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भारत-पाक युद्ध में 1971 में शहीद हुए थे राजकुमार, गुमनामी में जी रहा है उनका पूरा परिवार - हिंदी न्यूज

साल 1971 में भारत पाक युद्ध में शहीद हुए राजकुमार को आज तक शासन या प्रशासन की ओर से पूरा सम्मान नहीं मिल पाया है. आज भी शहीद का परिवार उम्मीद लगाएं बैठा है कि उनके लाल को जरूर सम्मान मिलेगा. शहीद के परिवार का कहना है कि उनके बेटे के नाम पर भी उनके इलाके के किसी स्कूल या संस्था का नाम होना चाहिए, ताकि शहीद को याद किया जा सके.

1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद भाई की फोटो दिखाता सुदेश कुमार
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Published : Mar 22, 2019, 9:38 PM IST

Updated : Mar 22, 2019, 9:44 PM IST

यमुनानगर: 1971 में भारत-पाक के बीच हुए युद्ध में शहीद हुए यमुनानगर के रदौर के रहने वाले राजकुमार शहीद हो गए थे. लेकिन आज तक उनका पूरा सम्मान नहीं मिल पाया है. शहीद का परिवार आज में आंखों में नम आंसू लिए आस लगाए बैठा है कि कब उनके लाल को पूरा सम्मान मिलेगा.
ये कोई कहानी नहीं बल्कि 1971 में शहीद हुए यमुनानगर के रदौर के रहने वाले राजकुमार के शहीद होने की दास्तां है. जिसे सुनकर आपकी आंखें नम हो जाएगी.

शहीद के भाई सुदेश कुमार ने बताया की उसके पिता अमीसिंह भी सेना में रहे थे, राजकुमार भी इंडियन नेवी में भर्ती हुए थे. लेकिन साल 1971 में भारत - पाक के बीच हुए युद्ध में राजकुमार शहीद हो गए थे.

राजकुमार के भाई सुदेश कुमार ने बताया कि उनकेभाई इंडियन नेवी में तोप पर तैनात थे. लेकिन साल 1971 में हुए युद्ध के समय में पाकिस्तान की एक पनडुब्बी ने उनके जहाज पर हमला कर दिया था.

जिसमे उनका भाई शहीद हो गया था. लेकिन आज तक शासन - प्रशासन को सुद नहीं की शहीद के नाम पर कोई स्कूल या संस्था का नाम चलाए ताकि शहीद को याद किया जा सके. इसी की बदौलत शहीद का परिवार गुमनाम जिंदगी जी रहा है.

अपने शहीद भाई की कहानी सुनाता सुदेश

एक सवाल के जवाब में शहीद के भाई सुदेश ने बताया की आज जब देश की रक्षा में सैनिक शहीद होते हैं, तो उसकी भी अपने भाई की याद में आंख नम हो जाती है. उसे दु:ख इस बात का होता है कि उसके भाई की शहादत को आज तक शासन-प्रशासन ने अनदेखा किया है. अब ऐसे में सत्ता और प्रशासन को चाहिए कि वो शहीद को पूरा सम्मान दे. ताकि आगे ऐसे शहीदों को याद किया जा सके.

यमुनानगर: 1971 में भारत-पाक के बीच हुए युद्ध में शहीद हुए यमुनानगर के रदौर के रहने वाले राजकुमार शहीद हो गए थे. लेकिन आज तक उनका पूरा सम्मान नहीं मिल पाया है. शहीद का परिवार आज में आंखों में नम आंसू लिए आस लगाए बैठा है कि कब उनके लाल को पूरा सम्मान मिलेगा.
ये कोई कहानी नहीं बल्कि 1971 में शहीद हुए यमुनानगर के रदौर के रहने वाले राजकुमार के शहीद होने की दास्तां है. जिसे सुनकर आपकी आंखें नम हो जाएगी.

शहीद के भाई सुदेश कुमार ने बताया की उसके पिता अमीसिंह भी सेना में रहे थे, राजकुमार भी इंडियन नेवी में भर्ती हुए थे. लेकिन साल 1971 में भारत - पाक के बीच हुए युद्ध में राजकुमार शहीद हो गए थे.

राजकुमार के भाई सुदेश कुमार ने बताया कि उनकेभाई इंडियन नेवी में तोप पर तैनात थे. लेकिन साल 1971 में हुए युद्ध के समय में पाकिस्तान की एक पनडुब्बी ने उनके जहाज पर हमला कर दिया था.

जिसमे उनका भाई शहीद हो गया था. लेकिन आज तक शासन - प्रशासन को सुद नहीं की शहीद के नाम पर कोई स्कूल या संस्था का नाम चलाए ताकि शहीद को याद किया जा सके. इसी की बदौलत शहीद का परिवार गुमनाम जिंदगी जी रहा है.

अपने शहीद भाई की कहानी सुनाता सुदेश

एक सवाल के जवाब में शहीद के भाई सुदेश ने बताया की आज जब देश की रक्षा में सैनिक शहीद होते हैं, तो उसकी भी अपने भाई की याद में आंख नम हो जाती है. उसे दु:ख इस बात का होता है कि उसके भाई की शहादत को आज तक शासन-प्रशासन ने अनदेखा किया है. अब ऐसे में सत्ता और प्रशासन को चाहिए कि वो शहीद को पूरा सम्मान दे. ताकि आगे ऐसे शहीदों को याद किया जा सके.

Intro:1971 में शहर के पहले शहीद को नही मिला पूरा मान सम्मान, शहीद के नाम पर आजतक नहीं कोई स्कूल या किसी संस्थान का नाम, गुमनानी की जिंदगी जीने पर मजबूर शहीद के परिजनBody:शहीद के भाई सुदेश कुमार ने बताया की उसके पिता अमीसिंह भी सेना में रहे थे, तो उसके भाई राजकुमार को भी सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करने का जज्बा था। इसी जज्बे के बतौलत राजकुमार इंडियन नेवी में भर्ती हुए थे। सन 1971 में जब भारत - पाक के बीच युद्ध हुआ था इसी दौरान उसका भाई राजकुमार जोकि इंडियन नेवी में तोफ चलाने का कार्य करता था, पाकिस्तान की एक पनडुब्बी ने उनके जहाज पर हमला कर दिया था, जिसमे उसका भाई शहीद हो गया था। एक सवाल के जवाब में शहीद के भाई सुदेश ने बताया की आज जब देश की रक्षा में सैनिक शहीद होते है तो उसकी भी अपने भाई की याद आँखे नम हो जाती है और उसे दु:ख इस बात का आता है की उसकी भाई की शहादत को आजतक शासन - प्रशासन द्वारा अनदेखा किया जा रहा है।

वही शहर निवासी वरिष्ठ नागरिक प्रेमस्वरूप गुलाटी ने बताया की राजकुमार के शहादत की खबर सबसे पहले उन्हें ही पता चली थी, क्यौकिं उस वक्त टेलीग्राम के जरिए ही संदेश पंहुचता था और शहर के ज्यादतर लोग उनके पास ही टेलीग्राम पढ़वाने के लिए उनके पास पंहुचते थे। गुलाटी ने बताया की उन्हें भी इस बात का काफी दु:ख है की शहर में आज तक न तो इस शहीद के नाम पर कोई स्मारग बनाया न ही किसी संस्थान का नाम रखा, जिसके चलते ही शहर के पहले शहीद राजकुमार के बारे में आज की पीढ़ी कुछ नहीं जानती।Conclusion:ऐसे में सरकार व प्रशासन को चाहिए की रादौर के पहले शहीद राजकुमार को पूरा मान सम्मान देते हुए उनके नाम पर शहर में किसी चौंक या संस्थान का नाम रखना चाहिए व साथ ही शहीद के परिजनों को भी पूरा मान सम्मान देना चाहिए।
Last Updated : Mar 22, 2019, 9:44 PM IST
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