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चुनाव का चौथा चरण यूपी की दशा और दिशा तय करेगी - वरिष्ठ पत्रकार अतुल चंद्रा की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए चौथे चरण का मतदान आज जारी है. यह चरण सत्ता और विपक्ष के लिए काफी चुनौतीपूर्ण है. जैसा कि हम जानते है कि इसके साथ ही कुल 231 सीटो पर मतदान संपन्न हो जाएगा. प्रदेश में सरकार बनाने के लिए कुल 403 सीटों में से 202 के आंकड़ों को छूना आवश्यक है. इसका मतलब है कि जिस किसी पार्टी नेअपनी बढ़त जारी रखी है उसी की सरकार बनेगी, पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार अतुल चंद्रा का विश्लेषणात्मक रिपोर्ट...

चौथे चरण का चुनाव
चौथे चरण का चुनाव
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Published : Feb 23, 2022, 12:11 PM IST

Updated : Feb 23, 2022, 12:20 PM IST

हैदराबाद : उत्तर प्रदेश राजनीतिक दृष्टिकोण से देश का अहम राज्य माना जाता है. सूबे में हो रहे विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक पार्टियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चौथा चरण का चुनाव यूपी की दशा और दिशा तय करेगी. बताते चले कि चौथे दौर का चुनाव प्रचार सोमवार शाम को ही समाप्त हो गया था और मतदान आज जारी है. नौ जिलों रोहिलखंड, तराई बेल्ट और अवध क्षेत्र की 59 विधानसभा सीटों के लिए वोटिंग हो रही है. इस चरण में अवध क्षेत्र के जिलों में राज्य की राजधानी लखनऊ और रायबरेली शामिल हैं, जिसे गांधी परिवार की मजबूत पकड़ वाला क्षेत्र माना जाता था. रायबरेली सीट से कांग्रेस की बागी विधायक अदिति सिंह बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं. कांग्रेस ने रायबरेली के सभी पांच निर्वाचन सीटों में अपनी जीत की उम्मीद के साथ उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. यह पहला मौका है जब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी अकेले दम पर राज्य में कैडर को मजबूत करने में जुटी हुई है. विधान सभा चुनाव 2022 के नतीजे उनका ही नहीं बल्कि पार्टी का भी भविष्य तय करेंगे.

हालांकि चौथे चरण के चुनाव प्रचार के अंतिम दिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव, कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल इन सभी ने मतदाताओं से एक दूसरे को निशाना बनाकर समर्थन की जोरदार अपील की थी. हालांकि, इस चरण के लिए चुनावी आख्यान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा निर्धारित किया गया था. हरदोई में एक भाषण में, मोदी ने समाजवादी पार्टी को आतंकवाद से जोड़ा और पूछा कि अहमदाबाद सीरियल धमाकों में आतंकवादियों द्वारा साइकिल का इस्तेमाल क्यों किया गया था. संयोग से, साइकिल, सपा का चुनाव चिन्ह है जो भाजपा के लिए एकमात्र चुनौती बनकर उभरा है.

जेपी नड्डा, योगी आदित्यनाथ और अनुराग ठाकुर जैसे अन्य भाजपा के दिग्गजों ने सपा पर आतंकवादियों को संरक्षण देने, राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने और मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने और बेरोजगारी जैसे अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर नजर रखने के लिए हमेशा की तरह “अब्बा जान, भाईजान” का आरोप लगाकर एक बार फिर जोरदार हमला किया. मुद्रास्फीति. अनुराग ठाकुर एक पुरानी तस्वीर भी लेकर आए, जिसमें अहमदाबाद विस्फोट के एक दोषी के पिता अखिलेश के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं. इसका जवाब सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने विरोधियों को तीखा दिया. अखिलेश ने प्रधानमंत्री पर पलटवार करते हुए कहा कि "साइकिल का अपमान देश का अपमान है" देश में लाखों गरीबों का वाहन है साइकिल.

ध्रुवीकरण का धंधा होते हुए भी सबकी निगाहें लखीमपुर-खीरी पर टिकी हैं, जहां केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा ने कथित तौर पर अपनी एसयूवी से प्रदर्शन कर रहे किसानों को कुचल दिया. आशीष की गिरफ्तारी से जो गुस्सा शांत हुआ वह जमानत पर रिहा होने के बाद फिर से भड़क उठा है. जिला तराई बेल्ट में पड़ता है और गन्ना बेल्ट है जहां किसानों की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण हो सकती है.

राज्य के बरेली मंडल का हिस्सा होने के कारण पीलीभीत रोहिलखंड क्षेत्र में है, जहां दूसरे चरण में अधिकांश जिलों को कवर किया गया था. यह यूपी का प्रमुख गन्ना उत्पादक जिला भी है. इन दो जिलों में गन्ना उत्पादकों को बकाया भुगतान न करने से भाजपा की चुनावी संभावनाएं प्रभावित हो सकती हैं. यही हाल सीतापुर का भी होगा.

लखनऊ में एक दिलचस्प लड़ाई है जहां जाति और सामुदायिक कार्ड एक भूमिका निभाएंगे, लेकिन भाजपा को क्लीन स्वीप का आश्वासन नहीं दिया जा सकता है क्योंकि यह एक पुनरुत्थानवादी सपा का सामना कर रही है. यह निर्वाचन क्षेत्र अद्वितीय है क्योंकि इसमें शिया और सुन्नी दोनों संप्रदाय हैं, जिनके अलग-अलग राजनीतिक झुकाव हैं. शियाओं ने परंपरागत रूप से भाजपा को वोट दिया है, जबकि सुन्नियों ने धर्मनिरपेक्ष दलों को चुना है. योगी सरकार द्वारा सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर नकेल कसने के बाद योगी आदित्यनाथ के प्रति गहरी नाराजगी है. इसलिए जब एक प्रमुख शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने भाजपा के लिए एक अपील जारी की तो यह समुदाय के लिए एक बड़ा झटका था.

जिले में अन्य जगहों पर दलितों, वैश्यों, कायस्थों, खत्री और ब्राह्मणों पर फोकस रहेगा. उदाहरण के लिए, सरोजिनीनगर के ठाकुर बहुल निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा ने उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहीं स्वाति सिंह की जगह पर प्रवर्तन निदेशालय के पूर्व संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह को मैदान में उतारा है. फेरबदल से पार्टी को कोई नुकसान नहीं होगा क्योंकि यहां कांग्रेस के उम्मीदवार भी ठाकुर---रिपुदमन सिंह-- हैं, जबकि सपा अपने पूर्व मंत्री अभिषेक मिश्रा पर दांव लगा रही है. ठाकुर वोटों के बंटवारे से भाजपा प्रत्याशी की राह आसान हो सकती है.

पढ़ें -यूपी विधानसभा चुनाव के तीन चरणों के मतदान में मुसलमानों ने किसे दिया वोट ?

विधानसभा चुनाव 2017 की तरह, विपक्षी दलों ने वोटों के बंटवारे को अपरिहार्य बनाते हुए एक असंबद्ध मोर्चा बनाया है. ऐसा इसलिए है क्योंकि उनमें से प्रत्येक स्वतंत्र रूप से यूपी पर शासन करने की इच्छा रखता है. पिछले चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन सपा के लिए हानिकारक साबित हुआ इसलिए दोनों ने हाथ नहीं मिलाया. बसपा न तो कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकती है और न ही सपा के साथ. इससे बीजेपी को काफी फायदा मिलता है. अगर यह सपा के लिए नहीं होता, जो भाजपा से मोहभंग करने वालों के लिए एक रैली स्थल बन गया है, तो ये चुनाव सत्ताधारी पार्टी के लिए एक आसान कदम होंगे. विधानसभा चुनाव 2017 में भाजपा ने 59 में से 51 सीटें जीती थीं और चार एसपी के खाते में चली गई थीं. बसपा और कांग्रेस को सिर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ा.

नोट--विश्लेषण लेखक का व्यक्तिगत विचार है इसका ईटीवी भारत से कोई सरोकार नहीं है

हैदराबाद : उत्तर प्रदेश राजनीतिक दृष्टिकोण से देश का अहम राज्य माना जाता है. सूबे में हो रहे विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक पार्टियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चौथा चरण का चुनाव यूपी की दशा और दिशा तय करेगी. बताते चले कि चौथे दौर का चुनाव प्रचार सोमवार शाम को ही समाप्त हो गया था और मतदान आज जारी है. नौ जिलों रोहिलखंड, तराई बेल्ट और अवध क्षेत्र की 59 विधानसभा सीटों के लिए वोटिंग हो रही है. इस चरण में अवध क्षेत्र के जिलों में राज्य की राजधानी लखनऊ और रायबरेली शामिल हैं, जिसे गांधी परिवार की मजबूत पकड़ वाला क्षेत्र माना जाता था. रायबरेली सीट से कांग्रेस की बागी विधायक अदिति सिंह बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं. कांग्रेस ने रायबरेली के सभी पांच निर्वाचन सीटों में अपनी जीत की उम्मीद के साथ उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. यह पहला मौका है जब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी अकेले दम पर राज्य में कैडर को मजबूत करने में जुटी हुई है. विधान सभा चुनाव 2022 के नतीजे उनका ही नहीं बल्कि पार्टी का भी भविष्य तय करेंगे.

हालांकि चौथे चरण के चुनाव प्रचार के अंतिम दिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव, कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल इन सभी ने मतदाताओं से एक दूसरे को निशाना बनाकर समर्थन की जोरदार अपील की थी. हालांकि, इस चरण के लिए चुनावी आख्यान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा निर्धारित किया गया था. हरदोई में एक भाषण में, मोदी ने समाजवादी पार्टी को आतंकवाद से जोड़ा और पूछा कि अहमदाबाद सीरियल धमाकों में आतंकवादियों द्वारा साइकिल का इस्तेमाल क्यों किया गया था. संयोग से, साइकिल, सपा का चुनाव चिन्ह है जो भाजपा के लिए एकमात्र चुनौती बनकर उभरा है.

जेपी नड्डा, योगी आदित्यनाथ और अनुराग ठाकुर जैसे अन्य भाजपा के दिग्गजों ने सपा पर आतंकवादियों को संरक्षण देने, राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने और मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने और बेरोजगारी जैसे अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर नजर रखने के लिए हमेशा की तरह “अब्बा जान, भाईजान” का आरोप लगाकर एक बार फिर जोरदार हमला किया. मुद्रास्फीति. अनुराग ठाकुर एक पुरानी तस्वीर भी लेकर आए, जिसमें अहमदाबाद विस्फोट के एक दोषी के पिता अखिलेश के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं. इसका जवाब सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने विरोधियों को तीखा दिया. अखिलेश ने प्रधानमंत्री पर पलटवार करते हुए कहा कि "साइकिल का अपमान देश का अपमान है" देश में लाखों गरीबों का वाहन है साइकिल.

ध्रुवीकरण का धंधा होते हुए भी सबकी निगाहें लखीमपुर-खीरी पर टिकी हैं, जहां केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा ने कथित तौर पर अपनी एसयूवी से प्रदर्शन कर रहे किसानों को कुचल दिया. आशीष की गिरफ्तारी से जो गुस्सा शांत हुआ वह जमानत पर रिहा होने के बाद फिर से भड़क उठा है. जिला तराई बेल्ट में पड़ता है और गन्ना बेल्ट है जहां किसानों की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण हो सकती है.

राज्य के बरेली मंडल का हिस्सा होने के कारण पीलीभीत रोहिलखंड क्षेत्र में है, जहां दूसरे चरण में अधिकांश जिलों को कवर किया गया था. यह यूपी का प्रमुख गन्ना उत्पादक जिला भी है. इन दो जिलों में गन्ना उत्पादकों को बकाया भुगतान न करने से भाजपा की चुनावी संभावनाएं प्रभावित हो सकती हैं. यही हाल सीतापुर का भी होगा.

लखनऊ में एक दिलचस्प लड़ाई है जहां जाति और सामुदायिक कार्ड एक भूमिका निभाएंगे, लेकिन भाजपा को क्लीन स्वीप का आश्वासन नहीं दिया जा सकता है क्योंकि यह एक पुनरुत्थानवादी सपा का सामना कर रही है. यह निर्वाचन क्षेत्र अद्वितीय है क्योंकि इसमें शिया और सुन्नी दोनों संप्रदाय हैं, जिनके अलग-अलग राजनीतिक झुकाव हैं. शियाओं ने परंपरागत रूप से भाजपा को वोट दिया है, जबकि सुन्नियों ने धर्मनिरपेक्ष दलों को चुना है. योगी सरकार द्वारा सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर नकेल कसने के बाद योगी आदित्यनाथ के प्रति गहरी नाराजगी है. इसलिए जब एक प्रमुख शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने भाजपा के लिए एक अपील जारी की तो यह समुदाय के लिए एक बड़ा झटका था.

जिले में अन्य जगहों पर दलितों, वैश्यों, कायस्थों, खत्री और ब्राह्मणों पर फोकस रहेगा. उदाहरण के लिए, सरोजिनीनगर के ठाकुर बहुल निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा ने उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहीं स्वाति सिंह की जगह पर प्रवर्तन निदेशालय के पूर्व संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह को मैदान में उतारा है. फेरबदल से पार्टी को कोई नुकसान नहीं होगा क्योंकि यहां कांग्रेस के उम्मीदवार भी ठाकुर---रिपुदमन सिंह-- हैं, जबकि सपा अपने पूर्व मंत्री अभिषेक मिश्रा पर दांव लगा रही है. ठाकुर वोटों के बंटवारे से भाजपा प्रत्याशी की राह आसान हो सकती है.

पढ़ें -यूपी विधानसभा चुनाव के तीन चरणों के मतदान में मुसलमानों ने किसे दिया वोट ?

विधानसभा चुनाव 2017 की तरह, विपक्षी दलों ने वोटों के बंटवारे को अपरिहार्य बनाते हुए एक असंबद्ध मोर्चा बनाया है. ऐसा इसलिए है क्योंकि उनमें से प्रत्येक स्वतंत्र रूप से यूपी पर शासन करने की इच्छा रखता है. पिछले चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन सपा के लिए हानिकारक साबित हुआ इसलिए दोनों ने हाथ नहीं मिलाया. बसपा न तो कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकती है और न ही सपा के साथ. इससे बीजेपी को काफी फायदा मिलता है. अगर यह सपा के लिए नहीं होता, जो भाजपा से मोहभंग करने वालों के लिए एक रैली स्थल बन गया है, तो ये चुनाव सत्ताधारी पार्टी के लिए एक आसान कदम होंगे. विधानसभा चुनाव 2017 में भाजपा ने 59 में से 51 सीटें जीती थीं और चार एसपी के खाते में चली गई थीं. बसपा और कांग्रेस को सिर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ा.

नोट--विश्लेषण लेखक का व्यक्तिगत विचार है इसका ईटीवी भारत से कोई सरोकार नहीं है

Last Updated : Feb 23, 2022, 12:20 PM IST
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