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6 दशक बाद भी विस्थापन का दंश झेल रहे भाखड़ा विस्थापित, अब HC से बंधी आखिरी आस

खड़ा बांध के निर्माण के बाद विस्थापित हुए सैकड़ों गांवों के लोगों को उस समय जो वादे करके सब्जबाग दिखाए वो सब खोखले बनकर रह गए. आज तक इन लोगों को घर तो क्या प्लॉट्स तक का मालिकाना हक नहीं मिल सका है.

bhakra dam displaced people
भाखड़ा बांध विस्थापित
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Published : Feb 3, 2020, 9:53 PM IST

बिलासपुर: भाखड़ा बांध बने करीब 56 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन भाखड़ा विस्थापित 6 दशकों के बाद भी सही तरीके के बसाव को तरस रहे हैं. 56 साल बीत जाने के बाद भी लोग दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं. लोग अपनी फरियाद लेकर बीबीएमबी के टोहाना दफ्तर में जाकर परेशान हो रहे हैं, लेकिन आज तक उनके मसलों के समाधान के लिए सरकार की ओर से कोई सकारात्मक रवैया नहीं अपनाया गया.

भाखड़ा बांध के निर्माण के बाद विस्थापित हुए सैकड़ों गांवों के लोगों को उस समय जो वादे करके सब्जबाग दिखाए वो सब खोखले बनकर रह गए. आज तक इन लोगों को घर तो क्या प्लॉट्स तक का मालिकाना हक नहीं मिल सका है.

वीडियो रिपोर्ट

नेता हर चुनाव में विस्थापितों का मुद्दा बड़े जोर-शोर से उठाते हैं. विस्थापन का दर्द झेल रहे लोगों से उनका हक दिलाने का वादा करते हैं, लेकिन ये लोग उन वादों के पूरा होने का बस इंतजार करते रह जाते हैं. ये सिलसिला पिछले 6 दशकों से चला आ रहा है. नेता हर पांच साल में जनता को झूठे वादे कर धोखा दे रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद 1954 से भाखड़ा बांध निर्माण शुरू हो गया था. उस समय बिलासपुर शहर के साथ 205 गांव के करीब 11,770 परिवारों को अपने घर-बार छोड़ने पड़े थे. जो परिवार भाखड़ा डैम के आसपास बसे थे उनको हरियाणा के हिसार, और फरीदाबाद में बसाव के लिए भेजा गया. वहीं, कुल 3,600 परिवार हरियाणा गए, लेकिन वहां भी इसी समस्या से उनको जूझना पड़ा.

1971 में पूर्णस्थापन एवं पूर्णवास कानून में लोगों को जहां पर वे बसे, वहीं पर उन्हें जमीनी कागजात दिए गए. ग्रामीण भाग खेड़ा विस्थापितों के बिजली-पानी के कनेक्शन तक काट दिए गए. बताया जाता है कि उस समय के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तीन बार बिलासपुर का दौरा किया था.

भाखड़ा बांध के उद्घाटन के समय पं. जवाहर लाल नेहरू ने विस्थापितों की कुर्बानी पर नाज करते हुए उनकी हर सुख सुविधा का ध्यान रखने की बात कही थी, लेकिन अब परिस्थितियां पूरी तरह से विपरीत हैं. लोग अपने आशियाने को बचाने के लिए न्यायालय की ओर गए, लेकिन सरकारें इस मुद्दे से पल्ला झाड़ रही हैं.

60 के दशक में भाखड़ा बांध बनने से जलमगन हुए पुराने शहर को न्यू टाउनशिप का नाम देकर बसाया तो गया, लेकिन बिना किसी नीति से हुए इस बसाव से न सिर्फ नगरवासियों बल्कि गांव में बसे लोग भी सही कायदे में बस नहीं पाए.

भाखड़ा बांध के बनने का सबसे ज्यादा लाभ पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली और राजस्थान को हुआ है. उन्हें बिजली के साथ-साथ पानी की सुविधा भी मिली है. यह राज्य भाखड़ा बांध के कारण उन्नत हुए हैं, लेकिन देश के लिए अपना सर्वस्व होम करने वाले बिलासपुर वासी आज भी विस्थापन का दंश झेल रहे हैं.

भाखड़ा विस्थापित व्यक्ति संदीप सांख्यान ने बताया कि विस्थापितों के लिए सरकार की बनाई हुई योजना दुर्भाग्यपूर्ण है. केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने बिलासपुर विस्थापितों के लिए कुछ नहीं किया है. सरकार ने लोगों की मुश्किलों को सुलझाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया है. ग्रामीण विस्थापितों की समस्या जस से तस बनी हुई है. भाखड़ा विस्थापितों के लिए कोई पॉलिसी नहीं बन पाई है.

ये भी पढ़ें: बिलासपुर में 'पाकिस्तानी' गुब्बारे से बंधा मिला एल्मुनियम का सिक्का, पुलिस ने शुरू की जांच

वरिष्ठ पत्रकार विजय कुमार ने कहा कि भाखड़ा विस्थापितों को आज तक सही तरीके से नहीं बसाया गया है. भाखड़ा विस्थापितों की स्थिति आज तक अच्छी नहीं है. भाखड़ा विस्थापितों का आज तक सही ढ़ंग से पूनर्वास नहीं किया गया है. विस्थापितों को कोर्ट से आशा है कि उनके हक में फैसला आएगा.

ये भी पढ़ें: हिमाचल की धरोधरः शिमला में बना था देश का पहला ऑटोमेटिक टेलीफोन एक्सचेंज

बिलासपुर: भाखड़ा बांध बने करीब 56 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन भाखड़ा विस्थापित 6 दशकों के बाद भी सही तरीके के बसाव को तरस रहे हैं. 56 साल बीत जाने के बाद भी लोग दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं. लोग अपनी फरियाद लेकर बीबीएमबी के टोहाना दफ्तर में जाकर परेशान हो रहे हैं, लेकिन आज तक उनके मसलों के समाधान के लिए सरकार की ओर से कोई सकारात्मक रवैया नहीं अपनाया गया.

भाखड़ा बांध के निर्माण के बाद विस्थापित हुए सैकड़ों गांवों के लोगों को उस समय जो वादे करके सब्जबाग दिखाए वो सब खोखले बनकर रह गए. आज तक इन लोगों को घर तो क्या प्लॉट्स तक का मालिकाना हक नहीं मिल सका है.

वीडियो रिपोर्ट

नेता हर चुनाव में विस्थापितों का मुद्दा बड़े जोर-शोर से उठाते हैं. विस्थापन का दर्द झेल रहे लोगों से उनका हक दिलाने का वादा करते हैं, लेकिन ये लोग उन वादों के पूरा होने का बस इंतजार करते रह जाते हैं. ये सिलसिला पिछले 6 दशकों से चला आ रहा है. नेता हर पांच साल में जनता को झूठे वादे कर धोखा दे रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद 1954 से भाखड़ा बांध निर्माण शुरू हो गया था. उस समय बिलासपुर शहर के साथ 205 गांव के करीब 11,770 परिवारों को अपने घर-बार छोड़ने पड़े थे. जो परिवार भाखड़ा डैम के आसपास बसे थे उनको हरियाणा के हिसार, और फरीदाबाद में बसाव के लिए भेजा गया. वहीं, कुल 3,600 परिवार हरियाणा गए, लेकिन वहां भी इसी समस्या से उनको जूझना पड़ा.

1971 में पूर्णस्थापन एवं पूर्णवास कानून में लोगों को जहां पर वे बसे, वहीं पर उन्हें जमीनी कागजात दिए गए. ग्रामीण भाग खेड़ा विस्थापितों के बिजली-पानी के कनेक्शन तक काट दिए गए. बताया जाता है कि उस समय के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तीन बार बिलासपुर का दौरा किया था.

भाखड़ा बांध के उद्घाटन के समय पं. जवाहर लाल नेहरू ने विस्थापितों की कुर्बानी पर नाज करते हुए उनकी हर सुख सुविधा का ध्यान रखने की बात कही थी, लेकिन अब परिस्थितियां पूरी तरह से विपरीत हैं. लोग अपने आशियाने को बचाने के लिए न्यायालय की ओर गए, लेकिन सरकारें इस मुद्दे से पल्ला झाड़ रही हैं.

60 के दशक में भाखड़ा बांध बनने से जलमगन हुए पुराने शहर को न्यू टाउनशिप का नाम देकर बसाया तो गया, लेकिन बिना किसी नीति से हुए इस बसाव से न सिर्फ नगरवासियों बल्कि गांव में बसे लोग भी सही कायदे में बस नहीं पाए.

भाखड़ा बांध के बनने का सबसे ज्यादा लाभ पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली और राजस्थान को हुआ है. उन्हें बिजली के साथ-साथ पानी की सुविधा भी मिली है. यह राज्य भाखड़ा बांध के कारण उन्नत हुए हैं, लेकिन देश के लिए अपना सर्वस्व होम करने वाले बिलासपुर वासी आज भी विस्थापन का दंश झेल रहे हैं.

भाखड़ा विस्थापित व्यक्ति संदीप सांख्यान ने बताया कि विस्थापितों के लिए सरकार की बनाई हुई योजना दुर्भाग्यपूर्ण है. केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने बिलासपुर विस्थापितों के लिए कुछ नहीं किया है. सरकार ने लोगों की मुश्किलों को सुलझाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया है. ग्रामीण विस्थापितों की समस्या जस से तस बनी हुई है. भाखड़ा विस्थापितों के लिए कोई पॉलिसी नहीं बन पाई है.

ये भी पढ़ें: बिलासपुर में 'पाकिस्तानी' गुब्बारे से बंधा मिला एल्मुनियम का सिक्का, पुलिस ने शुरू की जांच

वरिष्ठ पत्रकार विजय कुमार ने कहा कि भाखड़ा विस्थापितों को आज तक सही तरीके से नहीं बसाया गया है. भाखड़ा विस्थापितों की स्थिति आज तक अच्छी नहीं है. भाखड़ा विस्थापितों का आज तक सही ढ़ंग से पूनर्वास नहीं किया गया है. विस्थापितों को कोर्ट से आशा है कि उनके हक में फैसला आएगा.

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Intro:6 दशकों के बाद भी बदतर हालात में है भाखड़ा विस्थापित
पुर्नवास के लिए आज भी कर रहे है संघर्ष
लहलहाते शहर सहित 11777 परिवार हुए थे विस्थापित
हिमाचल उच्च न्यायालय से बंधी है अंतिम आस

असाइनमेंट पर आधारित

बिलासपुर।
भाखड़ा विस्थापित 6 दशको के बाद भी सही तरीके के बसाव को तरस रहे हैं। सत्ता तक पहुंचने के लिए नेताओं की पहली पसंद बन चुके इस मसले को कोई भी पूरी तरह से सुलझाना नहीं चाहता है। हर 5 साल के बाद इसी मुद्दे को लेकर जनता का बेवकूफ बनाकर राजनेता अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। 60 के दशक में भाखड़ा बांध बनने से जलमगन हुए पुराने शहर को न्यू टाउनशिप का नाम देकर बसाव तो किया गया। लेकिन बिना किसी की नीति से हुए इस बसाव से न सिर्फ नगरवासियों बल्कि गांव में बसे लोग भी सही कायदे में बस नहीं पाए और आज अधिक समस्या से जूझ रहे हैं। आज हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि भांखड़ा विस्थापितों की चार पीढ़ियां चल पड़ी है तथा लोगों को उसमें मिले प्लॉट पर सबके लिए न काफी साबित हो रहे हैं। लोगों ने जरुरत के हिसाब से आसपास की भूमि पर कब्जा किया है। जिसे अतिक्रमण का नाम दिया गया है। यहां यह भी कहना गलत नहीं होगा कि बाहरी जिलो और राज्यों से आकर यहां बस से लोगों ने भी भाखड़ा विस्थापित की आड़ में जमकर अतिक्रमण किया है।



Body:उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद 1954 से भाखड़ा बांध निर्माण शुरु हो गया था। उस समय बिलासपुर शहर के साथ 205 गांव के करीब 11770 परिवारों को अपने घर बार छोड़ने पडे थे। बताया जाता है कि जो परिवार भाखड़ा डैम के आसपास बसे थे। वह हरियाणा के हिसार, सिरसा तथा फरीदाबाद आदि स्थानों में बसाओ के लिए भेजा गया। यहां के कुल 3600 परिवार हरियाणा गए। लेकिन वहां भी यही समस्या से उनको झूझना पड़ा। बिना किसी नियम और नीति के तहत उजाड़े गए भोले भाले लोगों ने जंगलों में ही अपना आशियाना बना लिया। 1971 में पूर्णस्थापन एवं पूर्णवास कानून में लोगों को जहां पर वे बसे, वहीं पर उन्हें जमीनी कागजात दिए गए ग्रामीण भाग खेड़ा विस्थापितों के बिजली-पानी के कनेक्शन तक काट दिए गए। बताया जाता है कि उस समय के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तीन बार बिलासपुर का दौरा किया था तथा उद्घाटन के समय विस्थापितों की कुर्बानी पर नाज करते हुए उनकी हर सुख सुविधा का ध्यान रखने की बात कही थी। लेकिन अब परिस्थितियां पूरी तरह से विपरीत है। लोग अपने आशियाने की बचाने के लिए न्यायालय की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं, जबकि हुककमान केवल आशातीत बयान देकर अपना पल्ला झाड़ रहे है।

बाइट...
संदीप सांख्यान... भाखड़ा विस्थापित परिवार।





Conclusion:बॉक्स...
भाखड़ा बांध के बनने का सबसे ज्यादा लाभ पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली और राजस्थान को हुआ है। उन्हें बिजली के साथ-साथ पानी की सुविधा भी मिली है यह राज्य भाखड़ा बांध के कारण और उन्नत हुए हैं। लेकिन देश के लिए अपना सर्वस्व होम करने वाले बिलासपुर वासी आज भी विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। और अपने आशियाने को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।
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