पानीपत: आजकल बच्चों में डाउन सिंड्रोम एक बड़ी समस्या बन चुकी है नेशनल सर्वे के मुताबिक 700 बच्चों में से एक बच्चा डाउन सिंड्रोम का शिकार पाया जा रहा है डाउन सिंड्रोम एक ऐसी बीमारी है जिसमें बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास आम बच्चों जैसा नहीं हो पाता इसका सबसे बड़ा कारण 35 वर्ष की उम्र में महिलाओं की शादी के बाद बच्चा पैदा करने में इस सिंड्रोम से ग्रसित होने की आशंका ज्यादा होती है
डॉ. अमन के मुताबिक यह एक अनुवांशिक समस्या है जो क्रोमोजोम की वजह से होती है. गर्भावस्था में गर्भ को 46 क्रोमोजोम मिलते हैं जिनमें 23 माता और 23 पिता के होते हैं, लेकिन डाउन सिंड्रोम पीड़ित बच्चों में से 21वें क्रोमोजोम की एक प्रति ज्यादा होती है यानी उसमें 47 क्रोमोजोम पाए जाते हैं. जिससे उसका मानसिक और शारीरिक विकास धीमा हो जाता है. क्रोमोजोम की अधिकता के कारण यह बीमारी गर्भावस्था में ही बच्चे के अंदर पनपती है.
डॉक्टरों के मुताबिक अगर कोई महिला 35 की उम्र के बाद शादी करती है तो उनके बच्चे में इस बीमारी की आशंका ज्यादा होती है. यही बात पुरुषों पर भी लागू होती है अगर कोई पुरुष 40 साल की उम्र के बाद शादी करता है तो उनके बच्चों में भी बीमारी होने का खतरा ज्यादा होता है. डॉक्टरों ने बताया कि डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों का विकास दूसरे बच्चों के मुकाबले कम होता है.
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डाउन सिंड्रोम बच्चों के लक्षण हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकते हैं. ऐसे बच्चों की मांसपेशियां कमजोर होती है. यह अन्य बच्चों के मुकाबले ज्यादा उम्र में उठना बैठना चलना आदि सीखते हैं बौद्धिक और मानसिक और शारीरिक विकास भी इनमें अन्य बच्चों से धीमा होता है. डाउन सिंड्रोम से कई बच्चों के चेहरे पर अजीब से लक्षण दिखाई देते हैं जैसे चेहरे के किसी भी अंग का बड़ा हो जाना, चप्पा हो जाना या सपाट होना, आंखों का तिरछापन, जीफ बड़ी हो जाना बच्चों की हड्डी मैं भी विकार उत्पन्न हो सकते हैं.
इन बच्चों की किडनी भी अन्य बच्चों के मुकाबले कमजोर होती है इनकी सुनने और देखने की क्षमता भी कम होती है. डॉक्टर के मुताबिक इस तरह के केस में अभिभावकों को सकारात्मक रहना चाहिए. बच्चों को प्रोटीन युक्त खाना देना चाहिए और मेडिकल के बढ़ते क्षेत्र के कारण अब यह बच्चे पहले से ज्यादा लंबी जिंदगी जीने लगे हैं.
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