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वो वजह, जिसने 22 युद्धों के विजेता हेमू को दिल्ली पहुंचने पर मजबूर कर दिया

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Published : Feb 4, 2020, 7:08 AM IST

Updated : Feb 4, 2020, 12:04 PM IST

'युद्ध' की पिछली कड़ी में हमने पानीपत की दूसरी लड़ाई के उस दौर को बताया जब बाबर को शेर शाह सूरी ने हराया और उसकी मौत के बाद हुमायूं दोबारा गद्दी पर बैठा, लेकिन उसके कुछ दिनों बाद ही उसकी मौत हो गई, इस कड़ी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे हेम चंद्र मौर्य ने आदिल की सरपरस्ती में अपना सिर उठाना शुरू किया, विस्तार से पढ़ें.

main reason of panipat second war
पानीपत की लड़ाई

पानीपत: ईटीवी भारत हरियाणा की विशेष पेशकश 'युद्ध' में हम आज बात करने जा रहे हैं उस दौर की, जब दिल्ली के तख्त पर 14 साल अकबर था. दिल्ली के सम्राट हुमायूं का निधन हो चुका था और उधर लगातार युद्धों में अपना परचम फहराने के बाद हेम चंद्र मौर्य खुद दिल्ली को जीतना चाहता था.

वो साल था 1555... दिल्ली...वो दौर जब हुमायूं ने सूरी वंश को दिल्ली से खदेड़ चुका था. दिल्ली के किले पर मुगल सल्तनत का परचम लहरा रहा था और हुमायूं की मौत के बाद 13 साल के अकबर को सम्राट घोषित कर दिया गया था. वहीं सूरी वंश अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था, लेकिन हेमू लगातार आदिल की सरपरस्ती में सिर उठा रहा था.

वो वजह, जो 22 युद्धों के विजेता हेमू को दिल्ली पहुंचने पर मजबूर कर गई, देखिए रिपोर्ट

हेम चंद्र मौर्य खुद राजा बनना चाहता था!
हेमू कहने के लिए आदिल का सेनापति था मगर खुद ही पूरे सम्राज्य पर नियंत्रण कर चुका था. वो भीतर ही भीतर अपने लक्ष्य के लिए काम कर रहा था. वो धन इकट्ठा कर रहा था. वो अपने वफादारों की फौज तैयार कर रहा था. वो एक निपुण शासक की तरह काम कर रहा था. कहते हैं कि वो शेर शाह सूरी की तरह सोचता था.

हेमू अफगानों के हाथ से निकली सभी रियासतों को फिर अपने सम्राज्य में जोडने लगा था यही वजह थी कि वो अफगानियों का मसीहा बन चुका था.

हुमायूं की मौत की खबर ने हेमू को खुश कर दिया!
हेमू उस समय पूरे आत्मविश्वास से भर चुका था. यही वजह थी कि जैसे ही हेमू को मालूम हुआ कि हुमायूं मारा गया और महज 13 साल का उसका बेटा गद्दी पर बैठा है. उसने ठान लिया कि वो अब मुगलों पर हमला करेगा और दिल्ली पर राज करेगा मगर वो आदिल के सहयोग के साथ ही करना चाहता. बिना उसे अपने मन की बात बताए.

हेमू ने इस प्रस्ताव को मोहम्मद शाह आदिल के दरबार में रखा. हेमू ने आदिल को अपनी बातों से मनवा लिया कि मुगलों पर चढ़ाई करने का इससे अच्छा मौका कभी नहीं मिलेगा. मगर ज्यातषियों और काजियों ने चेतावनी दी कि इस वक्त मुगलों से युद्ध करना ठीक नहीं है.

आदिल के दरबारी नहीं चाहते थे युद्ध
दरबार में कुछ ऐसे मंत्री थे जिन्होंने युद्ध ना करने की सलाह दी, लेकिन हेमू को खुद पर भरोसा था. उसका कहना था कि पौधा पेड़ बने इससे पहले उसे जड़ से उखाड़ फैंक दिया जाए. आदिल भी इस बात से सहमत था. बस फिर क्या था... उसे अपने सपने पूरे करने के लिए पंख मिल चुके थे. उसने मुगलों पर चढ़ाई करने के लिए सबसे पहले आगरा की तरफ रुख किया.

हेमू मुगलों की ताकत और सैन्य बल को जानता था, लेकिन उसे खुद पर बहुत भरोसा था. वो किसी की मुसीबत में खुद को बाजी पलटने वाला मानता था और ऐसा सच भी हुआ. ईटीवी भारत का विशेष कार्यक्रम 'युद्ध' की इस एपिसोड में बस इतना ही, अगली कड़ी में हम आपको बताएंगे कि कैसे रेवाड़ी के आम व्यवसायी परिवार से ताल्लुक रखने वाला शख्स दिल्ली से मुगलों को भागने पर मजबूर कर देता है.

पढ़िए पानीपत की दूसरी लड़ाई का पहला एपिसोड़: दिल्ली तख्त के खातिर पानीपत हुआ था लहूलुहान! जानिए 1526 से 1556 की 'रक्तरंजित' दास्तां

ये भी पढ़ें- पानीपत की पहली लड़ाई: 1526 की वो जंग जब लोदी की एक भूल ने बाबर को बना दिया बादशाह

पानीपत: ईटीवी भारत हरियाणा की विशेष पेशकश 'युद्ध' में हम आज बात करने जा रहे हैं उस दौर की, जब दिल्ली के तख्त पर 14 साल अकबर था. दिल्ली के सम्राट हुमायूं का निधन हो चुका था और उधर लगातार युद्धों में अपना परचम फहराने के बाद हेम चंद्र मौर्य खुद दिल्ली को जीतना चाहता था.

वो साल था 1555... दिल्ली...वो दौर जब हुमायूं ने सूरी वंश को दिल्ली से खदेड़ चुका था. दिल्ली के किले पर मुगल सल्तनत का परचम लहरा रहा था और हुमायूं की मौत के बाद 13 साल के अकबर को सम्राट घोषित कर दिया गया था. वहीं सूरी वंश अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था, लेकिन हेमू लगातार आदिल की सरपरस्ती में सिर उठा रहा था.

वो वजह, जो 22 युद्धों के विजेता हेमू को दिल्ली पहुंचने पर मजबूर कर गई, देखिए रिपोर्ट

हेम चंद्र मौर्य खुद राजा बनना चाहता था!
हेमू कहने के लिए आदिल का सेनापति था मगर खुद ही पूरे सम्राज्य पर नियंत्रण कर चुका था. वो भीतर ही भीतर अपने लक्ष्य के लिए काम कर रहा था. वो धन इकट्ठा कर रहा था. वो अपने वफादारों की फौज तैयार कर रहा था. वो एक निपुण शासक की तरह काम कर रहा था. कहते हैं कि वो शेर शाह सूरी की तरह सोचता था.

हेमू अफगानों के हाथ से निकली सभी रियासतों को फिर अपने सम्राज्य में जोडने लगा था यही वजह थी कि वो अफगानियों का मसीहा बन चुका था.

हुमायूं की मौत की खबर ने हेमू को खुश कर दिया!
हेमू उस समय पूरे आत्मविश्वास से भर चुका था. यही वजह थी कि जैसे ही हेमू को मालूम हुआ कि हुमायूं मारा गया और महज 13 साल का उसका बेटा गद्दी पर बैठा है. उसने ठान लिया कि वो अब मुगलों पर हमला करेगा और दिल्ली पर राज करेगा मगर वो आदिल के सहयोग के साथ ही करना चाहता. बिना उसे अपने मन की बात बताए.

हेमू ने इस प्रस्ताव को मोहम्मद शाह आदिल के दरबार में रखा. हेमू ने आदिल को अपनी बातों से मनवा लिया कि मुगलों पर चढ़ाई करने का इससे अच्छा मौका कभी नहीं मिलेगा. मगर ज्यातषियों और काजियों ने चेतावनी दी कि इस वक्त मुगलों से युद्ध करना ठीक नहीं है.

आदिल के दरबारी नहीं चाहते थे युद्ध
दरबार में कुछ ऐसे मंत्री थे जिन्होंने युद्ध ना करने की सलाह दी, लेकिन हेमू को खुद पर भरोसा था. उसका कहना था कि पौधा पेड़ बने इससे पहले उसे जड़ से उखाड़ फैंक दिया जाए. आदिल भी इस बात से सहमत था. बस फिर क्या था... उसे अपने सपने पूरे करने के लिए पंख मिल चुके थे. उसने मुगलों पर चढ़ाई करने के लिए सबसे पहले आगरा की तरफ रुख किया.

हेमू मुगलों की ताकत और सैन्य बल को जानता था, लेकिन उसे खुद पर बहुत भरोसा था. वो किसी की मुसीबत में खुद को बाजी पलटने वाला मानता था और ऐसा सच भी हुआ. ईटीवी भारत का विशेष कार्यक्रम 'युद्ध' की इस एपिसोड में बस इतना ही, अगली कड़ी में हम आपको बताएंगे कि कैसे रेवाड़ी के आम व्यवसायी परिवार से ताल्लुक रखने वाला शख्स दिल्ली से मुगलों को भागने पर मजबूर कर देता है.

पढ़िए पानीपत की दूसरी लड़ाई का पहला एपिसोड़: दिल्ली तख्त के खातिर पानीपत हुआ था लहूलुहान! जानिए 1526 से 1556 की 'रक्तरंजित' दास्तां

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Last Updated : Feb 4, 2020, 12:04 PM IST
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