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आजादी से अभी तक पुल का इंतजार कर रहा है सिरसा का ये गांव

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Published : Oct 20, 2020, 9:49 AM IST

हरियाणा के सिरसा के गांव बुढाभाणा के लोग आजादी से अब तक एक पुल की मांग कर रहे हैं जो आज तक किसी सरकार ने पूरी नहीं की.

budhabhana villagers demand over bridge on ghaggar river
budhabhana villagers demand over bridge on ghaggar river

सिरसाः देश आजाद हुआ और उसके कई सालों बाद 1966 में वजूद में आया हरियाणा. उसके बाद से प्रदेश में हर पार्टी की सरकारें बनी. कई मुख्यमंत्री बदले. हर सरकार ने विकास के दावे किये. मौजूदा सरकार भी घर-घर तक विकास पहुंचाने का दावा कर रही है. लेकिन उनका ये दावा सिरसा के गांव बुढाभाणा में दम तोड़ देता है. ये लोग आजादी के बाद से एक पुल का इंतजार कर रहे हैं. इन्होंने हर सरकार से सिर्फ एक ही मांग की, कि उनके गांव में एक पुल का निर्माण करा दिया जाये. कई बार उन्हें आश्वासन भी मिला लेकिन आज तक पुल नहीं मिला.

आजादी से अभी तक पुल का इंतजार कर रहा है सिरसा का ये गांव

समस्या क्या है वो समझिये

दरअसल बुढाभाणा गांव हरियाणा के बॉर्डर पर पड़ता है, अब ज्यादातर कामों के लिए गांव वालों को सिरसा शहर जाना होता है. क्योंकि गांव में उतनी सुविधाएं नहीं हैं ना ही कोई अच्छा स्कूल है इसलिए बच्चों को भी स्कूल जाने के लिए अलग-अलग जगहों का रुख करना पड़ता है. अगर गांव से दूसरा रास्ता लेकर ग्रामीण सिरसा जाते हैं तो उन्हें 25 किमी घूमकर जाना पड़ता है जबकि घग्घर नदी से होकर जाने पर ये दूरी मात्र 10 किमी रह जाती है, लेकिन इस नदी पर पुल नहीं है तो गांव वालों को कश्ती के सहारे नदी पार करनी पड़ती है. कई बार जब नदी में पानी का बहाव ज्यादा होता है तो कश्ती चल पाना मुश्किल हो जाता है और फिर नदी पार नहीं हो पाती है.

कई बच्चों को छोड़ना पड़ा स्कूल

ग्रामीणों के मुताबिक इस रोज-रोज की समस्या से तंग आकर गांव के कई बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया. मेहमान भी इस गांव में आने से बचते हैं. क्योंकि नदी पार करने में हमेशा खतरा बना रहता है, आयेदिन यहां हादसे होते रहते हैं. लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.

गांव वालों ने खुद के पैसों से बनाया छोटा सा पुल

जब ग्रामीणों ने तमाम सरकारों और उनके नुमाइंदो के आगे गुहार लगा ली और पुल नहीं बना तो उन्होंने ये बीड़ा खुद उठा लिया. गांव से पैसे इकट्ठे किए और छोटा सा लकड़ी का जुगाड़ू पुल तैयार कर दिया. इससे अब इतनी आसानी तो हो गई है कि बच्चे इससे होकर स्कूल चले जाते हैं, महिलाएं आसानी से इससे होकर आ जाती हैं और बाइकें भी इस पुल पर गुजर जाती हैं.

ये भी पढ़ेंः कैथल शुगर मिल में नहीं शुरू हुई गन्ने की पिराई, किसान अभी भी कर रहे इंतजार

क्या कहते हैं ग्रामीण ?

संदीप कुमार कहते हैं कि जब भी नेता यहां आता है तो उनकी पहली डिमांड पुल की होती है, हम ना नौकरी मांगते हैं ना ही कुछ और हम बस एक पुल मांगते हैं लेकिन अभी तक हमें ना पुल मिला ही ना ही नौकरी. जब हमारे यहां सीएम आये थे तब भी हमने उनसे पुल ही मांगा था. लेकिन हमें पुल नहीं मिला जिसके कारण हमारा गांव काफी पिछड़ जाता है.

एक और ग्रामीण सुनील कुमार ने बताया कि जब से गांव की स्थापना हुई है तब से हमारा गांव पुल मांग रहा है. लेकिन किसी भी सरकार ने हमारी कोई सुनवाई नहीं की. जिसके बाद हमारे गांव ने मिलकर ये बीड़ा उठाया और सबके सहयोग से एक छोटा सा जुगाड़ू पुल तैयार किया है. अभी हम एक और इसी तरीके का छोटा सा चैनल तैयार कर रहे हैं तब थोड़ी और आसानी आने-जाने वालों को होगी.

सिरसाः देश आजाद हुआ और उसके कई सालों बाद 1966 में वजूद में आया हरियाणा. उसके बाद से प्रदेश में हर पार्टी की सरकारें बनी. कई मुख्यमंत्री बदले. हर सरकार ने विकास के दावे किये. मौजूदा सरकार भी घर-घर तक विकास पहुंचाने का दावा कर रही है. लेकिन उनका ये दावा सिरसा के गांव बुढाभाणा में दम तोड़ देता है. ये लोग आजादी के बाद से एक पुल का इंतजार कर रहे हैं. इन्होंने हर सरकार से सिर्फ एक ही मांग की, कि उनके गांव में एक पुल का निर्माण करा दिया जाये. कई बार उन्हें आश्वासन भी मिला लेकिन आज तक पुल नहीं मिला.

आजादी से अभी तक पुल का इंतजार कर रहा है सिरसा का ये गांव

समस्या क्या है वो समझिये

दरअसल बुढाभाणा गांव हरियाणा के बॉर्डर पर पड़ता है, अब ज्यादातर कामों के लिए गांव वालों को सिरसा शहर जाना होता है. क्योंकि गांव में उतनी सुविधाएं नहीं हैं ना ही कोई अच्छा स्कूल है इसलिए बच्चों को भी स्कूल जाने के लिए अलग-अलग जगहों का रुख करना पड़ता है. अगर गांव से दूसरा रास्ता लेकर ग्रामीण सिरसा जाते हैं तो उन्हें 25 किमी घूमकर जाना पड़ता है जबकि घग्घर नदी से होकर जाने पर ये दूरी मात्र 10 किमी रह जाती है, लेकिन इस नदी पर पुल नहीं है तो गांव वालों को कश्ती के सहारे नदी पार करनी पड़ती है. कई बार जब नदी में पानी का बहाव ज्यादा होता है तो कश्ती चल पाना मुश्किल हो जाता है और फिर नदी पार नहीं हो पाती है.

कई बच्चों को छोड़ना पड़ा स्कूल

ग्रामीणों के मुताबिक इस रोज-रोज की समस्या से तंग आकर गांव के कई बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया. मेहमान भी इस गांव में आने से बचते हैं. क्योंकि नदी पार करने में हमेशा खतरा बना रहता है, आयेदिन यहां हादसे होते रहते हैं. लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.

गांव वालों ने खुद के पैसों से बनाया छोटा सा पुल

जब ग्रामीणों ने तमाम सरकारों और उनके नुमाइंदो के आगे गुहार लगा ली और पुल नहीं बना तो उन्होंने ये बीड़ा खुद उठा लिया. गांव से पैसे इकट्ठे किए और छोटा सा लकड़ी का जुगाड़ू पुल तैयार कर दिया. इससे अब इतनी आसानी तो हो गई है कि बच्चे इससे होकर स्कूल चले जाते हैं, महिलाएं आसानी से इससे होकर आ जाती हैं और बाइकें भी इस पुल पर गुजर जाती हैं.

ये भी पढ़ेंः कैथल शुगर मिल में नहीं शुरू हुई गन्ने की पिराई, किसान अभी भी कर रहे इंतजार

क्या कहते हैं ग्रामीण ?

संदीप कुमार कहते हैं कि जब भी नेता यहां आता है तो उनकी पहली डिमांड पुल की होती है, हम ना नौकरी मांगते हैं ना ही कुछ और हम बस एक पुल मांगते हैं लेकिन अभी तक हमें ना पुल मिला ही ना ही नौकरी. जब हमारे यहां सीएम आये थे तब भी हमने उनसे पुल ही मांगा था. लेकिन हमें पुल नहीं मिला जिसके कारण हमारा गांव काफी पिछड़ जाता है.

एक और ग्रामीण सुनील कुमार ने बताया कि जब से गांव की स्थापना हुई है तब से हमारा गांव पुल मांग रहा है. लेकिन किसी भी सरकार ने हमारी कोई सुनवाई नहीं की. जिसके बाद हमारे गांव ने मिलकर ये बीड़ा उठाया और सबके सहयोग से एक छोटा सा जुगाड़ू पुल तैयार किया है. अभी हम एक और इसी तरीके का छोटा सा चैनल तैयार कर रहे हैं तब थोड़ी और आसानी आने-जाने वालों को होगी.

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