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चुनाव तय करते हैं मौत के बाद सरकारी सहायता की रकम, जाने क्या हैं मुआवजे के नियम ?

मौत के बाद सरकारी मुआवजे या आर्थिक सहायता के नियम-कानून होते हैं. मगर सच यह है कि आर्थिक सहायता की सरकारी घोषणाओं पर भी चुनावी मौसम का फर्क पड़ता है. यदि ऐसा नहीं होता तो कश्मीर में मारे गए बिहारी मजदूरों के परिजनों को सिर्फ दो लाख की मामूली सहायता नहीं मिलती और लखीमपुर खीरी के किसानों पर सहायता राशि की बारिश नहीं होती.

government ex-gratia
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Published : Oct 18, 2021, 4:41 PM IST

Updated : Oct 18, 2021, 10:30 PM IST

हैदराबाद : मौत की कीमत होती है, जो सरकारें मुआवजे के तौर पर तय करती हैं. यह कीमत कितनी होगी, यह सामाजिक और चुनावी हालात तय करते हैं. कश्मीर में मारे गए बिहारी मजदूरों के लिए बिहार सरकार ने दो-दो लाख रुपये मुआवजे का ऐलान किया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आतंकी हमले में मारे गए लोगों के आश्रित को मुख्यमंत्री राहत कोष से दो लाख रुपये देने की घोषणा की. जबकि बिहार सरकार बिजली गिरने से मौत के मामले में 4 लाख रुपये का मुआवजा देती है. सिर्फ दो लाख के मुआवजे के कारण चिराग पासवान की पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता धीरेंद्र कुमार सिन्हा ऊर्फ मुन्ना ने ट्वीट कर नीतीश सरकार की आलोचना की.

  • ठनका से मरने पर चार लाख और आतंकियों ने मारा तो दो लाख का मुआवजा दे रही बिहार सरकार @NitishKumar जी , ज़िंदगी है तो नौकरी नहीं - मौत मिली तो मुआवज़ा नहीं , ये फ़ैसले सरकारी लेते हैं या आपके दरबारी ? ख़ुद गद्दी छोड़ दिजिये नहीं तो जनता आपको बाहर करने का मन बना चुकी है।

    — धीरेन्द्र कुमार सिन्हा “ मुन्ना “ (@DhirendraSinha1) October 18, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

अब जरा उत्तरप्रदेश के लखीमपुर में दिए गए मुआवजे पर बात करें. वहां यूपी सरकार ने मृत किसानों के परिजनों को 45-45 लाख रुपये देने की घोषणा कर दी. इसके अलावा छत्तीसगढ़ और पंजाब सरकार ने भी किसानों के परिजनों को 50-50 लाख देने का ऐलान कर दिया . आखिर मौतों के बाद मुआवजे की कोई सरकारी नीति है या यह सिर्फ सत्ता की मर्जी है.

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कांग्रेस नेताओं ने लखीमपुर में मुआवजे की राशि और बड़ी कर दी.

यूपी में चुनाव नहीं होते तो क्या बघेल और चन्नी मुआवजा देते

लखीमपुर खीरी उत्तरप्रदेश का ऐसा इलाका है, जहां सिख आबादी बड़ी तादाद में रहती है. लखीमपुर में हिंसा की चपेट में आए किसान सिख थे. प्रियंका गांधी के लखीमपुर खीरी में एंट्री के बाद कांग्रेस शासित राज्यों के सीएम भूपेश बघेल और चरणजीत सिंह चन्नी ने मुआवजे का ऐलान कर बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया. दोनों मुख्यमंत्रियों ने यूपी सरकार के 45 लाख से अधिक रकम की आर्थिक सहायता देकर योगी सरकार को कड़ी चुनौती दी. माना जा रहा है कि अगर यूपी में चुनाव नहीं होते तो शायद किसानों को इतनी सहायता राशि नहीं मिलती.

कश्मीर में मारे गए बिहारी मजदूरों के परिवार को दो लाख ही क्यों?

बिहार मुख्यमंत्री राहत कोष के नियमों के अनुसार, दूसरे राज्य में आतंकी घटनाओं में मारे गए राज्य के नागरिकों को प्राकृतिक आपदा के तहत मिलने वाली राशि जितनी सहायता दी जा सकती है. इसलिए कश्मीर में मारे गए बिहारी मजदूर के लिए दो लाख रुपये की राशि दी गई. हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने श्रम मंत्रालय को पीड़ित परिवार को अन्य सहायता देने के निर्देश दिए हैं.

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लखीमपुर में किसान संगठनों ने मुआवजे की रकम तय की थी.

किसानों से वार्ता के बाद तय हुई थी लखीमपुर में मुआवजे की रकम

लखीमपुर में मौत का मुआवजे की राशि बड़ी थी. दरअसल नागरिकों की सुरक्षा देने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है. अगर आंदोलन के दौरान हिंसा को रोकना भी राज्य की जिम्मेदारी है. अगर सरकार अपनी ड्यूटी में असफल रहती है, उसे पीड़ित को मुआवजा देने के लिए बाध्य किया जाता है. लखीमपुर खीरी में हिंसा उत्तरप्रदेश सरकार अपनी भूमिका नहीं निभा सकी, इसलिए उन्होंने पीड़ित परिवार को मुआवजा दिया. छत्तीसगढ़ और पंजाब के सीएम ने भी इसी नियम के तहत सहायता दी. हालांकि उन्होंने इतनी बड़ी रकम देने के लिए किस फंड का उपयोग किया, यह स्पष्ट नहीं है. गौरतलब यह है कि मुआवजे की राशि किसान नेताओं और सरकार से बातचीत के बाद तय हुई थी.

पहले यह समझें कि हादसों के बाद सरकारी मुआवजा क्या है आसान भाषा में इसका अर्थ है, क्षतिपूर्ति. मगर मौत के मामलों में यह आर्थिक सहायता के तौर पर दिया जाता है. केंद्र सरकार और राज्य सरकार अपने विभागीय नियमों के हिसाब से मुआवजा तय करती है. जैसे सड़क हादसे का मुआवजा सड़क परिवहन मंत्रालय और किसी फैक्ट्री में मौत का मुआवजा श्रम कानूनों के आधार पर तय होता है.

सरकारी सिस्टम फेल होने पर मुआवजे का हक

आम लोगों को सरकारी आर्थिक सहायता या मुआवजा प्राकृतिक आपदा के अलावा ऐसे केस में मिलता है, जहां राज्य का सिस्टम फेल होता है. आतंकी हिंसा, जातीय हिंसा, सांप्रदायिक हिंसा, समूह संघर्ष, असामाजिक तत्वों और बदमाशों के कार्य, सार्वजनिक स्थानों पर या सार्वजनिक वाहक में दुर्घटना इसी कैटिगरी में आती है. राज्य में होने वाली मानव निर्मित हिंसा और प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित प्रत्येक नागरिक मानवीय सहायता और अनुग्रह राशि प्राप्त करने का हकदार है.

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सांकेतिक तस्वीर

आपात स्थिति में सरकार को मुआवजा तय करने का अधिकार

इसके अलावा प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री के पास मुख्यमंत्री राहत कोष, पीएम रिलीफ फंड, मुख्यमंत्री सहायता कोष जैसे कई फंड होते हैं. पीएम और सीएम कोष के नियमों के हिसाब से मुआवजे का ऐलान करते हैं. जैसे प्राकृतिक आपदा के बाद फसलों का मुआवजा, राहत के तौर दी जाने वाली मदद की राशि तय होती है. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री इलाज, शिक्षा, दैवीय आपदा, जघन्य अपराध पीड़ितों की सहायता, आकस्मिक दुर्घटना और बाल कल्याण के लिए सहायता के लिए बनाए गए फंड को खर्च करते हैं. एक्सपर्ट मानते हैं कि स्पेशल कंडिशन या आपात स्थिति में मुआवजे की रकम सरकार कम या ज्यादा कर सकती है. इसके अलावा जिले के डीएम भी प्रावधानों के तहत कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए आर्थिक मदद कर सकते हैं.

हैदराबाद : मौत की कीमत होती है, जो सरकारें मुआवजे के तौर पर तय करती हैं. यह कीमत कितनी होगी, यह सामाजिक और चुनावी हालात तय करते हैं. कश्मीर में मारे गए बिहारी मजदूरों के लिए बिहार सरकार ने दो-दो लाख रुपये मुआवजे का ऐलान किया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आतंकी हमले में मारे गए लोगों के आश्रित को मुख्यमंत्री राहत कोष से दो लाख रुपये देने की घोषणा की. जबकि बिहार सरकार बिजली गिरने से मौत के मामले में 4 लाख रुपये का मुआवजा देती है. सिर्फ दो लाख के मुआवजे के कारण चिराग पासवान की पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता धीरेंद्र कुमार सिन्हा ऊर्फ मुन्ना ने ट्वीट कर नीतीश सरकार की आलोचना की.

  • ठनका से मरने पर चार लाख और आतंकियों ने मारा तो दो लाख का मुआवजा दे रही बिहार सरकार @NitishKumar जी , ज़िंदगी है तो नौकरी नहीं - मौत मिली तो मुआवज़ा नहीं , ये फ़ैसले सरकारी लेते हैं या आपके दरबारी ? ख़ुद गद्दी छोड़ दिजिये नहीं तो जनता आपको बाहर करने का मन बना चुकी है।

    — धीरेन्द्र कुमार सिन्हा “ मुन्ना “ (@DhirendraSinha1) October 18, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

अब जरा उत्तरप्रदेश के लखीमपुर में दिए गए मुआवजे पर बात करें. वहां यूपी सरकार ने मृत किसानों के परिजनों को 45-45 लाख रुपये देने की घोषणा कर दी. इसके अलावा छत्तीसगढ़ और पंजाब सरकार ने भी किसानों के परिजनों को 50-50 लाख देने का ऐलान कर दिया . आखिर मौतों के बाद मुआवजे की कोई सरकारी नीति है या यह सिर्फ सत्ता की मर्जी है.

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कांग्रेस नेताओं ने लखीमपुर में मुआवजे की राशि और बड़ी कर दी.

यूपी में चुनाव नहीं होते तो क्या बघेल और चन्नी मुआवजा देते

लखीमपुर खीरी उत्तरप्रदेश का ऐसा इलाका है, जहां सिख आबादी बड़ी तादाद में रहती है. लखीमपुर में हिंसा की चपेट में आए किसान सिख थे. प्रियंका गांधी के लखीमपुर खीरी में एंट्री के बाद कांग्रेस शासित राज्यों के सीएम भूपेश बघेल और चरणजीत सिंह चन्नी ने मुआवजे का ऐलान कर बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया. दोनों मुख्यमंत्रियों ने यूपी सरकार के 45 लाख से अधिक रकम की आर्थिक सहायता देकर योगी सरकार को कड़ी चुनौती दी. माना जा रहा है कि अगर यूपी में चुनाव नहीं होते तो शायद किसानों को इतनी सहायता राशि नहीं मिलती.

कश्मीर में मारे गए बिहारी मजदूरों के परिवार को दो लाख ही क्यों?

बिहार मुख्यमंत्री राहत कोष के नियमों के अनुसार, दूसरे राज्य में आतंकी घटनाओं में मारे गए राज्य के नागरिकों को प्राकृतिक आपदा के तहत मिलने वाली राशि जितनी सहायता दी जा सकती है. इसलिए कश्मीर में मारे गए बिहारी मजदूर के लिए दो लाख रुपये की राशि दी गई. हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने श्रम मंत्रालय को पीड़ित परिवार को अन्य सहायता देने के निर्देश दिए हैं.

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लखीमपुर में किसान संगठनों ने मुआवजे की रकम तय की थी.

किसानों से वार्ता के बाद तय हुई थी लखीमपुर में मुआवजे की रकम

लखीमपुर में मौत का मुआवजे की राशि बड़ी थी. दरअसल नागरिकों की सुरक्षा देने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है. अगर आंदोलन के दौरान हिंसा को रोकना भी राज्य की जिम्मेदारी है. अगर सरकार अपनी ड्यूटी में असफल रहती है, उसे पीड़ित को मुआवजा देने के लिए बाध्य किया जाता है. लखीमपुर खीरी में हिंसा उत्तरप्रदेश सरकार अपनी भूमिका नहीं निभा सकी, इसलिए उन्होंने पीड़ित परिवार को मुआवजा दिया. छत्तीसगढ़ और पंजाब के सीएम ने भी इसी नियम के तहत सहायता दी. हालांकि उन्होंने इतनी बड़ी रकम देने के लिए किस फंड का उपयोग किया, यह स्पष्ट नहीं है. गौरतलब यह है कि मुआवजे की राशि किसान नेताओं और सरकार से बातचीत के बाद तय हुई थी.

पहले यह समझें कि हादसों के बाद सरकारी मुआवजा क्या है आसान भाषा में इसका अर्थ है, क्षतिपूर्ति. मगर मौत के मामलों में यह आर्थिक सहायता के तौर पर दिया जाता है. केंद्र सरकार और राज्य सरकार अपने विभागीय नियमों के हिसाब से मुआवजा तय करती है. जैसे सड़क हादसे का मुआवजा सड़क परिवहन मंत्रालय और किसी फैक्ट्री में मौत का मुआवजा श्रम कानूनों के आधार पर तय होता है.

सरकारी सिस्टम फेल होने पर मुआवजे का हक

आम लोगों को सरकारी आर्थिक सहायता या मुआवजा प्राकृतिक आपदा के अलावा ऐसे केस में मिलता है, जहां राज्य का सिस्टम फेल होता है. आतंकी हिंसा, जातीय हिंसा, सांप्रदायिक हिंसा, समूह संघर्ष, असामाजिक तत्वों और बदमाशों के कार्य, सार्वजनिक स्थानों पर या सार्वजनिक वाहक में दुर्घटना इसी कैटिगरी में आती है. राज्य में होने वाली मानव निर्मित हिंसा और प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित प्रत्येक नागरिक मानवीय सहायता और अनुग्रह राशि प्राप्त करने का हकदार है.

government ex-gratia
सांकेतिक तस्वीर

आपात स्थिति में सरकार को मुआवजा तय करने का अधिकार

इसके अलावा प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री के पास मुख्यमंत्री राहत कोष, पीएम रिलीफ फंड, मुख्यमंत्री सहायता कोष जैसे कई फंड होते हैं. पीएम और सीएम कोष के नियमों के हिसाब से मुआवजे का ऐलान करते हैं. जैसे प्राकृतिक आपदा के बाद फसलों का मुआवजा, राहत के तौर दी जाने वाली मदद की राशि तय होती है. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री इलाज, शिक्षा, दैवीय आपदा, जघन्य अपराध पीड़ितों की सहायता, आकस्मिक दुर्घटना और बाल कल्याण के लिए सहायता के लिए बनाए गए फंड को खर्च करते हैं. एक्सपर्ट मानते हैं कि स्पेशल कंडिशन या आपात स्थिति में मुआवजे की रकम सरकार कम या ज्यादा कर सकती है. इसके अलावा जिले के डीएम भी प्रावधानों के तहत कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए आर्थिक मदद कर सकते हैं.

Last Updated : Oct 18, 2021, 10:30 PM IST
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