ETV Bharat / state

पूर्व भारतीय हॉकी टीम की कप्तान सुरेंद्र कौर की संघर्ष की कहानी - surinder kaur

सुरेंद्र कौर 2008 से 2011 तक भारतीय हॉकी टीम की कप्तान रहीं. 2011 में घुटनों में लगी चोटों की वजह से उन्हें खेल से अलविदा कहना पड़ा था. इसके बावजूद भी वो हॉकी से जुड़ी हैं. अब इंडियन हॉकी टीम में बतौर सिलेक्टर के तौर पर भी कार्य कर रही हैं.

Surendra Kaur, DSP
सुरेंद्र कौर, डीएसपी
author img

By

Published : Mar 8, 2020, 2:30 PM IST

यमुनानगर: मेहनत से ही मिलते है मुकाम युही नहीं सफलता की ईबादत लिखी जाती. ऐसी ही संघर्ष के साथ मुकाम हासिल करने की एक कहानी है सुरेंद्र कौर की. सुरेंद्र कौर ने अपनी मेहनत के दम पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम चमकाया और न सिर्फ एक अच्छी हॉकी प्लयेर बल्कि भारतीय महिला हॉकी टीम का बतौर कप्तान प्रतिनिधित्व करते हुए, अपने खेल का लोहा मनवाया. जो आज हरियाणा पुलिस में डीएसपी के पद पर तैनात हैं और देश सेवा का काम कर रही हैं.

सुरेंद्र कौर की संघर्ष की कहानी

मन मे लग्न हो तो कोई भी सपना पूरा हो सकता है. ऐसा मानना है डीएसपी सुरेंद्र कौर का. सुरेंद्र कौर ने बताया कि वो बेहद गरीब परिवार से थी लेकिन उनका उस सुरेंद्र कौर से लेकर आज की सुरेंद्र कौर का जो सफर है उसमें बहुत चुनौतियां आई. लेकिन उस संघर्ष में उनके माता पिता ने हरदम उनका साथ दिया.

कोच ने बनाया खिलाड़ी

सुरेंद्र कौर को उनके कोच बलदेव सिंह ने एक अच्छे हॉकी के खिलाड़ी के रूप में तराशा. सुरेंद्र कौर ने जूनियर, सब जूनियर, सीनियर खेलते हुए राज्य स्तर से राष्ट्रीय स्तर और फिर अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपने खेल की छाप छोड़ी और एक टाइम ऐसा आया कि सुरेंद्र कौर को भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान बनने का मौका मिला. साल 2008 से 2011 साल तक वो भारतीय हॉकी टीम में खेलीं.

पूर्व भारतीय हॉकी टीम की कप्तान सुरेंद्र कौर की संघर्ष की कहानी

भारतीय हॉकी टीम की कप्तान रहीं

वो 2008 से 2011 तक भारतीय हॉकी टीम की कप्तान रहीं. 2011 में घुटनों में लगी चोटों की वजह से उन्हें खेल से अलविदा कहना पड़ा था. इसके बावजूद भी वो हॉकी से जुड़ी हैं. अब इंडियन हॉकी टीम में बतौर सिलेक्टर के तौर पर भी कार्य कर रही हैं. अब भी रोजाना एक घंटा मैदान पर बिताती हैं. नए युवक और युवतियों को हॉकी के गुर भी बताती हैं.

किसान परिवार में हुआ जन्म

किसान परिवार में जन्मी सुरेंद्र कौर सरकारी स्कूल में पढ़ती थीं. खेलों का शौक था. स्कूल में ही होने वाले खेलों में भाग लेती थीं. शुरूआत में हॉकी का मतलब तक नहीं पता था. तभी कोच सरदार बलदेव सिंह हॉकी खेलने वाली लड़कियों को चुन रहे थे. उन्होंने पूछा कि कौन हॉकी खेलना चाहता है. सुरेंद्र कौर तैयार हो गईं. कोच सरदार बलदेव सिंह अन्य लड़कियों के साथ उन्हें भी हॉकी सिखाने लगे. शुरूआत में स्कूल गेम खेले.

1997 भारतीय हॉकी टीम में चयन हुआ

इस तरह से साल 1997 में उनका चयन भारतीय हॉकी टीम के लिए हो गया. उस समय उम्र मात्र 15 साल थी. दक्षिण अफ्रीका में वो टीम के साथ खेलने के लिए गई थीं. सुरेंद्र कौर ने बताया कि 2009 उनके लिए बेहद भाग्यशाली रहा. वो बताती हैं कि एशियन कप में उनकी टीम बैंकॉक गई थीं. वो कप्तान थीं. उस मैच में उनकी टीम ने गोल्ड जीता. उस समय जर्सी का नंबर भी नौ था. बेस्ट प्लेयर का खिताब भी उन्हें मिला. इसी साल में उन्हें अर्जुन अवार्ड से नवाजा गया. इसके अलावा उन्हें भीम अवॉर्ड, यंगेस्ट प्लेयर अवॉर्डव अन्य कई अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है.

चोट के बाद भी हिम्मत नहीं हारी

2011 में खेलते समय उनके दाहिने घुटने की सर्जरी हुई थी. डॉक्टरों ने खेलने से मना किया, लेकिन उनका जूनुन था. वो खेलने लगी. 2011 में उन्हें फिर बाएं घुटने में चोट लगी. ऑपरेशन हुआ. डॉक्टरों ने खेलने से साफ मना कर दिया. जिस पर उन्हें हॉकी को अलविदा कहना पड़ा. 2010 में हरियाणा सरकार ने उनको डीएसपी का पद देकर सम्मानित किया. सबसे पहली पोस्टिंग भिवानी में हुई. अब यमुनानगर में तैनात हैं. उनकी शादी भी राष्ट्रीय स्तर के हॉकी खिलाड़ी नितिन सबरवाल से हुई. वो अब अंबाला कैंट के राजकीय स्कूल में पीटीआइ हैं. दो बेटी हैं. बड़ी बेटी 8 साल आयरा भी हॉकी खेलने लगी है. छोटी बेटी दो साल की अमायरा है.

ये भी पढ़ें- राज्यमंत्री कमलेश ढांडा ने कलायात में खुला दरबार लगाकर सुनी जनता की समस्याएं

यमुनानगर: मेहनत से ही मिलते है मुकाम युही नहीं सफलता की ईबादत लिखी जाती. ऐसी ही संघर्ष के साथ मुकाम हासिल करने की एक कहानी है सुरेंद्र कौर की. सुरेंद्र कौर ने अपनी मेहनत के दम पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम चमकाया और न सिर्फ एक अच्छी हॉकी प्लयेर बल्कि भारतीय महिला हॉकी टीम का बतौर कप्तान प्रतिनिधित्व करते हुए, अपने खेल का लोहा मनवाया. जो आज हरियाणा पुलिस में डीएसपी के पद पर तैनात हैं और देश सेवा का काम कर रही हैं.

सुरेंद्र कौर की संघर्ष की कहानी

मन मे लग्न हो तो कोई भी सपना पूरा हो सकता है. ऐसा मानना है डीएसपी सुरेंद्र कौर का. सुरेंद्र कौर ने बताया कि वो बेहद गरीब परिवार से थी लेकिन उनका उस सुरेंद्र कौर से लेकर आज की सुरेंद्र कौर का जो सफर है उसमें बहुत चुनौतियां आई. लेकिन उस संघर्ष में उनके माता पिता ने हरदम उनका साथ दिया.

कोच ने बनाया खिलाड़ी

सुरेंद्र कौर को उनके कोच बलदेव सिंह ने एक अच्छे हॉकी के खिलाड़ी के रूप में तराशा. सुरेंद्र कौर ने जूनियर, सब जूनियर, सीनियर खेलते हुए राज्य स्तर से राष्ट्रीय स्तर और फिर अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपने खेल की छाप छोड़ी और एक टाइम ऐसा आया कि सुरेंद्र कौर को भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान बनने का मौका मिला. साल 2008 से 2011 साल तक वो भारतीय हॉकी टीम में खेलीं.

पूर्व भारतीय हॉकी टीम की कप्तान सुरेंद्र कौर की संघर्ष की कहानी

भारतीय हॉकी टीम की कप्तान रहीं

वो 2008 से 2011 तक भारतीय हॉकी टीम की कप्तान रहीं. 2011 में घुटनों में लगी चोटों की वजह से उन्हें खेल से अलविदा कहना पड़ा था. इसके बावजूद भी वो हॉकी से जुड़ी हैं. अब इंडियन हॉकी टीम में बतौर सिलेक्टर के तौर पर भी कार्य कर रही हैं. अब भी रोजाना एक घंटा मैदान पर बिताती हैं. नए युवक और युवतियों को हॉकी के गुर भी बताती हैं.

किसान परिवार में हुआ जन्म

किसान परिवार में जन्मी सुरेंद्र कौर सरकारी स्कूल में पढ़ती थीं. खेलों का शौक था. स्कूल में ही होने वाले खेलों में भाग लेती थीं. शुरूआत में हॉकी का मतलब तक नहीं पता था. तभी कोच सरदार बलदेव सिंह हॉकी खेलने वाली लड़कियों को चुन रहे थे. उन्होंने पूछा कि कौन हॉकी खेलना चाहता है. सुरेंद्र कौर तैयार हो गईं. कोच सरदार बलदेव सिंह अन्य लड़कियों के साथ उन्हें भी हॉकी सिखाने लगे. शुरूआत में स्कूल गेम खेले.

1997 भारतीय हॉकी टीम में चयन हुआ

इस तरह से साल 1997 में उनका चयन भारतीय हॉकी टीम के लिए हो गया. उस समय उम्र मात्र 15 साल थी. दक्षिण अफ्रीका में वो टीम के साथ खेलने के लिए गई थीं. सुरेंद्र कौर ने बताया कि 2009 उनके लिए बेहद भाग्यशाली रहा. वो बताती हैं कि एशियन कप में उनकी टीम बैंकॉक गई थीं. वो कप्तान थीं. उस मैच में उनकी टीम ने गोल्ड जीता. उस समय जर्सी का नंबर भी नौ था. बेस्ट प्लेयर का खिताब भी उन्हें मिला. इसी साल में उन्हें अर्जुन अवार्ड से नवाजा गया. इसके अलावा उन्हें भीम अवॉर्ड, यंगेस्ट प्लेयर अवॉर्डव अन्य कई अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है.

चोट के बाद भी हिम्मत नहीं हारी

2011 में खेलते समय उनके दाहिने घुटने की सर्जरी हुई थी. डॉक्टरों ने खेलने से मना किया, लेकिन उनका जूनुन था. वो खेलने लगी. 2011 में उन्हें फिर बाएं घुटने में चोट लगी. ऑपरेशन हुआ. डॉक्टरों ने खेलने से साफ मना कर दिया. जिस पर उन्हें हॉकी को अलविदा कहना पड़ा. 2010 में हरियाणा सरकार ने उनको डीएसपी का पद देकर सम्मानित किया. सबसे पहली पोस्टिंग भिवानी में हुई. अब यमुनानगर में तैनात हैं. उनकी शादी भी राष्ट्रीय स्तर के हॉकी खिलाड़ी नितिन सबरवाल से हुई. वो अब अंबाला कैंट के राजकीय स्कूल में पीटीआइ हैं. दो बेटी हैं. बड़ी बेटी 8 साल आयरा भी हॉकी खेलने लगी है. छोटी बेटी दो साल की अमायरा है.

ये भी पढ़ें- राज्यमंत्री कमलेश ढांडा ने कलायात में खुला दरबार लगाकर सुनी जनता की समस्याएं

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.