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छट रहे MSME पर छाए आर्थिक संकट के बादल, हैंडलूम का क्षेत्र अब भी काफी पीछे

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Published : Dec 17, 2020, 7:17 PM IST

सभी उद्योग लॉकडाउन खुलने के बाद से धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहे हैं. अगर पानीपत की एमएसएमई की बात करें तो हैंडलूम को छोड़कर दूसरे सभी व्यवस्या कोरोना की मार से उबर चुके हैं. सिर्फ एक हैंडलूम बिजनेस ही ऐसा है जो हरियाणा सरकार से आर्थिक मदद का इंतजार कर रहा है.

panipat msme after lockdown
छट रहे MSME पर छाए आर्थिक संकट के बादल, हैंडलूम का क्षेत्र अब भी काफी पीछे

पानीपत: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम यानी की एमएसएमई आर्थिक विकास का वो इंजन है, जो कम पूंजी में ज्यादा रोजगार देता है लेकिन कोरोना वायरस और फिर देश में लगे लॉकडाउन ने इन उद्यमों की कमर तोड़ दी थी. अगर बात पानीपत के लघु उद्योगों की करें तो सभी उद्योग धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहे हैं. इन छोटे उद्योगों में काम करने वाले मजदूरों की मानें तो फिलहाल उन्हें पेट भरने लायक काम मिल रहा है.

पानीपत में लघु उद्योगों की बात करें तो छोटे-छोटे कारखानों की संख्या यहां 85 प्रतिशत के करीब है और यहां काम करने वाले मजदूरों की संख्या लगभग ढाई लाख के करीब है. इन सभी पर लॉकडाउन का असर देखने को मिला था. गजेंद्र नाम के मजदूर ने कहा कि लॉकडाउन में काम मिलना बंद हो गया था, लेकिन अब काम मिल रहा है. पहली जैसी बात तो नहीं है, लेकिन गुजारा चल रहा है.

छट रहे MSME पर छाए आर्थिक संकट के बादल, हैंडलूम का क्षेत्र अब भी काफी पीछे

हैंडलूम उद्योग को मदद की दरकार

एशिया के हैंडलूम व्यवसाय में पानीपत का अलग नाम है, लेकिन ये व्यवसाय अब भी लॉकडाउन की मार से नहीं उभर पाया है. हैंडलूम से जुड़े लघु उद्योग आज भी सामान्य नहीं हुए हैं. हैंडलूम के लिए मशीनें बनाने वाले लघु उद्योग तो धीरे-धीरे पटरी पर आ गए हैं और उन्हें अब काम के आर्डर भी मिल रहे हैं, लेकिन हैंडलूम का काम करने वाले छोटे व्यवसाई अभी भी काम और आर्डर की तलाश में है.

भावुक हुआ बेडशीट व्यापारी

ईटीवी भारत की टीम ने जब लघु उद्योग चलाने वाले एक बेडशीट व्यवसाई से उसके काम के बारे में पूछा तो वो बेहद भावुक हो गया. उसने बताया कि 15 साल की आयु में उसने बेडशीट बनाने का काम शुरू किया था. आज उसकी उम्र 68 वर्ष हो चुकी है और इस उम्र में उसने अपनी मशीनें कबाड़ी को बेची हैं. ऐसा करना बेहद दुख देता है. उसने बताया कि बेडशीट का काम छोड़कर उसने पोलर कंबल की ट्रेडिंग शुरू कर दी है.

ये भी पढ़िए: स्पेशल रिपोर्ट: गुरुग्राम में अवैध पार्किंग बनी बड़ी समस्या, लगा रहता है लंबा जाम

एमएसएमई के जिला अध्यक्ष सुखबीर सिंह मलिक ने बताया कि लघु उद्योग दोबारा से रफ्तार पकड़ रहे हैं, लेकिन अभी भी हैंडलूम से जुड़े कुछ व्यवसाई हैं जो कोरोना की मार से निकल नहीं पाए हैं. ऐसे में सरकार को उनकी आर्थिक मदद करनी चाहिए.

पानीपत: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम यानी की एमएसएमई आर्थिक विकास का वो इंजन है, जो कम पूंजी में ज्यादा रोजगार देता है लेकिन कोरोना वायरस और फिर देश में लगे लॉकडाउन ने इन उद्यमों की कमर तोड़ दी थी. अगर बात पानीपत के लघु उद्योगों की करें तो सभी उद्योग धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहे हैं. इन छोटे उद्योगों में काम करने वाले मजदूरों की मानें तो फिलहाल उन्हें पेट भरने लायक काम मिल रहा है.

पानीपत में लघु उद्योगों की बात करें तो छोटे-छोटे कारखानों की संख्या यहां 85 प्रतिशत के करीब है और यहां काम करने वाले मजदूरों की संख्या लगभग ढाई लाख के करीब है. इन सभी पर लॉकडाउन का असर देखने को मिला था. गजेंद्र नाम के मजदूर ने कहा कि लॉकडाउन में काम मिलना बंद हो गया था, लेकिन अब काम मिल रहा है. पहली जैसी बात तो नहीं है, लेकिन गुजारा चल रहा है.

छट रहे MSME पर छाए आर्थिक संकट के बादल, हैंडलूम का क्षेत्र अब भी काफी पीछे

हैंडलूम उद्योग को मदद की दरकार

एशिया के हैंडलूम व्यवसाय में पानीपत का अलग नाम है, लेकिन ये व्यवसाय अब भी लॉकडाउन की मार से नहीं उभर पाया है. हैंडलूम से जुड़े लघु उद्योग आज भी सामान्य नहीं हुए हैं. हैंडलूम के लिए मशीनें बनाने वाले लघु उद्योग तो धीरे-धीरे पटरी पर आ गए हैं और उन्हें अब काम के आर्डर भी मिल रहे हैं, लेकिन हैंडलूम का काम करने वाले छोटे व्यवसाई अभी भी काम और आर्डर की तलाश में है.

भावुक हुआ बेडशीट व्यापारी

ईटीवी भारत की टीम ने जब लघु उद्योग चलाने वाले एक बेडशीट व्यवसाई से उसके काम के बारे में पूछा तो वो बेहद भावुक हो गया. उसने बताया कि 15 साल की आयु में उसने बेडशीट बनाने का काम शुरू किया था. आज उसकी उम्र 68 वर्ष हो चुकी है और इस उम्र में उसने अपनी मशीनें कबाड़ी को बेची हैं. ऐसा करना बेहद दुख देता है. उसने बताया कि बेडशीट का काम छोड़कर उसने पोलर कंबल की ट्रेडिंग शुरू कर दी है.

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एमएसएमई के जिला अध्यक्ष सुखबीर सिंह मलिक ने बताया कि लघु उद्योग दोबारा से रफ्तार पकड़ रहे हैं, लेकिन अभी भी हैंडलूम से जुड़े कुछ व्यवसाई हैं जो कोरोना की मार से निकल नहीं पाए हैं. ऐसे में सरकार को उनकी आर्थिक मदद करनी चाहिए.

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