हैदराबाद : कुपोषण ( nutrition) सबसे बड़ी सामाजिक चुनौतियों में से एक है. दुनिया का हर देश इससे प्रभावित है. विकसित देशों में स्थिति बेहतर है, लेकिन विकासशील और तीसरी दुनिया के देशों में कुपोषण बड़ी चुनौती है. पूरी आबादी को सही पोषण मिले, इसका लक्ष्य अभी तक पूरा नहीं हो पाया है. भारत समेत सभी देशों ने संकल्प तो लिया है, लेकिन कब तक वे अपने लक्ष्य को पूरा कर पाएंगे, कहना मुश्किल है. इस बीच वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2021 जारी की गई है. इसके अनुसार भारत के सामने कुपोषण एक गंभीर समस्या है. शिशु, बच्चे, महिला और पुरुष, हर कोई अपने स्तर पर संघर्ष कर रहा है. इस रिपोर्ट और भारत के सामने चुनौतियों पर हम एक नजर डालते हैं.
आइए सबसे पहले हम यह समझते हैं कि कुपोषण क्या है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कुपोषण का मतलब- किसी भी व्यक्ति में पोषक तत्त्वों की कमी या अधिकता या अंसतुलन तथा ऊर्जा की कमी या अधिकता को दर्शाता है. मुख्य रूप से कुपोषण को तीन समूहों में बांट सकते हैं. अल्प पोषण, सूक्ष्म पोषक तत्त्व संबंधी कुपोषण और वजन की अधिकता. अल्प पोषण की वजह से व्यक्ति दुबला हो सकता है. उसकी लंबाई कम हो सकती है. आयु के अनुपात में लंबाई कम हो सकती है और उसका वजन सामान्य से कम होता है. सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की वजह से शरीर में पोषक अवयवों की कमी होती है. यानी आपके शरीर में विटामिन और खनिज की मात्रा या तो कम होगी या अधिक. इसी तरह से अधिक वजन भी एक प्रकार का कुपोषण है. आप मोटापा के शिकार होते हैं. ऐसे लोगों में ह्रदय रोग और मधुमेह मुख्य बीमारी के तौर पर देखी जाती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के मुताबिक गंभीर रूप से कुपोषित (एसएएम) बच्चे वो होते हैं, जिनका वजन और लंबाई का अनुपात बहुत कम होता है, यानी जिनकी बांह की परिधि 115 मिलीमीटर से कम होती है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 33 लाख बच्चे कुपोषित हैं. इनमें से 17 लाख से भी ज्यादा बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि हम यह दावा तो जरूर करते हैं कि कुपोषण के खिलाफ भारत का कदम मजबूत दिख रहा है. लेकिन हकीकत कुछ और बयां करते हैं. 15-49 आयु वर्ग की 53 फीसदी महिलाओं में आयरन की कमी है. मात्र 58 फीसदी शिशुओं (पांच महीने तक) को मां का दूध मिल पाता है. 34.7 फीसदी बच्चों (पांच साल से कम) का विकास ठीक से नहीं हो पाता है. एशिया के दूसरे देशों में यही औसत 21.8 फीसदी है. पांच साल से नीचे के 1.6 फीसदी बच्चे अधिक वजन के शिकार हैं.
भारत में 18 साल से ऊपर की 6.2 फीसदी महिलाएं ओवरवेट से प्रभावित हैं. पुरुषों में यह औसत 3.5 फीसदी है. हालांकि इस मामले में भारत का औसत पड़ोसी देशों के मुकाबले बेहतर है. पड़ोसी देशों में महिलाओं के बीच यह औसत 10.3 फीसदी और पुरुषों के बीच यह औसत 10.2 फीसदी है. विश्व के स्तर पर जन्म के समय 14.6 फीसदी शिशुओं का वजन कम होता है. मात्र 15 देश ऐसे हैं, जहां शिशुओं का वजन विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित पैमाने पर खरा है. 35 देश ब्रेस्टफीडिंग को लेकर सही कदम उठा रहे हैं. वैश्विक पैमाने पर 44 फीसदी बच्चों को ब्रेस्ट फीडिंग (शुरुआती पांच महीने तक) मिलती है. 5.7 फीसदी बच्चे मोटापा के शिकार हैं. 105 देशों ने इस पर सही कदम उठाए हैं. 15.1 फीसदी व्यस्क और 11.1 फीसदी पुरुष मोटापा के शिकार हैं.
भारत में कुपोषण की स्थिति/आंकड़े
हाल ही में प्रकाशित अपनी एक रिपोर्ट में विश्व बैंक (World Bank) ने कहा है कि वर्ष 1990 से 2018 तक भारत ने गरीबी से लड़ने में काफी हद तक सफलता पायी है और देश के गरीबी दर में बहुत कमी आयी है. गरीबी दर तकरीबन आधी रह गई है किन्तु कुपोषण और भूख की समस्या आज भी देश में बरकरार है. वर्ल्ड्स चिल्ड्रेन रिपोर्ट (World's Children Report) 2019 कहता है, कि 5 वर्ष तक की आयु के प्रत्येक 3 बच्चों में 1 बच्चा कुपोषण से ग्रसित है. यूनिसेफ (UNICEF) की रिपोर्ट बताती है कि सबसे कम वजन वाले बच्चों की संख्या वाले देशों में भारत का स्थान 10वां है.
'द लैंसेट' नामक पत्रिका के अनुसार 5 वर्ष से कम आयु के 1.04 मिलियन बच्चों के मौतों में से दो-तिहाई बच्चों की मृत्यु कुपोषण के वजह से हुई है.
वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में पिछले साल 116 देशों में भारत 94 वें स्थान पर था, जबकि इस बार यह 101वें स्थान पर पहुंच गया. इसका मतलब है कि स्थिति और खराब हुई है. संभव है कोरोना भी इसकी एक वजह रही हो. भारत का यह स्थान उसके पड़ोसी पाकिस्तान, बंग्लादेश और नेपाल से भी नीचे है. देश की राजधानी दिल्ली में ही एक लाख से अधिक कुपोषित बच्चे हैं.
कुपोषण से निपटने के उपाय
- कुपोषण सबसे बड़ी सामाजिक चुनौतियों में से एक है. यह स्वास्थ्य, आर्थिक और पर्यावरण तीनों पर बोझ साबित हो रहा है.
- सबसे पहले हमें उत्पादन से लेकर उपभोग तक खाद्य प्रणालियों में असमानताओं को दूर करना होगा. वर्तमान खाद्य प्रणालियां लोगों को स्वस्थ भोजन विकल्प चुनने में सक्षम नहीं बनाती हैं. वर्तमान समय में अधिकांश लोगों को हेल्दी फूड नहीं मिल पाता है.
- मौजूदा कृषि प्रणालियां स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थों, जैसे फल, नट्स और सब्जियों की व्यापक रेंज का उत्पादन करने के बजाय मुख्य रूप से चावल, गेहूं और मक्का जैसे प्रधान अनाज की अधिकता पर केंद्रित हैं.
- जलवायु आपातकाल ने खाद्य प्रणालियों पर पुनर्विचार करने को महत्वपूर्ण बना दिया है
- हमें स्वास्थ्य प्रणालियों में पोषण संबंधी असमानताओं को दूर करना चाहिए. कुपोषण बीमारी और मृत्यु का प्रमुख कारण बन गया है, जो स्वास्थ्य प्रणालियों पर एक असहनीय तनाव डाल रहा है.
पोषण परिणामों में सुधार करने के लिए निवेश
- वैश्विक लक्ष्यों को पूरा करने और कुपोषण को समाप्त करने के लिए आवश्यक गहन अभियान सभी क्षेत्रों और देशों की सामूहिक जिम्मेदारी है. सरकारों के घरेलू वित्त पोषण निरंतर सुधार सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं. साथ ही अंतरराष्ट्रीय दाता समुदाय का यह कर्तव्य है कि वे वहां पर कदम बढ़ाएं, जहां की सरकारों के पास प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया देने के लिए संसाधनों की कमी है.
- खाद्य प्रणाली: स्वस्थ और स्थायी रूप से उत्पादित भोजन सबको उपलब्ध करवाना होगा. सभी क्षेत्रों को भोजन प्रणाली के पोषण के लिए मिलकर काम करना होगा.
- स्वास्थ्य प्रणाली: जीवन को बचाने और स्वास्थ्य देखभाल की लागतों में कटौती करने के लिए मौजूदा बुनियादी ढांचे का लाभ उठाना चाहिए. इसके साथ-साथ नई प्रौद्योगिकियों को पेश करने के लिए सहयोग के लिए क्षेत्रों को काम करना चाहिए.
- पोषण समन्वय, वित्तपोषण और जवाबदेही: सेक्टरों को पूरक धन और जवाबदेही तंत्र विकसित करने के लिए साझेदारी में काम करना चाहिए, यह समुदायों और लोगों के निर्देशन पर केंद्रित हों.
ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स प्रोग्राम
भारत ने जनवरी 2018 में ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स प्रोग्राम शुरू किया. राष्ट्रय पोषण मिशन में पाया गया कि देश के सभी नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता पिछले दस वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि के अनुरूप नहीं है. अभियान में यह भी पाया गया कि सामाजिक और आर्थिक विकास के मामले में राज्यों के भीतर बड़ी भिन्नता है. इसके बाद ही ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स प्रोग्राम शुरू किया गया.
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