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शारदीय नवरात्र: मां नैना देवी मंदिर में उमड़ी भीड़, चमत्कार जानकर आप रह जाएंगे हैरान

शारदीय नवरात्रों के चलते मां नैना देवी के दर पर हर रोज सैकड़ों श्रद्वालु पहुंच रहे हैं. यहां नवरात्रि के दौरान अब तक हजारों लोगों ने माता के दर्शन किए. कोविड-19 की गाइडलाइन को पूरा करते हुए श्रद्वालुओं को माता के दर्शन करवाए जा रहे हैं.

मां नैना देवी मंदिर
मां नैना देवी मंदिर
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Published : Oct 12, 2021, 11:30 AM IST

Updated : Oct 12, 2021, 12:52 PM IST

बिलासपुर: आज शारदीय नवरात्र का सातवां दिन है. नवरात्र (Navratri) के सप्तमी (Saptmi) के दिन मां कालरात्रि (Maa kalratri) की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन मां कालरात्रि (Maa kalratri) के साथ शिव (Shiva)और ब्रह्मा (Brahma) की भी उपासना की जाती है.

शारदीय नवरात्रों के चलते मां नैना देवी के दर पर हर रोज सैकड़ों श्रद्वालु पहुंच रहे हैं. यहां नवरात्रि के दौरान अब तक हजारों लोगों ने माता के दर्शन किए. कोविड-19 की गाइडलाइन को पूरा करते हुए श्रद्वालुओं को माता के दर्शन करवाए जा रहे हैं.

वीडियो

विश्व विख्यात शक्तिपीठ श्री नैना देवी में अब तक शारदीय नवरात्रि में लगभग 1 लाख के करीब श्रद्धालु माता जी के दर्शन कर चुके हैं. जबकि नवरात्र के उपलक्ष्य पर मंदिर न्यास को चढ़ावे के रूप में 47 लाख 22 हजार 652 रुपये नकद, सोना 85 ग्राम 100 मिली ग्राम, चांदी 8 किलो 400 ग्राम प्राप्त हुआ.

वहीं, आज भी नैना देवी मंदिर में एक ऐसा हवन कुंड है जिससे हवन एवं यज्ञ से उत्पन्न होने वाली विभूति को बाहर नहीं निकाला जाता. हवन इसी कुंड में समाहित हो जाता है और अपने आप ही साफ हो जाता है. कहा जाता है कि किसी भी श्रद्वालु के इस हवन कुंड में माथा न टेकने पर उसकी यात्रा सफल नहीं मानी जाती है.

नैना देवी मंदिर में हवन कुंड और पवित्र ज्योतियां यहां की खासियत मानी जाती है. आंधी, तूफान, बारिश के दौरान अकसर मंदिर में दिव्य ज्योतियां प्रज्ज्वलित होती हैं. यह ज्योतियां पीपल के पत्तों, झंडों यहां तक की भक्तों की हथेलियों तक आ जाती हैं.

महिषासुर का किया था वध

ऐसी भी मान्यता है कि जिस समय महिषासुर राक्षस और नैना देवी के बीच युद्ध होने पर मां ने उसे वरदान दिया कि मेरे हाथों मृत्यु होने के कारण तू एक क्षण के लिए भी मेरे चरणों से अलग नहीं होगा. जहां मेरा पूजन होगा वहां पर तुम भी पूजे जाओगे. तब से यहां माता जगदंबा भी विरामजान है. यह स्थान एक सिद्ध पीठ के नाम से भी जाना जाता है.

क्यों पड़ा नाम नैना देवी

कथाओं के अनुसार, देवी सती ने खुद को यज्ञ में जिंदा जला दिया, जिससे भगवान शिव व्यथित हो गए. उन्होंने सती के शव को कंधे पर उठाया और तांडव नृत्य शुरू कर दिया. इससे स्वर्ग में सभी देवता भयभीत हो गए. इस पर उन्होंने भगवान विष्णु से अपने चक्र से सती के शरीर को 51 टुकड़ों में काटने का आग्रह किया. भगवान विष्णु के सती के शरीर को काटने पर उनकी आंखे इस जगह पर गिरी थी, जिसके बाद से ही यहां का नाम नैना देवी पड़ा.

ये भी पढ़ें: नवरात्रि की सप्तमी तिथि के दिन होती है मां कालरात्रि की पूजा, जानें पूजा विधि और महत्व

बिलासपुर: आज शारदीय नवरात्र का सातवां दिन है. नवरात्र (Navratri) के सप्तमी (Saptmi) के दिन मां कालरात्रि (Maa kalratri) की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन मां कालरात्रि (Maa kalratri) के साथ शिव (Shiva)और ब्रह्मा (Brahma) की भी उपासना की जाती है.

शारदीय नवरात्रों के चलते मां नैना देवी के दर पर हर रोज सैकड़ों श्रद्वालु पहुंच रहे हैं. यहां नवरात्रि के दौरान अब तक हजारों लोगों ने माता के दर्शन किए. कोविड-19 की गाइडलाइन को पूरा करते हुए श्रद्वालुओं को माता के दर्शन करवाए जा रहे हैं.

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विश्व विख्यात शक्तिपीठ श्री नैना देवी में अब तक शारदीय नवरात्रि में लगभग 1 लाख के करीब श्रद्धालु माता जी के दर्शन कर चुके हैं. जबकि नवरात्र के उपलक्ष्य पर मंदिर न्यास को चढ़ावे के रूप में 47 लाख 22 हजार 652 रुपये नकद, सोना 85 ग्राम 100 मिली ग्राम, चांदी 8 किलो 400 ग्राम प्राप्त हुआ.

वहीं, आज भी नैना देवी मंदिर में एक ऐसा हवन कुंड है जिससे हवन एवं यज्ञ से उत्पन्न होने वाली विभूति को बाहर नहीं निकाला जाता. हवन इसी कुंड में समाहित हो जाता है और अपने आप ही साफ हो जाता है. कहा जाता है कि किसी भी श्रद्वालु के इस हवन कुंड में माथा न टेकने पर उसकी यात्रा सफल नहीं मानी जाती है.

नैना देवी मंदिर में हवन कुंड और पवित्र ज्योतियां यहां की खासियत मानी जाती है. आंधी, तूफान, बारिश के दौरान अकसर मंदिर में दिव्य ज्योतियां प्रज्ज्वलित होती हैं. यह ज्योतियां पीपल के पत्तों, झंडों यहां तक की भक्तों की हथेलियों तक आ जाती हैं.

महिषासुर का किया था वध

ऐसी भी मान्यता है कि जिस समय महिषासुर राक्षस और नैना देवी के बीच युद्ध होने पर मां ने उसे वरदान दिया कि मेरे हाथों मृत्यु होने के कारण तू एक क्षण के लिए भी मेरे चरणों से अलग नहीं होगा. जहां मेरा पूजन होगा वहां पर तुम भी पूजे जाओगे. तब से यहां माता जगदंबा भी विरामजान है. यह स्थान एक सिद्ध पीठ के नाम से भी जाना जाता है.

क्यों पड़ा नाम नैना देवी

कथाओं के अनुसार, देवी सती ने खुद को यज्ञ में जिंदा जला दिया, जिससे भगवान शिव व्यथित हो गए. उन्होंने सती के शव को कंधे पर उठाया और तांडव नृत्य शुरू कर दिया. इससे स्वर्ग में सभी देवता भयभीत हो गए. इस पर उन्होंने भगवान विष्णु से अपने चक्र से सती के शरीर को 51 टुकड़ों में काटने का आग्रह किया. भगवान विष्णु के सती के शरीर को काटने पर उनकी आंखे इस जगह पर गिरी थी, जिसके बाद से ही यहां का नाम नैना देवी पड़ा.

ये भी पढ़ें: नवरात्रि की सप्तमी तिथि के दिन होती है मां कालरात्रि की पूजा, जानें पूजा विधि और महत्व

Last Updated : Oct 12, 2021, 12:52 PM IST
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