धर्मशालाः बुद्ध पूर्णिमा पर तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा ने सभी बौद्ध भिक्षुओं को बधाई देते हुए विश्व शांति व विश्व कल्याण के साथ-साथ जल्द इस कोरोना वैश्विक महामारी के खात्मे की कामना की है. तिब्बती धर्म गुरु दलाईलामा ने कहा कि आज से कई वर्ष पूर्व उन्होंने बच्चे के रूप में अपनी बौद्ध शिक्षा शुरू की थी, जो आज भी निरंतर जारी है.
वह 21वीं सदी के बौद्ध होने के लिए बौद्धों को प्रोत्साहित करते हैं. बुद्ध की शिक्षाओं का वास्तव में क्या अर्थ है और इसे लागू करना है. इसमें सुनना और पढ़ना, जो आपने सुना और पढ़ा है, उसके बारे में सोचना और इससे खुद को गहराई से परिचित करना शामिल है. हालांकि, बुद्ध के समय से हमारी दुनिया में काफी बदलाव आया है, लेकिन उनकी शिक्षा का सार आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना 2600 साल पहले था.
तिब्बती धर्म गुरु दलाईलामा ने कहा कि पाली परंपरा और संस्कृत परंपरा दोनों में अज्ञान और पीड़ा से मुक्ति पाने के तरीके हैं. उन्होंने कहा कि बुद्ध ने ने प्राणियों और पशु पक्षियों को नुकसान ना पहुंचाने और मानवता की सेवा का संदेश दिया है. जब हम बुद्ध के जन्म, ज्ञानोदय और महा परिनिर्वाण में प्रवेश करते हैं, तो मैं दुनिया भर के बौद्धों को बधाई देता हूं.
बुद्ध की शिक्षा अनिवार्य रूप से व्यावहारिक
दलाई लामा ने कहा कि बुद्ध की शून्यता पर ध्यान में पूर्ण लीनता प्रज्ञा सत्य शरीर है, जिससे वे विभिन्न रूपों में प्रकट होते हैं. संपूर्ण भोग शरीर आर्य बोधिसत्वों को दिखाई देता है, जबकि मुक्ति शरीर सभी को दिखाई देता है. बुद्ध की शिक्षा अनिवार्य रूप से व्यावहारिक है. यह केवल लोगों के एक समूह या एक देश के लिए नहीं है, बल्कि सभी के लिए है लोग अपनी क्षमता और झुकाव के अनुसार इस मार्ग का अनुसरण कर सकते हैं.
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