बिलासपुर: बरसात के मौसम में जिला बिलासपुर के किसानों की मक्की की फसल को एक नए रोग ने जकड़ लिया है. रोग अभी शुरूआती दौरे में है, जिसे खत्म करने के लिए कृषि महकमा अलर्ट हो गया है. इसी कड़ी में उपनिदेशक के साथ ही फील्ड स्टाफ भी किसानों को जागरूक करने के लिए खेतों में जाकर किसानों को जरूरी जानकारी दे रहे हैं.
किसानों के खेतों में खड़ी फसल का मुआयना करने पर पाया गया है कि मक्की की फसल को तना बेधक व फॉल आर्मीवार्म कीट नुकसान पहुंचा रहा है. अगर समय रहते इस कीट को खत्म न किया गया तो फसल बर्बाद होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता. इस रोग पर काबू पाने के साथ ही दवा के छिड़काव के लिए फील्ड स्टाफ किसानों को जागरूक कर रहे हैं.
बिलासपुर जिला में 24000 हैक्टेयर एरिया में मक्की की खेती की जाती है और इस साल कृषि महकमे ने 40950 मीट्रिक टन उत्पादन का लक्ष्य तय किया है. हालांकि इस बार फसल भी बेहतर है और किसानों को अच्छी पैदावार की उम्मीद है, लेकिन फसल को नया रोग लगने से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें साफ झलक रही हैं.
कृषि विभाग बिलासपुर में कार्यरत उपनिदेशक डॉ. कुलदीप पटियाल ने बताया कि कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा जिला के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा करने पर पाया गया कि इन दिनों मक्की की फसल पर तना बेधक और फॉल आर्मीवार्म नामक कीट ने अटैक किया है, जो कि फसल को नुकसान पहुंचा रहा है.
उन्होंने बताया कि तना बेधक कीट की सुंडियां नए पत्तों को पर्ण चक्र में घुसकर खाती हैं, जिससे पत्तों पर छोटे-छोटे छिद्र पड़ जाते हैं. बाद में पौधे की मध्य शाखा एवं तने के अंदर चली जाती है और उसे खोखला कर देती हैं.
इससे पौधे धीरे-धीरे सूखकर मुरझा जाते हैं. उन्होंने बताया कि फॉल आर्मीवार्म कीट पत्तियों को बीच से खाकर छिद्र करता है. उसके बाद धीरे-धीरे तने का रस चूसकर उसे खाकर खोखला कर देता है. इस कीट की मुख्य पहचान है कि कीट पत्तियों पर कीट का मल लकड़ी के बुरादे की तरह देखा जा सकता है.
उपनिदेशक डॉ. कुलदीप पटियाल ने किसानों को सलाह दी है कि इस कीट के नियंत्रण के लिए किसान सुंडी को पकड़कर मसल दें. खेतों के बीच में पक्षियों के बैठने के लिए टी आकार के लकड़ी के बैठकू फसल की ऊंचाई के अनुसार लगाएं ताकि पक्षी सुंडियों को खा सकें, लेकिन ये ध्यान रहे कि भुट्टे बनने पर टी आकार के बैठकू हटा लें. जब कीटों की संक्रमण 10 प्रतिशत से अधिक हो तभी रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग बेहतर होता है.
उन्होंने बताया कि कीटनाशक दवाई क्लोरोपाईरीफॉस 20 ईसी दो मिली लीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. इसी प्रकार नीम आधारिक कीटनाशी अजैडिरैक्टिन 1500 पीपीएम 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव कर सकते हैं.
2014 में कर्नाटक में दर्ज की गई थी कीट की मौजूदगी
देश में सबसे पहले 2014 में इस विनाशकारी कीट की मौजूदगी कर्नाटक में दर्ज की गई थी. ये कीट साल 2019 में पश्चिमी बंगाल व गुजरात में भी पाया जा चुका है. गर्म और आर्द्र तापमान 20 से 32 डिग्री सेल्सियस इस कीट के प्रजनन के लिए अनुकूल कारक है. गर्मियों में इसका जीवन चक्र 30 दिन का होता है.
यह कीट खरपतवार या घास की ऊपरी सतह पर समूह गुच्छे के रूप में होता है जो हल्के हरे व सफेद रंग के होते हैं. इसके जीवन चक्र की चार अवस्थाएं होती हैं अंडा, लारवा, प्यूपाए एडल्ट व मॉथ पतंगा. लारवा फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने वाली अवस्था है. ये मिट्टी में रहता है और रात्रि के समय मृदा की ऊपरी सतह पर आकर फसल को नुकसान पहुंचाता है.