धर्मशाला: हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला में स्थित बैजनाथ धाम वह स्थान है जहां दशहरा उत्सव नहीं मनाया जाता. पूरा देश जहां रावण ,मेघनाद तथा कुम्भकर्ण के पुतले जला कर बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाते हैं. वहीं, बैजनाथ में पुतले न जला कर रावण को सम्मान दिया जाता है.
बैजनाथ को बैद्यनाथ धाम से भी जाना जाता है. माना जाता है कि यहां रावण ने कई वर्ष घोर तपस्या की थी. एक कथा के अनुसार रावण भगवान शिव की आराधना कर शिवलिंग को लंका ले जा रहा था. रास्ते में रावण को लघुशंका का आभास हुआ.
रावण हाथ में पकड़े शिवलिंग को एक गवाले के पास सौंप कर चला गया, लेकिन गवाला शिवलिंग को जमीन पर रखकर वहां से चला गया. लघुशंका से वापस आने पर रावण ने शिविलंग को उठाने की पूरी कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हुआ. इसके बाद से ये शिवलिंग यहीं स्थापित हो गया. आज यहां एक भव्य मंदिर बना है जिसे बैजनाथ शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है.
बैजनाथ को रावण की तपोस्थली भी कहा जाता है. कहा जाता है कि बैजनाथ और पपरोला कस्बे के लोगों ने कई बार दशहरा मानाने की कोशिश की, लेकिन रावण के पुतले में आग लगाने वाले की मौत हो जाती है. दूसरी बात बैजनाथ में कोई भी सुनार की दुकान नहीं है. इसका कारण यह है कि भगवान शिव ने वरदान स्वरुप सोने की लंका रावण को दी थी. यही वजह है की यहां सुनार की दुकान नहीं है, जब कभी यहां किसी ने यहां सुनार की दुकान खोली भी है तो वह उजड़ गयी.