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कॉलोडियन सिंड्रोम: इस बीमारी में प्लास्टिक जैसी स्किन के साथ जन्म लेता है बच्चा, अभिभावक इन चीजों का रखें ख्याल - कॉलोडियन सिंड्रोम

क्या आप जानते हैं कॉलोडियन सिंड्रोम दुनिया की रेयरेस्ट बीमारियों में से एक है. इस बीमारी के कारण बच्चों की मौत भी हो सकती है. हमारी इस रिपोर्ट में विस्तार से जानिए एक्सपर्ट इस पर क्या जानकारी देते हैं और कैसे सावधानी बरतनी चाहिए ताकि ऐसी बीमारियों से बचा जा सके.

Down syndrome down syndrome case in Panipat Specialist Dr Shaleen Pareek
कॉलोडियन सिंड्रोम जिसमें बच्चा प्लास्टिक जैसी स्किन के साथ लेता है जन्म
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Published : Apr 12, 2023, 7:22 PM IST

कॉलोडियन सिंड्रोम जिसमें बच्चा प्लास्टिक जैसी स्किन के साथ लेता है जन्म

पानीपत: आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी और जीवन शैली में बदलाव के कारण कुछ ऐसे अनुवांशिक रोग सामने आ रहे हैं, जो कि बड़े दुर्लभ है. डाउन सिंड्रोम, कॉलोडियन सिंड्रोम जैसी बीमारी से ग्रसित बच्चों की संख्या माता-पिता की बदलती जीवन शैली के कारण बढ़ती जा रही है. ऐसा ही एक मामला पंजाब के जीरकपुर से सामने आया है. जिसमे बच्चा कोलोडियन सिंड्रोम से ग्रसित पाया गया. जिसका पानीपत में एक डॉक्टर की टीम इलाज कर रही है. इस बच्चे को 2 महीने के इलाज के बाद पूरी तरह स्वस्थ किया गया है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट: विशेषज्ञों के मुताबिक कॉलोडियन सिंड्रोम विश्व की दुर्लभतम बीमारियों में से एक है. जो कि मां-बाप के शुक्राणुओं में गड़बड़ी की वजह से होती है. यदि दोनों के क्रोमोसोम संक्रमित हों, तो पैदा होने वाला बच्चा कॉलोडियन सिंड्रोम, डाउन सिंड्रोम से ग्रसित हो सकता है. इस रोग में बच्चा शरीर पर प्लास्टिक की तरह दिखने वाली परत के साथ पैदा होता है.

प्लास्टिक स्किन में जानलेवा दर्द से तड़पता है बच्चा: स्पेशलिस्ट डॉक्टर शालीन पारीक ने बताया कि यह ऑटोसोमल रिसेसिव जेनेटिक डिसऑर्डर एक (डर्मेटोलॉजिकल इमरजेंसी) त्वचा संबंधी आपात स्थिति है. जो एक लाख बच्चों में से एक बच्चे को होती है. पानीपत में ऐसी स्थिति में किसी बच्चे के जीवित रहने का यह पहला मामला है. इस रोग में बच्चे की छाती, हाथ-पैर के ऊपरी और निचले हिस्से पर एक मोटी झिल्ली से ढकी लाल त्वचा होती है. मेडिकल भाषा में इसे क्लोडियन झिल्ली के रूप में जाना जाता है. इसकी वजह से बच्चे की पलकें और होंठ फटे हुए होते है और कान विकृत होते हैं.

बच्चे की जान को खतरा: सामान्य महिला व पुरुष में 23-23 क्रोमोसोम पाए जाते हैं. यदि दोनों के क्रोमोसोम संक्रमित हों तो पैदा होने वाला बच्चा कॉलोडियन हो सकता है. इस रोग में बच्चे के पूरे शरीर पर प्लास्टिक की परत चढ़ जाती है. धीरे-धीरे यह परत फटने लगती है और असहनीय दर्द होता है. यदि संक्रमण बढ़ा तो उसका जीवन बचा पाना मुश्किल हो जाता है या यूं कहे की ऐसे में बच्चे की जान चली जाती है.

Down syndrome down syndrome case in Panipat Specialist Dr Shaleen Pareek
कॉलोडियन सिंड्रोम दुनिया की रेयरेस्ट बीमारियों में से एक है.

इसी अवस्था में गुजरता है जीवन: कई मामलों में ऐसे बच्चे दस दिन के भीतर प्लास्टिक रूपी आवरण छोड़ देते हैं. इस दौरान बच्चे के जिंदा रहने की उम्मीद नाम मात्र ही रह जाती है. इससे ग्रसित दस फीसद बच्चे पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं. लेकिन इन्हें भी जीवन भर इक्थियोसिस (त्वचा संबंधी) समस्याएं रहती हैं.उनकी स्किन सख्त हो जाती है और इसी अवस्था में जीवन जीना पड़ता है. जोकि बड़ा ही कठिन है.

ये भी पढ़ें: Cold Water : शरीर को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है ज्यादा ठंडे पानी का सेवन

क्या है इस रोग का कारण: डॉक्टरों का कहना है कि यह एक जेनेटिक डिसऑर्डर है. यदि माता-पिता की हिस्ट्री में कोई इस तरह की बीमारी हो, तो बच्चे में होना स्वाभाविक है. दूसरा क्रोमोसोम की वजह से भी यह बीमारी बच्चे में आ सकती है और अगर ऐसा बच्चा पैदा होता है. तो दूसरे बच्चे में भी 25% तक चांस इसी प्रकार की स्थिति में पैदा होने का होता है. ऐसा बच्चा पैदा होने के बाद दूसरे बच्चे की प्लानिंग करते समय डॉक्टरों की सलाह लेना जरूरी होता है.

सावधानी बरतें: आजकल की बदलती दुनिया में लोगों का लाइफ स्टाइल भी बदलता जा रहा है. भागदौड़ की इस दुनिया में अपने खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए. समय पर खाना और पूरी नींद लेना भी बेहद जरूरी है. अपनी डाइट का पूरा ख्याल रखें. व्यायाम करना बेहद जरूरी है. दिनचर्या की छोटी-छोटी बातों का खास ख्याल रखें. ताकि आपको या आपकी पीढ़ी को भविष्य में किसी तरह की परेशानी का सामना ना करना पड़े.
ये भी पढ़ें: हरियाणा में कोरोना से अप्रैल महीने में चौथी मौत, नूंह को छोड़कर सभी 21 जिलों में फैला संक्रमण

कॉलोडियन सिंड्रोम जिसमें बच्चा प्लास्टिक जैसी स्किन के साथ लेता है जन्म

पानीपत: आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी और जीवन शैली में बदलाव के कारण कुछ ऐसे अनुवांशिक रोग सामने आ रहे हैं, जो कि बड़े दुर्लभ है. डाउन सिंड्रोम, कॉलोडियन सिंड्रोम जैसी बीमारी से ग्रसित बच्चों की संख्या माता-पिता की बदलती जीवन शैली के कारण बढ़ती जा रही है. ऐसा ही एक मामला पंजाब के जीरकपुर से सामने आया है. जिसमे बच्चा कोलोडियन सिंड्रोम से ग्रसित पाया गया. जिसका पानीपत में एक डॉक्टर की टीम इलाज कर रही है. इस बच्चे को 2 महीने के इलाज के बाद पूरी तरह स्वस्थ किया गया है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट: विशेषज्ञों के मुताबिक कॉलोडियन सिंड्रोम विश्व की दुर्लभतम बीमारियों में से एक है. जो कि मां-बाप के शुक्राणुओं में गड़बड़ी की वजह से होती है. यदि दोनों के क्रोमोसोम संक्रमित हों, तो पैदा होने वाला बच्चा कॉलोडियन सिंड्रोम, डाउन सिंड्रोम से ग्रसित हो सकता है. इस रोग में बच्चा शरीर पर प्लास्टिक की तरह दिखने वाली परत के साथ पैदा होता है.

प्लास्टिक स्किन में जानलेवा दर्द से तड़पता है बच्चा: स्पेशलिस्ट डॉक्टर शालीन पारीक ने बताया कि यह ऑटोसोमल रिसेसिव जेनेटिक डिसऑर्डर एक (डर्मेटोलॉजिकल इमरजेंसी) त्वचा संबंधी आपात स्थिति है. जो एक लाख बच्चों में से एक बच्चे को होती है. पानीपत में ऐसी स्थिति में किसी बच्चे के जीवित रहने का यह पहला मामला है. इस रोग में बच्चे की छाती, हाथ-पैर के ऊपरी और निचले हिस्से पर एक मोटी झिल्ली से ढकी लाल त्वचा होती है. मेडिकल भाषा में इसे क्लोडियन झिल्ली के रूप में जाना जाता है. इसकी वजह से बच्चे की पलकें और होंठ फटे हुए होते है और कान विकृत होते हैं.

बच्चे की जान को खतरा: सामान्य महिला व पुरुष में 23-23 क्रोमोसोम पाए जाते हैं. यदि दोनों के क्रोमोसोम संक्रमित हों तो पैदा होने वाला बच्चा कॉलोडियन हो सकता है. इस रोग में बच्चे के पूरे शरीर पर प्लास्टिक की परत चढ़ जाती है. धीरे-धीरे यह परत फटने लगती है और असहनीय दर्द होता है. यदि संक्रमण बढ़ा तो उसका जीवन बचा पाना मुश्किल हो जाता है या यूं कहे की ऐसे में बच्चे की जान चली जाती है.

Down syndrome down syndrome case in Panipat Specialist Dr Shaleen Pareek
कॉलोडियन सिंड्रोम दुनिया की रेयरेस्ट बीमारियों में से एक है.

इसी अवस्था में गुजरता है जीवन: कई मामलों में ऐसे बच्चे दस दिन के भीतर प्लास्टिक रूपी आवरण छोड़ देते हैं. इस दौरान बच्चे के जिंदा रहने की उम्मीद नाम मात्र ही रह जाती है. इससे ग्रसित दस फीसद बच्चे पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं. लेकिन इन्हें भी जीवन भर इक्थियोसिस (त्वचा संबंधी) समस्याएं रहती हैं.उनकी स्किन सख्त हो जाती है और इसी अवस्था में जीवन जीना पड़ता है. जोकि बड़ा ही कठिन है.

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क्या है इस रोग का कारण: डॉक्टरों का कहना है कि यह एक जेनेटिक डिसऑर्डर है. यदि माता-पिता की हिस्ट्री में कोई इस तरह की बीमारी हो, तो बच्चे में होना स्वाभाविक है. दूसरा क्रोमोसोम की वजह से भी यह बीमारी बच्चे में आ सकती है और अगर ऐसा बच्चा पैदा होता है. तो दूसरे बच्चे में भी 25% तक चांस इसी प्रकार की स्थिति में पैदा होने का होता है. ऐसा बच्चा पैदा होने के बाद दूसरे बच्चे की प्लानिंग करते समय डॉक्टरों की सलाह लेना जरूरी होता है.

सावधानी बरतें: आजकल की बदलती दुनिया में लोगों का लाइफ स्टाइल भी बदलता जा रहा है. भागदौड़ की इस दुनिया में अपने खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए. समय पर खाना और पूरी नींद लेना भी बेहद जरूरी है. अपनी डाइट का पूरा ख्याल रखें. व्यायाम करना बेहद जरूरी है. दिनचर्या की छोटी-छोटी बातों का खास ख्याल रखें. ताकि आपको या आपकी पीढ़ी को भविष्य में किसी तरह की परेशानी का सामना ना करना पड़े.
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