नई दिल्ली : राज्य सभा में रिटायरमेंट के मौके पर अपने वक्तव्य में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने कई बार उन्हें सदन का सदस्य बनाने के लिए अपनी पार्टी के प्रति कृतज्ञता जतायी. उन्होंने कहा कि वह हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य से आते हैं और उनका जन्म एक साधारण एवं सम्मानित परिवार में हुआ था. उन्होंने कहा कि उन्हें अपने माता-पिता और अपने शिक्षकों से काफी कुछ सीखने को मिला. शर्मा ने कहा कि उन्होंने अपनी मां से सच्चाई और ईमानदारी के अलावा यह भी सीखा कि कभी घबराना नहीं चाहिए.
उन्होंने कहा कि देश में लोकतंत्र के लिए जरूरी है कि राष्ट्रीय दल मजबूत रहें और अन्य दल भी पनपें. उन्होंने कहा कि जिस प्रकार भगवान का रथ भी एक पहिये से नहीं चल सकता, उसी प्रकार प्रजातंत्र के लिए भी सत्तापक्ष एवं विपक्ष रूपी दोनों पहियों का होना जरूरी है. आनंद शर्मा ने इस बात पर अफसोस जताया कि बदलते दौर में राजनीतिक जीवन में विरोधियों को शत्रु के तौर पर देखा जाने लगता है और कटुता बढ़ने लगती है. उन्होंने संसदीय मर्यादा का जिक्र करते हुए कहा कि वह कभी भी आसन के पास नहीं (हंगामा) गए और हमेशा सदन की मर्यादा का पालन किया.
सदन में विपक्ष के नेता मल्लिार्जुन खड़गे ने कहा कि आज 19 राज्यों के 72 सदस्यों को विदाई दी जा रही है. उन्होंने कहा 'सदन की गरिमा बढ़ाने में उल्लेखनीय योगदान देने वाले ये 72 सदस्य सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के हैं. कांग्रेस के 13 सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो रहा है. इनमें से कुछ सदस्य बहुत वरिष्ठ हैं और उन्हें लंबा अनुभव भी है.'
खड़गे ने कहा, 'कांग्रेस के ए के एंटनी, आनंद शर्मा, अंबिका सोनी, जयराम रमेश, पी चिदंबरम के अनुभवों का हमें हमेशा लाभ मिला. आज उन्हें विदाई देते हुए ऐसा लग रहा है, मानों मैं बहुत कुछ खो रहा हूं.' कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य खड़गे ने कहा, 'सदन में लगभग हर क्षेत्र के गहरे जानकार लोग हैं. आनंद शर्मा जहां विदेश मामलों के खासे जानकार हैं, वहीं चिदंबरम की पकड़ कानूनी और आर्थिक मामलों पर है. इसी तरह, दूसरे दलों से संजय राउत, प्रफुल्ल पटेल, झरनादास वैद्य, नरेश गुजराल, रेवती रमण सिंह, सुखदेव सिंह ढींढसा तथा विजय साई रेड्डी के अनुभवों का लाभ इस सदन को मिला.'
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खड़गे ने कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने राज्यसभा के अधिकार को कम नहीं होने दिया और उच्च सदन के सदस्यों को वित्तीय समितियों में शामिल करने की शुरुआत की. उन्होंने कहा कि जब अटल बिहारी वाजपेयी 1987 में विपक्ष में थे, तब उन्होंने अपने अनुभव बताते हुए कहा था कि राज्यसभा में रहे बिना राजनीति का पूरा अनुभव नहीं मिल पाता. उन्होंने कहा, 'मैं आज इस बात को महसूस कर पा रहा हूं क्योंकि राज्यसभा में आए बिना मेरा भी राजनीति का अनुभव अधूरा था.' खड़गे ने उम्मीद जताई कि उच्च सदन से सेवानिवृत्त हो रहे सदस्यों के अनुभवों का देश को किसी न किसी रूप में लाभ मिलेगा. यह सदन अनेकता में एकता का सीधा संदेश देता है. उन्होंने कहा, 'मैं कामना करता हूं कि विदा हो रहे सदस्यों में से ज्यादातर सदस्य सदन में वापस आएं.'