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सेना ने कारगिल में समाप्त कर दिए पाकिस्तानी घुसपैठ वाले रास्ते

देश में 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. भारतीय सेना के वीर जवानों ने पाकिस्तानियों को अपने आगे आत्मसमर्पण होने के लिए मजबूर कर दिया था, जबकि उस समय में कारगिल में देखा जाए तो आज की तुलना में न तो सेनाएं थीं न ही शस्त्र. इसके बावजूद पाकिस्तानी सेना हार का सामना पड़ा था. वर्तमान समय में कारगिल में पाकिस्तान अपनी पूरी ताकत भी लगा तो भी कारगिल से अब घुसपैठ नहीं कर सकते हैं. पढ़ें पूरी खबर...

kargil vijay diwas
कारगिल विजय दिवस
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Published : Jul 24, 2020, 6:35 PM IST

Updated : Jul 24, 2020, 8:30 PM IST

हैदराबाद : देश में 26 जुलाई को कारगिल दिवस मनाया जाएगा. 1999 में इसी दिन भारतीय सेना के आगे पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया था. इसके बाद से ही इस दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप के मनाया जाने लगा. इस युद्ध के बाद ही भारत सरकार और सेना ने कारगिल में युद्धस्तर की सभी तैयारियां शुरू कर दीं और मौजूदा समय में वहां की यह स्थिति है कि पाक सेना वहां से घुसपैठ करने के लिए पूरी ताकत लगा दे तो भी नाकाम रहेंगी. भारतीय सेना समयानुसार वहां पर अपने दुश्मनों को देखते हुए युद्धनीति और रणनीति में बदलाव कर रही है.

वर्तमान समय में करगिल स्थित सीमा नियंत्रण रेखा पर भारतीय सेना की तीन बटालियन रखवाली करती हैं, लेकिन कारगिल युद्ध के दौरान वहां पर सीमा पर सिर्फ एक बटालियन नियंत्रण रेखा पर तैनात थी.

भारतीय सेना ने एलओसी के मुश्को-द्रास-काकसर-यलदोर अक्ष पर एक डिवीजन के लगभग 10,000 सैनिकों को तैनात किया है. वहीं 1996 में इस जगह पर 3,000 सैनिक तैनात थे. स्ट्राइकिंग क्षमता भी दोगुनी होकर 2,000 पुरुषों की हो गई है.

सड़कों के माध्यम से सुलभ सेक्टर में सभी बटालियन मुख्यालयों को एक साथ जोड़ दिया गया है. साथ ही सर्दियों के महीनों के दौरान भी 15,000 फीट से अधिक ऊचांई पर सैनिकों का ध्यान रखा जाता है.

पढ़ें : न सिर्फ युद्ध मैदान, बल्कि कूटनीति में भी पाकिस्तान को मिली थी शिकस्त

वर्तमान में पाकिस्तानी सैनिकों घुसपैठ के लिए उपयोग किए जा रहे मार्गों की भी पहचान कर ली गई है. घुसपैठियों पर जवाबी कार्रवाई के लिए ग्रिड बनाए गए हैं. यह ग्रिड दर्रों समेत सभी घुसपैठ मार्गों पर निगरानी रखते हैं.

अब सेना की तैनाती की क्षमता तीन गुना से अधिक है. दर्रों और घाटियों के आस-पास में हुई सेना तैनाती अंतराल से खामियां खत्म हो गई.

यहां तक कि उन क्षेत्रों की भी निगरानी की जा रही है, जहां से घुसपैठ हुई थी. सीमा नियंत्रण रेखा पर दुश्मनों के संभावित प्रवेश करने वाले मार्गों पर माइंस बिछा दी गई हैं.

सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए साथ में रक्षा में सहयोग करने के लिए एलओसी पर कई हेलीपैड्स भी निर्मित किए गए हैं.

भारतीय सुरक्षा के लिए लेह हवाई अड्डा समर्थित है, जिसे कारगिल युद्ध के बाद एक वायुसेना के लिए बना दिया गया.

भारतीय सेना ने अत्याधुनिक गोले और बारूदों का निर्माण किया है. इसके साथ ही इसके भंडारण को भी संशोधित किया है.

पढ़ें : कारगिल युद्ध का इतिहास : भारतीय जवानों ने यूं लिखी जीत की गाथा

क्षेत्रीय सेना के पास इस क्षेत्र में पर्याप्त तोपें और बंदूकें हैं, लेकिन जब सेना के जवानों को US-M777 अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर मिलेगा, तो इसका कोई जोड़ नहीं रहेगा.

ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने के बाद संचार में सुधार हुआ है और अधिक मानव रहित हवाई वाहनों और उपग्रह इमेजरी के साथ निगरानी बढ़ाई गई.

सार्वजनिक इंटरफेस से स्थानीय खुफिया नेटवर्क मजबूत हुआ है.

हैदराबाद : देश में 26 जुलाई को कारगिल दिवस मनाया जाएगा. 1999 में इसी दिन भारतीय सेना के आगे पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया था. इसके बाद से ही इस दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप के मनाया जाने लगा. इस युद्ध के बाद ही भारत सरकार और सेना ने कारगिल में युद्धस्तर की सभी तैयारियां शुरू कर दीं और मौजूदा समय में वहां की यह स्थिति है कि पाक सेना वहां से घुसपैठ करने के लिए पूरी ताकत लगा दे तो भी नाकाम रहेंगी. भारतीय सेना समयानुसार वहां पर अपने दुश्मनों को देखते हुए युद्धनीति और रणनीति में बदलाव कर रही है.

वर्तमान समय में करगिल स्थित सीमा नियंत्रण रेखा पर भारतीय सेना की तीन बटालियन रखवाली करती हैं, लेकिन कारगिल युद्ध के दौरान वहां पर सीमा पर सिर्फ एक बटालियन नियंत्रण रेखा पर तैनात थी.

भारतीय सेना ने एलओसी के मुश्को-द्रास-काकसर-यलदोर अक्ष पर एक डिवीजन के लगभग 10,000 सैनिकों को तैनात किया है. वहीं 1996 में इस जगह पर 3,000 सैनिक तैनात थे. स्ट्राइकिंग क्षमता भी दोगुनी होकर 2,000 पुरुषों की हो गई है.

सड़कों के माध्यम से सुलभ सेक्टर में सभी बटालियन मुख्यालयों को एक साथ जोड़ दिया गया है. साथ ही सर्दियों के महीनों के दौरान भी 15,000 फीट से अधिक ऊचांई पर सैनिकों का ध्यान रखा जाता है.

पढ़ें : न सिर्फ युद्ध मैदान, बल्कि कूटनीति में भी पाकिस्तान को मिली थी शिकस्त

वर्तमान में पाकिस्तानी सैनिकों घुसपैठ के लिए उपयोग किए जा रहे मार्गों की भी पहचान कर ली गई है. घुसपैठियों पर जवाबी कार्रवाई के लिए ग्रिड बनाए गए हैं. यह ग्रिड दर्रों समेत सभी घुसपैठ मार्गों पर निगरानी रखते हैं.

अब सेना की तैनाती की क्षमता तीन गुना से अधिक है. दर्रों और घाटियों के आस-पास में हुई सेना तैनाती अंतराल से खामियां खत्म हो गई.

यहां तक कि उन क्षेत्रों की भी निगरानी की जा रही है, जहां से घुसपैठ हुई थी. सीमा नियंत्रण रेखा पर दुश्मनों के संभावित प्रवेश करने वाले मार्गों पर माइंस बिछा दी गई हैं.

सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए साथ में रक्षा में सहयोग करने के लिए एलओसी पर कई हेलीपैड्स भी निर्मित किए गए हैं.

भारतीय सुरक्षा के लिए लेह हवाई अड्डा समर्थित है, जिसे कारगिल युद्ध के बाद एक वायुसेना के लिए बना दिया गया.

भारतीय सेना ने अत्याधुनिक गोले और बारूदों का निर्माण किया है. इसके साथ ही इसके भंडारण को भी संशोधित किया है.

पढ़ें : कारगिल युद्ध का इतिहास : भारतीय जवानों ने यूं लिखी जीत की गाथा

क्षेत्रीय सेना के पास इस क्षेत्र में पर्याप्त तोपें और बंदूकें हैं, लेकिन जब सेना के जवानों को US-M777 अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर मिलेगा, तो इसका कोई जोड़ नहीं रहेगा.

ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने के बाद संचार में सुधार हुआ है और अधिक मानव रहित हवाई वाहनों और उपग्रह इमेजरी के साथ निगरानी बढ़ाई गई.

सार्वजनिक इंटरफेस से स्थानीय खुफिया नेटवर्क मजबूत हुआ है.

Last Updated : Jul 24, 2020, 8:30 PM IST
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