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यहां नहीं होता रावण दहन, दशहरा मनाने वाले की हो जाती है मौत!

बैजनाथ को बैद्यनाथ धाम से भी जाना जाता है. माना जाता है कि यहां रावण ने कई वर्ष घोर तपस्या की थी. एक कथा के अनुसार रावण भगवान शिव की आराधना कर शिवलिंग को लंका ले जा रहा था. रास्ते में रावण को लघुशंका का आभास हुआ. रावण हाथ में पकड़े शिवलिंग को एक गवाले के पास सौंप कर चला गया

Special Story on Baijnath Temple Himachal
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Published : Oct 8, 2019, 11:45 AM IST

Updated : Oct 8, 2019, 4:59 PM IST

धर्मशाला: हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला में स्थित बैजनाथ धाम वह स्थान है जहां दशहरा उत्सव नहीं मनाया जाता. पूरा देश जहां रावण ,मेघनाद तथा कुम्भकर्ण के पुतले जला कर बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाते हैं. वहीं, बैजनाथ में पुतले न जला कर रावण को सम्मान दिया जाता है.

बैजनाथ को बैद्यनाथ धाम से भी जाना जाता है. माना जाता है कि यहां रावण ने कई वर्ष घोर तपस्या की थी. एक कथा के अनुसार रावण भगवान शिव की आराधना कर शिवलिंग को लंका ले जा रहा था. रास्ते में रावण को लघुशंका का आभास हुआ.

Special Story on Baijnath Temple Himachal
बैजनाथ मंदिर.

रावण हाथ में पकड़े शिवलिंग को एक गवाले के पास सौंप कर चला गया, लेकिन गवाला शिवलिंग को जमीन पर रखकर वहां से चला गया. लघुशंका से वापस आने पर रावण ने शिविलंग को उठाने की पूरी कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हुआ. इसके बाद से ये शिवलिंग यहीं स्थापित हो गया. आज यहां एक भव्य मंदिर बना है जिसे बैजनाथ शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है.

बैजनाथ को रावण की तपोस्थली भी कहा जाता है. कहा जाता है कि बैजनाथ और पपरोला कस्बे के लोगों ने कई बार दशहरा मानाने की कोशिश की, लेकिन रावण के पुतले में आग लगाने वाले की मौत हो जाती है. दूसरी बात बैजनाथ में कोई भी सुनार की दुकान नहीं है. इसका कारण यह है कि भगवान शिव ने वरदान स्वरुप सोने की लंका रावण को दी थी. यही वजह है की यहां सुनार की दुकान नहीं है, जब कभी यहां किसी ने यहां सुनार की दुकान खोली भी है तो वह उजड़ गयी.

धर्मशाला: हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला में स्थित बैजनाथ धाम वह स्थान है जहां दशहरा उत्सव नहीं मनाया जाता. पूरा देश जहां रावण ,मेघनाद तथा कुम्भकर्ण के पुतले जला कर बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाते हैं. वहीं, बैजनाथ में पुतले न जला कर रावण को सम्मान दिया जाता है.

बैजनाथ को बैद्यनाथ धाम से भी जाना जाता है. माना जाता है कि यहां रावण ने कई वर्ष घोर तपस्या की थी. एक कथा के अनुसार रावण भगवान शिव की आराधना कर शिवलिंग को लंका ले जा रहा था. रास्ते में रावण को लघुशंका का आभास हुआ.

Special Story on Baijnath Temple Himachal
बैजनाथ मंदिर.

रावण हाथ में पकड़े शिवलिंग को एक गवाले के पास सौंप कर चला गया, लेकिन गवाला शिवलिंग को जमीन पर रखकर वहां से चला गया. लघुशंका से वापस आने पर रावण ने शिविलंग को उठाने की पूरी कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हुआ. इसके बाद से ये शिवलिंग यहीं स्थापित हो गया. आज यहां एक भव्य मंदिर बना है जिसे बैजनाथ शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है.

बैजनाथ को रावण की तपोस्थली भी कहा जाता है. कहा जाता है कि बैजनाथ और पपरोला कस्बे के लोगों ने कई बार दशहरा मानाने की कोशिश की, लेकिन रावण के पुतले में आग लगाने वाले की मौत हो जाती है. दूसरी बात बैजनाथ में कोई भी सुनार की दुकान नहीं है. इसका कारण यह है कि भगवान शिव ने वरदान स्वरुप सोने की लंका रावण को दी थी. यही वजह है की यहां सुनार की दुकान नहीं है, जब कभी यहां किसी ने यहां सुनार की दुकान खोली भी है तो वह उजड़ गयी.

Intro:धर्मशाला- हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिला में स्थित बैजनाथ धाम वह स्थान है जहाँ दशहरा उत्सव नहीं मनाया जाता ! पूरा देश जहाँ रावण ,मेघनाथ तथा कुम्भकरण पुतले जला कर बुराई पर अच्छाई की विजय का उत्सव मनाते है वहीँ बैजनाथ क्षेत्र में रावण के पुतले न जला कर उसे सम्मान दिया जाता है। बैजनाथ ,बैद्यनाथ धाम से जाना जाता है जहाँ रावण ने कई वर्ष घोर तपस्या करके भगवान् शिव को प्रसन्न कर शिवलिंग स्थापित किया था ओर यह स्थान रावण की तपस्थली माना जाता है जनश्रुति के अनुसार जब रावण भगवान् शिव की आराधना करके शिवलिंग को लंका ले जाते हुए लघुशंका हेतु इस स्थान पर रुका तब शिवलिंग यहीं पर स्थपित हो गया तथा रावण ने यहीं पर अपनी तपस्या कर भगवन शिव का आशीर्वाद प्राप्त किया !

Body: इस लिए बैजनाथ को रावण की तपस्थली भी कहा जाता है ! बैजनाथ व् पपरोला कस्वे के लोगों ने दशहरा मानाने की कौशिश की तो पुतलों को आग लगाने वाले व्यक्ति की लगातार तीन वर्ष तक जाने गवाने पड़ी ! यहाँ पर रावन को सम्मान देते हुए दशहरा पर्व न मनाने का प्रचलन चल पड़ा !
दू सरी बात बैजनाथ में यह है कि यहाँ कोई भी सुनार की दुकान नहीं है।

Conclusion: इसका कारन यह है कि भगवान् शिव ने वरदान स्वरुप सोने की लंका रावण को दी थी ! यही वजह है की यहाँ सुनार की दुकान नहीं है ,जब कभी यहां किसी ने दुकान खोली भी है तो वह दुकान उजड़ गयी ! वही मन्दिर के पुजारी सुरेंद्र शर्मा ने कहा कि मंदिर में बिराजमान शिव भगवान की मूर्ति को लेकर धारणा यह है कि मूर्ति वही जिसे रावण लंका ले जा रहे थे और रास्ते मे लघु शंका लगने से उन्हें रुकना पड़ा और यह मूर्ति यही विराजित हो गई। उन्होंने कहा कि रावण शिव भगवान के परम भक्त थे यही वजह है कि बैजनाथ में रावण दहन नही किया जाता है।
Last Updated : Oct 8, 2019, 4:59 PM IST
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