बिलासपुर: इस वर्ष से मत्स्य विभाग ने बंद सीजन के शेड्यूल में बदलाव करते हुए 15 जून से लेकर 16 अगस्त तक तय किया. पिछले दिन जलाशयों में मछली का शिकार शुरू हो चुका है. जिसके तहत पहले ही दिन लाखों का कारोबार होने से विभाग को काफी राहत मिली है.
इस बार 30.06 मीट्रिक टन मछली पैदावार हुई, जबकि पिछली बार यह आंकड़ा 20 मीट्रिक टन था. इस लिहाज से 10 मीट्रिक टन अधिक उत्पादन हुआ है. प्रदेश के दो बड़े जलाशयों गोबिंद सागर और पौंगडैम की बात करें तो गोबिंद सागर में इस बार 15.3 मीट्रिक टन पैदावार हुई, जबकि पिछली बार यह आंकड़ा 9.3 मीट्रिक टन था
इस लिहाज से इस बार छह मीट्रिक टन अधिक पैदावार हुई है. इसी प्रकार पौंगडैम में 10.4 मीट्रिक टन अधिक उत्पादन हुआ है, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 6 मीट्रिक टन था. ऐसे में पिछले साल की अपेक्षा इस बार 4 मीट्रिक टन अधिक उत्पादन दर्ज किया गया है.
इसी तरह चमेरा व अन्य जलाशयों में बराबर बराबर ही पैदावार हुई है, जबकि कोलडैम में 3 मीट्रिक टन और रणजीत सागर डैम में 4.6 मीट्रिक टन पैदावार हुई है. रणजीत सागर डैम में पिछली बार यह आंकड़ा दो टन था, लिहाजा इस बार इतनी ही बढ़ोतरी दर्ज की गई है. मत्स्य आखेट का सिलसिला अब आगे भी यथावत जारी रहेगा जिसके चलते मत्स्य कारोबार बेहतर होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता.
उधर, इस संदर्भ में बात करने पर मत्स्य निदेशक सतपाल मेहता ने बताया कि इस बार मत्स्य पैदावार के सुखद परिणाम आए हैं. जिसके तहत गोबिंदसागर झील में लगातार घटते मत्स्य उत्पादन को ध्यान में रखते हुए 70 एमएम से 100 एमएम तक साईज का बीज डाला गया था.
पैदावार में बढ़ोतरी दर्ज की गई है और आने वाले समय में प्रोडक्शन में इजाफा करने के लिए शिफरी कोलकाता के विशेषज्ञों द्वारा की जा रही स्टडी की रिपोर्ट के आधार पर अगली कार्ययोजना के तहत मत्स्य उत्पादन किया जाएगा.
उन्होंने बताया कि दो बार विशेषज्ञ स्टडी टूअर कर चुके हैं और अब जल्द ही बिलासपुर आने का कार्यक्रम है. ऐसे में एक साल की स्टडी के बाद जो रिपोर्ट आएगी उसके अनुरूप अगली कार्ययोजना को अंतिम रूप दिया जाएगा.
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