रेवाड़ी: कानोड़ गेट स्थित सेंट एंड्रयूज चर्च में क्रिसमस का त्योहार धूमधाम से मनाया गया. लोगों ने गिरजाघर पहुंचकर भगवान यीशु के जन्मदिन पर प्रार्थना की और भाईचारे को बनाए रखने का संदेश दिया.
चर्च में पूजा करने आए युवाओं ने कहा कि सभी धर्मों को मिलजुलकर आपस में प्यार का संदेश देना चाहिए. जो भगवान यीशु ने सारी दुनिया को दिया वो हम भी देना चाहते हैं. उन्होंने अपने हाथों से मोमबत्तियां जलाकर शांति की कामना की.
सामाजिक पर्व बन गया है क्रिसमस
क्रिसमस अब सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं रहा बल्कि इसने सामाजिक पर्व का रूप धारण कर लिया है तभी तो अब सभी समुदायों के लोग बढ़−चढ़कर इसे मनाते हैं और आपस में खुशियां बांटते हैं. क्रिसमस हंसी−खुशी का त्यौहार है इस दिन विश्व भर के गिरजाघरों में प्रभु यीशु की जन्मगाथा की झांकियां प्रस्तुत की जाती हैं और गिरजाघरों में प्रार्थना की जाती है.
क्रिसमस को सभी ईसाई लोग मनाते हैं और आजकल कई गैर ईसाई लोग भी इसे एक धर्मनिरपेक्ष, सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाते हैं. बाजारवाद ने भी इस पर्व के प्रचार में बड़ी भूमिका निभाई है. क्रिसमस के दौरान उपहारों का आदान−प्रदान, सजावट का सामान और छुट्टी के दौरान मौजमस्ती के कारण ये एक बड़ी आर्थिक गतिविधि भी बन गया है.
क्रिसमस ट्री का चलन
इस पर्व के दौरान सभी लोग अपने घरों में क्रिसमस ट्री लगाते हैं जिसे अच्छे अच्छे उपहारों से सजाया जाता है. इसकी सुंदरता देखते ही बनती है. क्रिसमस से 12 दिन के उत्सव क्रिसमसटाइड की भी शुरुआत होती है. इस पर्व पर बच्चों के बीच सांता क्लाज की बहुत धूम रहती है. सांता क्लाज बच्चों के लिए मनचाहे तोहफे लेकर आते हैं और बच्चों को खुशियों से भर देते हैं.
बच्चे खुद भी इस पर्व पर सुंदर रंगीन वस्त्र पहनते हैं और हाथ में चमकीली छड़ियां लिए हुए सामूहिक नृत्य करते हैं. बच्चों के अलावा बड़ों में भी इस पर्व को लेकर उत्साह रहता है. ईसाइयों के अलावा अन्य लोग भी इस दौरान अपने घर में क्रिसमस ट्री लगाते हैं. इसे अच्छे अच्छे उपहारों से सजाया जाता है और इसकी सुंदरता देखते ही बनती है. आजकल बाजार में बने बनाए क्रिसमस ट्री भी मिलते हैं.
क्रिसमस मनाए जाने के पीछे एक पुरानी कहानी
मानयता है कि एक बार ईश्वर ने ग्रैबियल नामक अपना एक दूत मैरी नामक युवती के पास भेजा. ईश्वर के दूत ग्रैबियल ने मैरी को जाकर कहा कि उसे ईश्वर के पुत्र को जन्म देना है. ये बात सुनकर मैरी चौंक गई क्योंकि अभी तो वो कुंवारी थी, सो उसने ग्रैबियल से पूछा कि ये किस प्रकार संभव होगा? तो ग्रैबियल ने कहा कि ईश्वर सब ठीक करेगा.
समय बीता और मैरी की शादी जोसेफ नाम के युवक के साथ हो गई. भगवान के दूत ग्रैबियल जोसेफ के सपने में आए और उससे कहा कि जल्द ही मैरी गर्भवती होगी और उसे उसका खास ध्यान रखना होगा क्योंकि उसकी होने वाली संतान कोई और नहीं स्वयं प्रभु यीशु हैं. उस समय जोसेफ और मैरी नाजरथ जोकि वर्तमान में इजराइल का एक भाग है, में रहा करते थे.
उस समय नाजरथ रोमन साम्राज्य का एक हिस्सा हुआ करता था. एक बार किसी कारण से जोसेफ और मैरी बैथलेहम, जोकि इस समय फिलस्तीन में है, में किसी काम से गए, उन दिनों वहां बहुत से लोग आए हुए थे जिस कारण सभी धर्मशालाएं और शरणालय भरे हुए थे जिससे जोसेफ और मैरी को अपने लिए शरण नहीं मिल पाई.
काफी थक−हारने के बाद उन दोनों को एक अस्तबल में जगह मिली और उसी स्थान पर आधी रात के बाद प्रभु यीशु का जन्म हुआ. अस्तबल के निकट कुछ गडरिए अपनी भेड़ें चरा रहे थे, वहां ईश्वर के दूत प्रकट हुए और उन गडरियों को प्रभु यीशु के जन्म लेने की जानकारी दी. गडरिए उस नवजात शिशु के पास गए और उसे नमन किया.
यीशु जब बड़े हुए तो उन्होंने पूरे गलीलिया में घूम−घूम कर उपदेश दिए और लोगों की हर बीमारी और दुर्बलताओं को दूर करने के प्रयास किए. धीरे−धीरे उनकी प्रसिद्धि चारों ओर फैलती गई.
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यीशु के सद्भावनापूर्ण कार्यों के कुछ दुश्मन भी थे जिन्होंने अंत में यीशु को काफी यातनाएं दीं और उन्हें क्रूस पर लटकाकर मार डाला, लेकिन यीशु जीवन पर्यन्त मानव कल्याण की दिशा में जुटे रहे, यही नहीं जब उन्हें कू्रस पर लटकाया जा रहा था, तब भी वओ यही बोले कि 'हे पिता इन लोगों को क्षमा कर दीजिए क्योंकि ये लोग अज्ञानी हैं'. उसके बाद से ही ईसाई लोग 25 दिसम्बर यानी यीशु के जन्मदिवस को क्रिसमस के रूप में मनाते हैं.