शिमला: राज्य सरकार की गाड़ियों के वीवीआईपी नंबर्स पर हाईकोर्ट ने सख्त रवैया अपनाया है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि ऐसा कौन सा पुण्य कार्य है, जो इन वीवीआईपी नंबर्स के बिना पूरा नहीं हो सकता है. अदालत ने ऐतराज जताया कि सरकार के वाहनों को ही 0001 जैसे वीवीआईपी नंबर्स क्यों चाहिए ? यही नहीं, सरकारी खजाने पर इन नंबर्स को अलॉट करवाने के एवज में पड़ने वाले वित्तीय बोझ पर भी हाईकोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई (HP High Court on VIP number of government vehicle) है.
अदालत ने मुख्य सचिव को शपथ पत्र दाखिल कर उक्त सभी बातों का जवाब देने के आदेश जारी किए हैं. हाईकोर्ट ने कहा कि सरकारी गाड़ियों को वीवीआईपी नंबर्स से सजाने का काम किया जाता है और इसके लिए सरकारी खजाने पर बोझ डाला जाता है. वाहनों को वीवीआईपी नंबर्स अलॉट करने के दोहरे मापदंडों पर हाईकोर्ट ने एतराज जताते हुए तल्ख टिप्पणी की और मुख्य सचिव से पूछा है कि ऐसा कौन सा पुण्य का काम है जो इन नंबर्स की गाड़ियों के बिना पूरा नहीं होता.
दरअसल, हाईकोर्ट में इसी से जुड़ी एक याचिका दाखिल की गई था. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि एक से लेकर दस नम्बर को वीवीआईपी मानकर उनकी कीमत निर्धारित की गई है. वहीं, सरकार ने इन नंबर्स वाले वाहनों को अपनी गाड़ियों के लिए रिजर्व कर रखा है. राज्य सरकार ने यह वीवीआईपी नंबर्स की कीमत वाली नीति खजाने के लिए पैसा जोडऩे को बनाई है या फिर ये नम्बर सरकारी गाड़ियों के लिए रिजर्व किए हैं. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव को 12 दिसंबर तक अपना शपथ पत्र न्यायालय के समक्ष दाखिल करने के आदेश जारी किए गए हैं.
कोर्ट ने अदालत (Himachal high court) ने राज्य सरकार से यह भी पूछा है कि वीवीआईपी नंबर से मशहूर क्रम संख्या 0001 से 0010 सरकारी वाहनों के लिए ही क्यों आरक्षित हैं ? क्या सरकारी वाहन इन नम्बर्स के बिना नहीं चल सकते? कोर्ट ने सरकार के इस मनमाने रवैये पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि इन नंबरों को जारी करने के पीछे सरकार की मंशा इनकी नीलामी कर सरकारी खजाने में बढ़ोतरी करना है तो इन नंबर्स को सरकारी वाहनों के लिए आरक्षित करना कैसे तर्कसंगत ठहराया जा सकता है. अदालत ने कहा कि सरकार टैक्स दाताओं के पैसे से मजबूत होने वाले सरकारी खजाने का इस्तेमाल इन नंबरों को अपने वाहनों के लिए आरक्षित करने के लिए नहीं कर सकती. सरकार इस मामले में निजी लोगों से बराबरी के हक की अपेक्षा नहीं कर सकती. सरकार के पास आम जनता के टैक्स के पैसे की कीमत पर सरकारी वाहनों पर वीआईपी नंबरों के भुगतान का तरीका कतई ठीक नहीं है.
हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में याचिकाकर्ता ने अपनी गाड़ी के लिए नियमानुसार क्रम संख्या 0006 के आवंटन के लिए 50,000/- रुपये की राशि परिवहन विभाग के पास जमा करवाई थी. राशि जमा करवाने के बाद भी ये नंबर उसे नहीं दिया गया. फिर प्रार्थी ने याचिका के माध्यम से इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी. न्यायालय ने पाया कि राज्य सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना के तहत वाहनों की क्रम संख्या 0001 से 0010 तक केवल सरकारी वाहनों के लिए आरक्षित रखी गई है. सरकारी वाहनों के लिए इस क्रम संख्या की कीमत एक लाख रुपए प्रति नम्बर रखी गई है. कोर्ट ने अधिसूचना में राज्य सरकार के लिए आम जनता के टैक्स की कीमत पर इस तरह की व्यवस्था पर हैरानी जताई है.
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