सिरसा: आज के समय में एक ओर लोगों के पास अपनों के लिए समय नहीं है. वहीं, आज भी कुछ ऐसे लोग हैं जो बेसहारा जीवों के लिए मसीहा बनकर काम कर रहे हैं. हरियाणा के सिरसा में भी ऐसे ही एक पशु प्रेमी हैं, जिन्होंने बेसहारा जीवों के लिए 'आश्रम' बनाया है. सिरसा में एनिमल एंड बर्ड्स वेलफेयर नाम की संस्था बेसहारा पशु-पक्षियों की देखभाल करने का काम कर रही है. करीब 5 साल पहले ये संस्था शुरू हुई थी.
सिरसा में बेसहारा पशु-पक्षियों के लिए आश्रम: इस संस्था के द्वारा हर तरह के पशु पक्षियों को रेस्क्यू करके यहां लाया जाता है. फिर उनका इलाज किया जाता है. पशु-पक्षियों के ठीक हो जाने पर उनको लोगों को आगे की देखभाल के लिए सौंपा जाता है. इसके लिए संस्था 'खुशियों की दुकान' नाम से एक स्टॉल लगाती है. इस स्टॉल पर आकर इच्छुक व्यक्ति अपनी पसंद के पशु-पक्षियों को अडॉप्ट कर सकता है. वैसे शुरुआती दिनों में इस संस्था को बहुत कम रिस्पॉन्स मिला, लेकिन इस संस्था के लोगों ने हार नहीं मानी और अब इस संस्था में काफी सारे पशु पक्षी रेस्क्यू किये जा चुके हैं.
हिमालयन गिद्ध रेस्क्यू से सुर्खियों में संस्था: करीब एक वर्ष पहले संस्था द्वारा ग्रिफिथ नस्ल का एक हिमालयन गिद्ध रेस्क्यू किया गया, जिसका इलाज चल रहा है. हिमालयन गिद्ध के रेस्क्यू के बाद लोगों का रुझान इस संस्था की तरफ बढ़ा. अब शहर के लोग यहां गिद्ध के साथ-साथ अन्य पशु पक्षियों को देखने के लिए आते हैं. पशु पक्षियों को देखने पहुंचे नीरज और दिनेश ने बताया कि उन्हें यहां आकर बहुत अच्छा लगा. उन्होंने बताया कि जो पशु पक्षी घायल हो जाते हैं और उनके यहां इलाज किया जाता है जो काफी सराहनीय है.
आश्रम में पशु-पक्षियों के लिए विशेष प्रबंध: आश्रम में घायल पशु पक्षियों का इलाज कर रहे मंगत ने बताया 'कोई भी पशु-पक्षी रोड पर या कहीं घायल अवस्था में मिल जाता है और उसका इलाज वहीं होने वाला होता है तो वहीं कर देते है. अगर वहां संभव नहीं होता है तो चोटिल पशु-पक्षियों को आश्रम में लाते हैं. पशु-पक्षी जब ठीक नहीं हो जाते हैं तब तक उनकी देखभाल की जाती है. पिछले साल एक घायल अवस्था में गिद्ध मिला था उसका इलाज किया गया था. वह पहले से बेहतर है. उसे स्वस्थ होने में अभी समय लगेगा.'
पशु-पक्षियों के लिए आश्रम बनाने का विचार कैसे आया?: आश्रम के संचालक जसपाल सिंह ने बताया कि 'बचपन से ही पशु पक्षियों के प्रति लगाव था. करीब 7 वर्ष की आयु में अपने नानी के घर रहते थे तो वहां पर एक कबूतर की जान बचाई थी. जिसके बाद घायल पशु-पक्षियों को अपने घर लाकर उनका इलाज करना शुरू कर दिया. साल 2018 में एक कुत्ता गेट में फंस गया था. आसपास जो लोग घूम रहे थे उसे घायल अवस्था में देख जा रहे थे. लेकिन जब हमने उसे देखा तो दोस्तों के साथ एक एनजीओ बनाने पर विचार किया. आज लगभग 5 साल हो गए हैं. धीरे-धीरे लोगों की सहायता मिलने लगी है.