तिब्बत के अमदो और खाम प्रांतों को उपनिवेश बनाकर तिब्बत पर आक्रमण शुरू किया था. 1959 में चीन ने तिब्बत पर पूर्ण कब्जा कर लिया था. तब से तिब्बती प्रतिरोध आंदोलन पर नकेल कसने के लिए तिब्बत में मार्शल लॉ लगाया गया है. जिसके परिणाम स्वरूप तिब्बत की 60 लाख की आबादी को प्रताड़ित किया गया. जबकि कई तिब्बतियों को अपनी जान भी गवानी पड़ी और कईयों को अपनी मातृभूमि से बेदखल कर दिया गया.
उन्होंने कहा कि तिब्बत में तिब्बतियों को न्याय से वंचित रखा गया है और वे बुनियादी मानवाधिकारों और स्वतंत्रता के खिलाफ अत्याचारों का सामना कर रहे हैं. तिब्बत के अंदर मानवाधिकारों की गंभीर स्थिति का प्रमाण इस तथ्य से अधिक भयावह नहीं है कि 6 साल की छोटी उम्र में पंचेन लामा का जबरन अपहरण कर लिया गया. उन्होंने कहा कि अक्टूबर 2016 में उन्हें अलगाववाद को उकसाने के लिए दोषी करार देते हुए जेल भेज दिया गया था. वहीं, जेल में क्रूर और अमानवीय व्यवहार के कारण उनकी तबियत बिगड़ने से इसी साल उनका निधन हो गया था.
उन्होंने कहा कि चीनी पुलिस ने 23 जून 2022 को जुमकर नाम की एक तिब्बती महिला को सिर्फ 14वें दलाई लामा की एक तस्वीर रखने पर गिरफ्तार कर लिया गया था. उन्होंने कहा कि कई तिब्बती शहीदों ने कारावास के दौरान कठोर उत्पीड़न सहकर अपनी जान गवाई है. उनका ये योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकता है.