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जिसने लिखी फतह की इबारत, क्या मिलेगी उसे अफगानिस्तान की जिम्मेदारी ? - मुल्ला उमर मुल्ला बरादर

1996-2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान का शासन रह चुका है. इस दौरान उसे अपने नागरिकों पर ढेरों जुल्म किए. इसमें सबसे बड़ी भूमिका मुल्ला उमर और मुल्ला बरादर की थी. मुल्ला उमर मारा जा चुका है. जाहिर है, तालिबान में अब सबसे अधिक पूछ बरादर की ही होती है. कौन है बरादर और क्या वह अफगानिस्तान का अगला राष्ट्र प्रमुख बन सकता है, पढ़िए एक रिपोर्ट.

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मुल्ला बरादर
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Published : Aug 16, 2021, 7:59 PM IST

हैदराबाद : अब जबकि तालिबान ने अफगानिस्तान पर दोबारा कब्जा कर लिया है, हर कोई जानना चाहता है कि शासन की बागडोर किसके हाथों में होगी. जिन नामों पर चर्चा हो रही है, उनमें मुल्ला बरादर का नाम सबसे आगे है. बरादर तालिबान का राजनीतिक प्रमुख एवं सबसे अधिक जाना-पहचाना चेहरा है. एक दिन पहले तक वह कतर में था. अफगानिस्तान में बदलते घटनाक्रम के बीच वह काबुल आने की तैयारी कर रहा है.

कुछ सालों पहले तक बरादर पाकिस्तान की जेल में बंद था. अमेरिका के कहने पर उसे रिहा किया गया. उसकी रिहाई के बाद कतर में अमेरिका और तालिबान प्रतिनिधियों के बीच बातचीत की गति बढ़ गई थी.

ब्रिटिश मीडिया के अनुसार बरादर ने कहा कि तालिबान की असली परीक्षा तो अभी शुरू हुई है. वह राष्ट्र की सेवा करेगा.

बरादर 1968 में अफगानिस्तान के उरूजगान में पैदा हुआ था. वह दुर्रानी कबीले का है. वह सोवियत संघ के खिलाफ अफगान मुजाहिदीन का सदस्य 1980 में बना था. तभी से वह उसका हिस्सा रहा है.

1992 में रूस अफगानिस्तान से निकल गया था.

उसके बाद अफगानिस्तान की स्थिति बहुत अधिक खराब हो गई. अलग-अलग कबीलों के सरदार आपस में लड़ने लगे. गृहयुद्ध के हालात बन गए थे. उसी दौरान बरादर ने अपने प्रतिष्ठित पूर्व कमांडर एवं रिश्तेदार मोहम्मद उमर के साथ मिलकर कंधार में मदरसा स्थापित किया.

खबर के अनुसार दोनों मुल्लाओं ने साथ मिलकर तालिबान की स्थापना की. शुरुआती दौर में इस आंदोलन की ऐसे युवा इस्लामिक विद्वान अगुआई कर रहे थे, जिनका मकसद देश का मजहबी शुद्धिकरण एवं अमीरात की स्थापना पर था. धार्मिक उन्माद और योद्धाओं के प्रति व्यापक नफरत करता था.

लेकिन स्थितियां धीरे-धीरे बदलने लगीं. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ने तालिबान का साथ दिया. उसे हर तरीके से समर्थन दिया. इंटर-सर्विसेज इंटेलीजेंस का समर्थन पाकर तालिबान प्रांतीय राजधानियों को फतह करते हुए 1996 में देश की सत्ता पर काबिज हो गया और दुनिया हक्का-बक्का होकर देखती रही, ठीक उसी तरह जिस तरह इस बार हुआ है.

1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान शासन के दौरान बरादर कई महत्वपूर्ण पदों पर रहा चुका है. वह उस समय रक्षा विभाग भी देखता था.

मुल्ला उमर से संबद्ध बरादार को सबसे सक्रिय रणनीतिकार माना जाता है, जिसने इन फतह की इबारत लिखी. औपचारिक तौर पर तालिबान का गठन 1994 में हुआ था.

2001 में अमेरिका में वर्ल्ड टॉवर सेंटर पर हमले के बाद जब अमेरिकी सैनिकों ने अफगानिस्तान में कार्रवाई की, तो बरादर पाकिस्तान भाग गया.

2010 में उसे कराची से गिरफ्तार कर लिया गया. 2013 में वह रिहा हो गया.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मुल्ला उमर और बरादर आपस में रिश्तेदार है. बरादर की बहन मुल्ला उमर की पत्नी थी.

जब तक मुल्ला उमर जिंदा रहा, बरादर का मुख्य काम पैसा जुटाना था.

बरादर अमेरिका के साथ बातचीत का पक्षधर था. दोहा में जो भी वार्ताएं हुईं, उसमें बरादर की सबसे अधिक चलती थी.

तालिबान और अमेरिका के बीच 2018 में समझौता शुरू हुआ. बरादर अमेरिका के साथ वार्ता का समर्थक रह चुका है.

ये भी पढ़ें : अमेरिका की मदद से तालिबान ने हासिल किया वायु सैनिक शक्ति और 11 सैन्य ठिकाने

ये भी पढ़ें : जानिए कौन हैं तालिबान लड़ाकों के आका, कैसे अरबों डॉलर कमाते हैं तालिबानी

हैदराबाद : अब जबकि तालिबान ने अफगानिस्तान पर दोबारा कब्जा कर लिया है, हर कोई जानना चाहता है कि शासन की बागडोर किसके हाथों में होगी. जिन नामों पर चर्चा हो रही है, उनमें मुल्ला बरादर का नाम सबसे आगे है. बरादर तालिबान का राजनीतिक प्रमुख एवं सबसे अधिक जाना-पहचाना चेहरा है. एक दिन पहले तक वह कतर में था. अफगानिस्तान में बदलते घटनाक्रम के बीच वह काबुल आने की तैयारी कर रहा है.

कुछ सालों पहले तक बरादर पाकिस्तान की जेल में बंद था. अमेरिका के कहने पर उसे रिहा किया गया. उसकी रिहाई के बाद कतर में अमेरिका और तालिबान प्रतिनिधियों के बीच बातचीत की गति बढ़ गई थी.

ब्रिटिश मीडिया के अनुसार बरादर ने कहा कि तालिबान की असली परीक्षा तो अभी शुरू हुई है. वह राष्ट्र की सेवा करेगा.

बरादर 1968 में अफगानिस्तान के उरूजगान में पैदा हुआ था. वह दुर्रानी कबीले का है. वह सोवियत संघ के खिलाफ अफगान मुजाहिदीन का सदस्य 1980 में बना था. तभी से वह उसका हिस्सा रहा है.

1992 में रूस अफगानिस्तान से निकल गया था.

उसके बाद अफगानिस्तान की स्थिति बहुत अधिक खराब हो गई. अलग-अलग कबीलों के सरदार आपस में लड़ने लगे. गृहयुद्ध के हालात बन गए थे. उसी दौरान बरादर ने अपने प्रतिष्ठित पूर्व कमांडर एवं रिश्तेदार मोहम्मद उमर के साथ मिलकर कंधार में मदरसा स्थापित किया.

खबर के अनुसार दोनों मुल्लाओं ने साथ मिलकर तालिबान की स्थापना की. शुरुआती दौर में इस आंदोलन की ऐसे युवा इस्लामिक विद्वान अगुआई कर रहे थे, जिनका मकसद देश का मजहबी शुद्धिकरण एवं अमीरात की स्थापना पर था. धार्मिक उन्माद और योद्धाओं के प्रति व्यापक नफरत करता था.

लेकिन स्थितियां धीरे-धीरे बदलने लगीं. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ने तालिबान का साथ दिया. उसे हर तरीके से समर्थन दिया. इंटर-सर्विसेज इंटेलीजेंस का समर्थन पाकर तालिबान प्रांतीय राजधानियों को फतह करते हुए 1996 में देश की सत्ता पर काबिज हो गया और दुनिया हक्का-बक्का होकर देखती रही, ठीक उसी तरह जिस तरह इस बार हुआ है.

1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान शासन के दौरान बरादर कई महत्वपूर्ण पदों पर रहा चुका है. वह उस समय रक्षा विभाग भी देखता था.

मुल्ला उमर से संबद्ध बरादार को सबसे सक्रिय रणनीतिकार माना जाता है, जिसने इन फतह की इबारत लिखी. औपचारिक तौर पर तालिबान का गठन 1994 में हुआ था.

2001 में अमेरिका में वर्ल्ड टॉवर सेंटर पर हमले के बाद जब अमेरिकी सैनिकों ने अफगानिस्तान में कार्रवाई की, तो बरादर पाकिस्तान भाग गया.

2010 में उसे कराची से गिरफ्तार कर लिया गया. 2013 में वह रिहा हो गया.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मुल्ला उमर और बरादर आपस में रिश्तेदार है. बरादर की बहन मुल्ला उमर की पत्नी थी.

जब तक मुल्ला उमर जिंदा रहा, बरादर का मुख्य काम पैसा जुटाना था.

बरादर अमेरिका के साथ बातचीत का पक्षधर था. दोहा में जो भी वार्ताएं हुईं, उसमें बरादर की सबसे अधिक चलती थी.

तालिबान और अमेरिका के बीच 2018 में समझौता शुरू हुआ. बरादर अमेरिका के साथ वार्ता का समर्थक रह चुका है.

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