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हरियाणा के किसानों को मिला मजदूरों का विकल्प, DSR मशीन से कर रहे धान की रोपाई

किसान अब मजदूरों की जगह डीएसआर नाम की मशीन का इस्तेमाल धान की रोपाई के लिए कर रहे हैं. मजदूर जहां एक एकड़ में धान की रोपाई करने के लिए एक दिन का समय लेते थे वहीं ये मशीन एक एकड़ में धान की रोपाई मात्र 30 मिनट में कर देती है.

Gohana Farmers transplanting paddy
Gohana Farmers transplanting paddy
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Published : May 22, 2020, 11:35 AM IST

Updated : May 26, 2020, 10:38 AM IST

गोहाना: कोविड-19 की वजह से लगे लॉकडाउन की सबसे बड़ी मार मजदूरों पर पड़ी है. ज्यादातर मजदूर अपने घर लौट चुके हैं. ऐसे में सबसे बड़ा संकट उद्योग जगत के साथ किसानों पर भी धान की खेती का संकट खड़ा हो गया. मजदूरों के पलायन की वजह से किसानों को धान की रोपाई में बहुत परेशानी हो रही थी. लेकिन अब किसानों ने इसका समाधान ढूंढ लिया है.

किसान अब मजदूरों की जगह डीएसआर यानी डायरेक्ट सीडिंग राइस नाम की मशीन का इस्तेमाल धान की रोपाई के लिए कर रहे हैं. मजदूर जहां एक एकड़ में धान की रोपाई करने के लिए एक दिन का समय लेते थे वहीं ये मशीन एक एकड़ में धान की रोपाई मात्र 30 मिनट में कर देती है. इससे किसानों के पैसों की बचत भी भरपूर होती है और वक्त भी बचता है.

हरियाणा के किसानों को मिला मजदूरों का विकल्प, क्लिक कर देखें वीडियो

प्रति एकड़ कितने रुपए लेते थे मजदूर?

प्रति एकड़ के हिसाब से मजदूर पहले 2000 से 2500 रुपए धान की रोपाई के लिए लेते थे. 6 से 8 मजदूर 1 दिन में प्रति एकड़ धान की फसल की रोपाई करते थे. अब ज्यादातर मजदूर पलायन कर चुके हैं. जो मजदूर बचे भी हैं वो प्रति एकड़ 4 से 5 हजार रुपये के हिसाब से काम कर रहे हैं. डीसीएलआर मशीन से किसानों का काम पहले के मुकाबले ज्यादा आसान हुआ है.

क्या है डीएसआर मशीन?

  1. डीएसआर मशीन दो प्रकार की होती हैं. इसमें एक ओवरऑल मशीन होती है. जिसको धान, गेहूं, बाजरा, ज्वार, मक्का, और चना जैसी खेती के लिए किया जाता है. इस मशीन की कीमत 80 हजार रुपए है. सरकार इसपर किसानों को 10 से लेकर 20 प्रतिशत तक की सब्सिडी छूट दे रही है.
  2. दूसरी मशीन सिर्फ धान रोपाई के लिए ही बनाई गई है. जो सिर्फ धान रोपाई करेगी. एग्रीकल्चर मार्केट से इसकी कीमत 70 हजार रुपये है. इस पर भी हरियाणा सरकार किसानों को सब्सिडी दे रही है.

क्या है मशीन की खासियत?

इस मशीन में दो खांचे बनाए गए हैं. पहले खांचे में डीएपी खाद डाली जाती है और दूसरे खांचे में धान का बीज डाला जाता है. प्रति एकड़ में 7 से 10 किलो धान का बीज और डीएपी खाद का कट्टा मशीन में डाला जाता है. जिसके बाद ट्रैक्टर की मदद से धान की रोपाई का काम शुरू हो जाता है. इससे समय तो बचता ही है. साथ ही किसानों का पैसा भी बचता है.

रोपाई के बाद धान के खेत में हल्का पानी दिया जाता है. बिज को अंकुरित होने में 10 से 15 दिन का वक्त लगता है. इस विधि को सीधी बिजाई का भी नाम दिया गया है. जिसे पानी तो बचता ही है साथ में किसानों की लागत भी कम लगती है. कह सकते हैं कि कोरोना की वजह से अब किसान हाईटेक होता जा रहा है.

ये भी पढ़ें- मौसम की मार, मजदूरों का पलायन, अब धान के बीज में मुनाफाखोरी, टूट रही किसानों की उम्मीद

क्या हैं किसानों को फायदे?

सीधी धान की रोपाई में किसान को मजदूरी की बचत आ जाती है. उदाहरण के लिए 10 एकड़ की जमीन में मजदूर धान की रोपाई करने के लिए 10 दिन लेंगे. इस मशीन के जरिए एक दिन में ही 10 एकड़ फसल की रोपाई हो सकती है. जिससे किसानों को 9 दिन की मजदूरी की बचत हो रही है. धान की सीधी रोपाई करने से 30 से 40 परसेंट पानी की बचत होती है.

नर्सरी के जरिए रोपाई

पहले की विधि में किसान सबसे पहले धान की नर्सरी यानी पौध तैयार करता है. पौध तैयार होने के बाद किसान खेत में पानी भरकर उसे तैयार करता है. जिसमें डीजल की खपत ज्यादा होती है. इसके बाद मजदूर पौध को खेत में ले जाकर लगाते हैं. जिससे वक्त भी ज्यादा लगता है और किसानों की लागत भी.

गोहाना: कोविड-19 की वजह से लगे लॉकडाउन की सबसे बड़ी मार मजदूरों पर पड़ी है. ज्यादातर मजदूर अपने घर लौट चुके हैं. ऐसे में सबसे बड़ा संकट उद्योग जगत के साथ किसानों पर भी धान की खेती का संकट खड़ा हो गया. मजदूरों के पलायन की वजह से किसानों को धान की रोपाई में बहुत परेशानी हो रही थी. लेकिन अब किसानों ने इसका समाधान ढूंढ लिया है.

किसान अब मजदूरों की जगह डीएसआर यानी डायरेक्ट सीडिंग राइस नाम की मशीन का इस्तेमाल धान की रोपाई के लिए कर रहे हैं. मजदूर जहां एक एकड़ में धान की रोपाई करने के लिए एक दिन का समय लेते थे वहीं ये मशीन एक एकड़ में धान की रोपाई मात्र 30 मिनट में कर देती है. इससे किसानों के पैसों की बचत भी भरपूर होती है और वक्त भी बचता है.

हरियाणा के किसानों को मिला मजदूरों का विकल्प, क्लिक कर देखें वीडियो

प्रति एकड़ कितने रुपए लेते थे मजदूर?

प्रति एकड़ के हिसाब से मजदूर पहले 2000 से 2500 रुपए धान की रोपाई के लिए लेते थे. 6 से 8 मजदूर 1 दिन में प्रति एकड़ धान की फसल की रोपाई करते थे. अब ज्यादातर मजदूर पलायन कर चुके हैं. जो मजदूर बचे भी हैं वो प्रति एकड़ 4 से 5 हजार रुपये के हिसाब से काम कर रहे हैं. डीसीएलआर मशीन से किसानों का काम पहले के मुकाबले ज्यादा आसान हुआ है.

क्या है डीएसआर मशीन?

  1. डीएसआर मशीन दो प्रकार की होती हैं. इसमें एक ओवरऑल मशीन होती है. जिसको धान, गेहूं, बाजरा, ज्वार, मक्का, और चना जैसी खेती के लिए किया जाता है. इस मशीन की कीमत 80 हजार रुपए है. सरकार इसपर किसानों को 10 से लेकर 20 प्रतिशत तक की सब्सिडी छूट दे रही है.
  2. दूसरी मशीन सिर्फ धान रोपाई के लिए ही बनाई गई है. जो सिर्फ धान रोपाई करेगी. एग्रीकल्चर मार्केट से इसकी कीमत 70 हजार रुपये है. इस पर भी हरियाणा सरकार किसानों को सब्सिडी दे रही है.

क्या है मशीन की खासियत?

इस मशीन में दो खांचे बनाए गए हैं. पहले खांचे में डीएपी खाद डाली जाती है और दूसरे खांचे में धान का बीज डाला जाता है. प्रति एकड़ में 7 से 10 किलो धान का बीज और डीएपी खाद का कट्टा मशीन में डाला जाता है. जिसके बाद ट्रैक्टर की मदद से धान की रोपाई का काम शुरू हो जाता है. इससे समय तो बचता ही है. साथ ही किसानों का पैसा भी बचता है.

रोपाई के बाद धान के खेत में हल्का पानी दिया जाता है. बिज को अंकुरित होने में 10 से 15 दिन का वक्त लगता है. इस विधि को सीधी बिजाई का भी नाम दिया गया है. जिसे पानी तो बचता ही है साथ में किसानों की लागत भी कम लगती है. कह सकते हैं कि कोरोना की वजह से अब किसान हाईटेक होता जा रहा है.

ये भी पढ़ें- मौसम की मार, मजदूरों का पलायन, अब धान के बीज में मुनाफाखोरी, टूट रही किसानों की उम्मीद

क्या हैं किसानों को फायदे?

सीधी धान की रोपाई में किसान को मजदूरी की बचत आ जाती है. उदाहरण के लिए 10 एकड़ की जमीन में मजदूर धान की रोपाई करने के लिए 10 दिन लेंगे. इस मशीन के जरिए एक दिन में ही 10 एकड़ फसल की रोपाई हो सकती है. जिससे किसानों को 9 दिन की मजदूरी की बचत हो रही है. धान की सीधी रोपाई करने से 30 से 40 परसेंट पानी की बचत होती है.

नर्सरी के जरिए रोपाई

पहले की विधि में किसान सबसे पहले धान की नर्सरी यानी पौध तैयार करता है. पौध तैयार होने के बाद किसान खेत में पानी भरकर उसे तैयार करता है. जिसमें डीजल की खपत ज्यादा होती है. इसके बाद मजदूर पौध को खेत में ले जाकर लगाते हैं. जिससे वक्त भी ज्यादा लगता है और किसानों की लागत भी.

Last Updated : May 26, 2020, 10:38 AM IST
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