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बिहार चुनाव : दशकों से 'माननीयों' की उपेक्षा झेल रहे बुनकर, टूट रहे सपने

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Published : Oct 22, 2020, 6:03 AM IST

बिहार का भागलपुर देश-दुनिया में रेशम के लिए प्रसिद्ध है. अब जबकि बिहार विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरम का मतदान होने में चंद दिन बाकी हैं, यह जानना दिलचस्प है कि भागलपुर के बुनकरों के हालात पर राज्य की सियासत क्या सोचती है. चुनाव प्रचार के दौरान नेता भले ही बड़े-बड़े वायदे करते दिखें, लेकिन भागलपुर में किए गए कई वायदे हकीकत में नहीं बदल सके हैं. बुनकरों से नेताओं का कोई सरोकार नहीं है. पढ़ें रिपोर्ट...

भागलपुर रेशम की चमक
भागलपुर रेशम की चमक

भागलपुर: बिहार विधानसभा चुनाव मद्देनजर 23 अक्टूबर को पीएम नरेंद्र मोदी जिले में चुनावी जनसभा करने आ रहे हैं. हमेशा की तहर इस बार भी जिले के बुनकरों को पीएम से मदद की उम्मीद है. हालांकि लोकसभा चुनाव में भी इन बुनकरों से वायदे किए गए थे, लेकिन वो पूरे नहीं हुए. इस बार भी विधानसभा चुनाव में बुनकर आस लगाए हुए हैं.

भागलपुर रेशम की चमक पड़ी फीकी.

बता दें कि देश भर में भागलपुर रेशम के लिए जाना जाता है. लेकिन 1989 के दंगे के बाद से ही जिले की तस्वीर पूरी तरह से बदल गई है. 31 साल के बाद भी बुनकर के हालात सामान्य नहीं हो सकी है. जिले में 3 से 3.5 लाख बुनकर अभी रेशम के कारोबार से जुड़े हुए हैं. सरकारी उदासीनता के कारण इनकी हालात काफी दयनीय है.

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भागलपुर के सिल्क का एक नमूना

रेशम उद्योग को बेहतर बनाने के हर बार वायदे
चुनाव के समय में नेता बुनकरों की स्थिति को बेहतर कर भागलपुर के रेशम उद्योग को फिर से बेहतर बनाने की बात करते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होते ही सारे वायदे भूल जाते हैं. जब ईटीवी भारत संवाददाता ने इन बुनकरों से बात की तो इन्होंने अपना दर्द साझा किया.

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दशकों से 'माननीयों' की उपेक्षा झेल रहे बुनकर

बुनकर नेता अबरार अंसारी ने कहा कि सरकार यदि चाहती तो इस उद्योग को बेहतर बनाया जा सकता था. बुनकरों के हालात को भी ठीक किया जा सकता था. लेकिन आज जो कोई बचे हुए बुनकर हैं, वह किसी तरह से अपने और अपने परिवार का गुजारा कर रहे हैं. सरकार की कोई भी योजनाएं धरातल पर नहीं है.

सरकार के उदासीन रवैये से मुश्किल हुए हालात
भागलपुर का चंपानगर इलाका पूरी तरह से बुनकरों से भरा हुआ है. गुणकारी करना ही इन बुनकरों का मुख्य पेशा है, लेकिन सरकारी उदासीनता की वजह से काफी ज्यादा मुश्किल हालात पैदा हो गए हैं. बुनकर पूरी तरह से भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके हैं. सरकार इन बुनकरों को लेकर काफी उदासीन दिख रही है.

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3 से 3.5 लाख बुनकर अभी रेशम के कारोबार से जुड़े हुए हैं

टेक्सटाइल इंजीनियर तौसीफ शबाब ने कहा कि टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में काफी ज्यादा करियर है, लेकिन यहां उद्योग को किसी तरह से कोई सहायता नहीं प्रदान की जा रही है. सरकारी सहायता नहीं मिलने से जिले में दिन-ब-दिन रेशम उद्योग की स्थिति बदतर हो गई है. अगर मुझे नौकरी करनी पड़ी तो, दूसरे राज्यों में जाना पड़ेगा, यहां की जो टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज है वह काफी खराब स्थिति में है.

लॉकडाउन की वजह से भी इस उद्योग को काफी घाटा हुआ है. अभी के समय में बहुत ही मुश्किल से काम हो रहा है. हम सभी कारीगर मुश्किल से दिन में 200 से 300 रुपये ही कमा पाते हैं. इसी से किसी तरह घर का गुजारा चला रहे हैं.

राजा,कारीगर और परवेज, बुनकर

चुनाव के साथ ही खत्म हो जाते हैं नेताओं के वायदे
ज्यादातर बुनकरों का यही कहना है कि जैसे ही चुनाव आता है. नेताओं के वायदे शुरू हो जाते हैं, लेकिन वायदों को जमीन पर कभी भी नहीं लाया जाता. चुनाव के साथ ही वायदे भी खत्म हो जाते हैं. सरकार अगर हमारी मदद करे तो भागलपुर के बुनकरों की स्थिति काफी ज्यादा बेहतर होगी. यहां के जो पारंपरिक रेशम वस्त्र का उत्पादन है, वो भी अपने पुराने पहचान में वापस लौट जाएगा.

भागलपुर: बिहार विधानसभा चुनाव मद्देनजर 23 अक्टूबर को पीएम नरेंद्र मोदी जिले में चुनावी जनसभा करने आ रहे हैं. हमेशा की तहर इस बार भी जिले के बुनकरों को पीएम से मदद की उम्मीद है. हालांकि लोकसभा चुनाव में भी इन बुनकरों से वायदे किए गए थे, लेकिन वो पूरे नहीं हुए. इस बार भी विधानसभा चुनाव में बुनकर आस लगाए हुए हैं.

भागलपुर रेशम की चमक पड़ी फीकी.

बता दें कि देश भर में भागलपुर रेशम के लिए जाना जाता है. लेकिन 1989 के दंगे के बाद से ही जिले की तस्वीर पूरी तरह से बदल गई है. 31 साल के बाद भी बुनकर के हालात सामान्य नहीं हो सकी है. जिले में 3 से 3.5 लाख बुनकर अभी रेशम के कारोबार से जुड़े हुए हैं. सरकारी उदासीनता के कारण इनकी हालात काफी दयनीय है.

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भागलपुर के सिल्क का एक नमूना

रेशम उद्योग को बेहतर बनाने के हर बार वायदे
चुनाव के समय में नेता बुनकरों की स्थिति को बेहतर कर भागलपुर के रेशम उद्योग को फिर से बेहतर बनाने की बात करते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होते ही सारे वायदे भूल जाते हैं. जब ईटीवी भारत संवाददाता ने इन बुनकरों से बात की तो इन्होंने अपना दर्द साझा किया.

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दशकों से 'माननीयों' की उपेक्षा झेल रहे बुनकर

बुनकर नेता अबरार अंसारी ने कहा कि सरकार यदि चाहती तो इस उद्योग को बेहतर बनाया जा सकता था. बुनकरों के हालात को भी ठीक किया जा सकता था. लेकिन आज जो कोई बचे हुए बुनकर हैं, वह किसी तरह से अपने और अपने परिवार का गुजारा कर रहे हैं. सरकार की कोई भी योजनाएं धरातल पर नहीं है.

सरकार के उदासीन रवैये से मुश्किल हुए हालात
भागलपुर का चंपानगर इलाका पूरी तरह से बुनकरों से भरा हुआ है. गुणकारी करना ही इन बुनकरों का मुख्य पेशा है, लेकिन सरकारी उदासीनता की वजह से काफी ज्यादा मुश्किल हालात पैदा हो गए हैं. बुनकर पूरी तरह से भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके हैं. सरकार इन बुनकरों को लेकर काफी उदासीन दिख रही है.

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3 से 3.5 लाख बुनकर अभी रेशम के कारोबार से जुड़े हुए हैं

टेक्सटाइल इंजीनियर तौसीफ शबाब ने कहा कि टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में काफी ज्यादा करियर है, लेकिन यहां उद्योग को किसी तरह से कोई सहायता नहीं प्रदान की जा रही है. सरकारी सहायता नहीं मिलने से जिले में दिन-ब-दिन रेशम उद्योग की स्थिति बदतर हो गई है. अगर मुझे नौकरी करनी पड़ी तो, दूसरे राज्यों में जाना पड़ेगा, यहां की जो टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज है वह काफी खराब स्थिति में है.

लॉकडाउन की वजह से भी इस उद्योग को काफी घाटा हुआ है. अभी के समय में बहुत ही मुश्किल से काम हो रहा है. हम सभी कारीगर मुश्किल से दिन में 200 से 300 रुपये ही कमा पाते हैं. इसी से किसी तरह घर का गुजारा चला रहे हैं.

राजा,कारीगर और परवेज, बुनकर

चुनाव के साथ ही खत्म हो जाते हैं नेताओं के वायदे
ज्यादातर बुनकरों का यही कहना है कि जैसे ही चुनाव आता है. नेताओं के वायदे शुरू हो जाते हैं, लेकिन वायदों को जमीन पर कभी भी नहीं लाया जाता. चुनाव के साथ ही वायदे भी खत्म हो जाते हैं. सरकार अगर हमारी मदद करे तो भागलपुर के बुनकरों की स्थिति काफी ज्यादा बेहतर होगी. यहां के जो पारंपरिक रेशम वस्त्र का उत्पादन है, वो भी अपने पुराने पहचान में वापस लौट जाएगा.

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