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जब 70 हजार सैनिकों के खून से लाल हुई थी हरियाणा में इस जिले की धरती, पेड़ के फलों का भी बदल गया था रंग - पानीपत अहमद शाह अब्दाली सदाशिव राव भाऊ युद्ध

हरियाणा में कई ऐसी एतिहासिक जगह हैं जिनका इतिहास वर्षों पुराना है और ऐसी ही एक जगह है काला अंब. जानें इस जगह का नाम काला अंब क्यों पड़ा और 260 वर्ष पहले किस वजह से एक भयानक युद्ध हुआ था.

Panipat kala amb Battle Field Memorial
जब 70 हजार सैनिकों के खून से लाल हुई थी हरियाणा में इस जिले की धरती, पेड़ के फलों का भी बदल गया था रंग
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Published : Jun 20, 2021, 11:05 PM IST

पानीपत: इतिहास से जुड़ी आज भी बहुत सी ऐसी कहानियां है जिससे लोग अनजान है और आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी से रूबरू करवाएंगे जो हरियाणा के पानीपत से जुड़ी है. हम बात कर रहें हैं पानीपत से कुछ ही किलोमीटिर दूरी पर स्थित काला अम्ब की जहां एक 260 वर्ष पहले एक भयानक युद्ध लड़ा गया था जिसके बाद वहां एक युद्ध स्मारक बनाई गई थी. इस जगह का नाम काला अम्ब क्यों पड़ा इसके बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं. दरअसल पानीपत का तीसरा युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ के बीच 14 जनवरी 1761 को इसी जगह पर लड़ा गया था और इस युद्ध में भील प्रमुख इब्राहीम ख़ाँ गार्दी ने मराठों का साथ दिया था.

यहां कभी एक विशालकाय आम का पेड़ हुआ करता था इतिहासकारों की मानें तो जब यहां अहमद शाह अब्दाली और मराठों का युद्ध हुआ तो लगभग 70,000 सैनिक इस युद्ध में मारे गए थे. और इस युद्ध में मारे गए सैनिकों का रक्त भी इस जगह पर इकट्ठा हो गया. जब 70,000 सैनिकों का रक्त इस पेड़ की जड़ों में घुस गया तो इस पेड़ पर लगने वाले फल भी काले पड़ गए. इसकी लकड़ियां तक काली हो गई. कहा जाता है कि इस युद्ध स्मारक पर स्थित आम का पेड़ इतना बड़ा था कि इसकी नीचे 300 से ज्यादा मवेशी और राहगीर आराम करते थे.

जब 70 हजार सैनिकों के खून से लाल हुई थी हरियाणा में इस जिले की धरती, पेड़ के फलों का भी बदल गया था रंग

ये भी पढ़ें: हरियाणा में इस जगह बनेगा मिल्खा सिंह के नाम पर पेराग्लाइडिंग क्लब

युद्ध के बाद आम का पेड़ धीरे-धीरे सुखता चला गया और पेड़ के सूख जाने के बाद पास के ही गांव उग्रा खेड़ी के कवि पंडित सुगन चंद ने इसे खरीद लिया. इतिहासकारों की मानें तो आज भी इस पेड़ के कुछ अंश बाकी है और इसकी लकड़ियों से दो दरवाजे बनवाए गए जिसमें से कवि पंडित सुगन चंद ने एक दरवाजा महारानी विक्टोरिया को उपहार में दे दिया जो आज पानीपत के म्यूजियम में रखा गया है और दूसरा दरवाजा करनाल लघु सचिवालय के म्यूजियम में रखा गया है. अगर हम इतिहास पर बारिकी से नजर दौड़ाएं तो हम हरियाणा के उस इतिहास से रुबरु होंगे जहां कई ऐसी ही कई घटनाएं हुई है.

पानीपत: इतिहास से जुड़ी आज भी बहुत सी ऐसी कहानियां है जिससे लोग अनजान है और आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी से रूबरू करवाएंगे जो हरियाणा के पानीपत से जुड़ी है. हम बात कर रहें हैं पानीपत से कुछ ही किलोमीटिर दूरी पर स्थित काला अम्ब की जहां एक 260 वर्ष पहले एक भयानक युद्ध लड़ा गया था जिसके बाद वहां एक युद्ध स्मारक बनाई गई थी. इस जगह का नाम काला अम्ब क्यों पड़ा इसके बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं. दरअसल पानीपत का तीसरा युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ के बीच 14 जनवरी 1761 को इसी जगह पर लड़ा गया था और इस युद्ध में भील प्रमुख इब्राहीम ख़ाँ गार्दी ने मराठों का साथ दिया था.

यहां कभी एक विशालकाय आम का पेड़ हुआ करता था इतिहासकारों की मानें तो जब यहां अहमद शाह अब्दाली और मराठों का युद्ध हुआ तो लगभग 70,000 सैनिक इस युद्ध में मारे गए थे. और इस युद्ध में मारे गए सैनिकों का रक्त भी इस जगह पर इकट्ठा हो गया. जब 70,000 सैनिकों का रक्त इस पेड़ की जड़ों में घुस गया तो इस पेड़ पर लगने वाले फल भी काले पड़ गए. इसकी लकड़ियां तक काली हो गई. कहा जाता है कि इस युद्ध स्मारक पर स्थित आम का पेड़ इतना बड़ा था कि इसकी नीचे 300 से ज्यादा मवेशी और राहगीर आराम करते थे.

जब 70 हजार सैनिकों के खून से लाल हुई थी हरियाणा में इस जिले की धरती, पेड़ के फलों का भी बदल गया था रंग

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युद्ध के बाद आम का पेड़ धीरे-धीरे सुखता चला गया और पेड़ के सूख जाने के बाद पास के ही गांव उग्रा खेड़ी के कवि पंडित सुगन चंद ने इसे खरीद लिया. इतिहासकारों की मानें तो आज भी इस पेड़ के कुछ अंश बाकी है और इसकी लकड़ियों से दो दरवाजे बनवाए गए जिसमें से कवि पंडित सुगन चंद ने एक दरवाजा महारानी विक्टोरिया को उपहार में दे दिया जो आज पानीपत के म्यूजियम में रखा गया है और दूसरा दरवाजा करनाल लघु सचिवालय के म्यूजियम में रखा गया है. अगर हम इतिहास पर बारिकी से नजर दौड़ाएं तो हम हरियाणा के उस इतिहास से रुबरु होंगे जहां कई ऐसी ही कई घटनाएं हुई है.

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