पानीपत: भारतीय स्टार जेवलिन थ्रो प्लेयर नीरज चोपड़ा (JAVELIN THROW PLAYER NEERAJ CHOPRA) ने वर्ल्ड एथलेटिक्स चैम्पियनशिप (World Athletics Championships) में सिल्वर मेडल जीतकर भारत का 19 साल का लंबा इंतजार खत्म कर दिया. उन्होंने चैम्पियनशिप के इतिहास में देश को दूसरा मेडल दिलाया है. 24 साल के नीरज की इस उपलब्धि पर देशभर में जश्न मनाया जा रहा है. उनके गांव में लोगों ने नीरज के परिवार के साथ भी जमकर डांस किया.
नीरज चोपड़ा हरियाणा के पानीपत के रहने वाले हैं. उनका जन्म 24 दिसंबर 1997 को खंडरा गांव में हुआ था. नीरज किसान परिवार में पले-बढ़े (Neeraj chopra family) हैं. उनके पिता एक किसान हैं. नीरज की शुरुआती पढ़ाई लिखाई पानीपत से हुई है. इसके बाद आगे की पढ़ाई उन्होंने चंडीगढ़ से पूरी की है. उन्होंने बीबीए में अपना ग्रेजुएशन कंप्लीट किया है.
दोस्त उड़ाते थे मजाक- नीरज बचपन में काफी मोटे थे. उनका वजन करीब 80 किलो से ऊपर था. इस वजह से उनके दोस्त उनका मजाक उड़ाते थे. जब ये बात नीरज के चाचा को पता चली तो उन्होंने नीरज को दौड़ने की सलाह दी. नीरज 14 साल की उम्र में ही अपने चाचा के साथ दौड़ लगाने के लिए स्टेडियम जाने लगे. यहां उनकी नजर स्टेडियम में भाला फेंकते हुए दूसरे खिलाड़ियों पर पड़ी. बस फिर क्या था उन्होंने ठान लिया कि अब उन्हें जेवलिन थ्रो में ही अपना करियर बनाना है.
यूट्यूब पर देखते थे वीडियो- इसके बाद उन्होंने पंचकूला के ताऊ देवी लाल स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स (Tau Devi Lal Sports Complex Panchkula) में स्पोर्ट्स नर्सरी ज्वाइन की थी. चूंकि उनके लिए शहर में रहना बहुत महंगा था. इसलिए कोच नसीम अहमद ने उन्हें हॉस्टल में रहने की सलाह दी. पंचकूला में बैठकर विश्वस्तरीय सुविधा न होने पर नीरज ने यूट्यूब को अपना कोच बनाया. वह स्टार-थ्रोअर और रिकॉर्ड धारक जान ज़ेलेज़नी के वीडियो देखते और उनकी तकनीक की नकल करते थे. बाद में चोपड़ा को गैरी कैल्वर्ट नाम का एक ऑस्ट्रेलियाई कोच मिला. नीरज ने उनके साथ भारत और बाहर कई शिविरों में हिस्सा लिया. करीब 10 साल की कड़ी मेहनत और लगन के दम पर नीरज ने टोक्यों ओलंपिक में गोल्ड तक भाला फेंक दिखाया.
दोस्त अब भी बुलाते हैं सरपंच- नीरज जब भी गांव आते हैं तो उनके दोस्त उन्हें सरपंच साहब ही कहकर बुलाते हैं. नीरज के चाचा सुरेंद्र ने बताया कि ये किस्सा तब का है जब नीरज छोटा था. नीरज बचपन में ज्यादा मोटा हुआ करता था, तो घर वालों ने उसके लिए एक कुर्ता पजामा सिलवा दिया. उन्होंने बताया कि जब वह कुर्ता पजामा पहनकर गांव में निकला तो गांव वालों ने उसे सरपंच साहब कहना शुरू कर दिया और उस दिन के बाद नीरज को गांव में सरपंच बुलाया जाने लगा. पहले नीरज को जब लोग सरपंच बुलाते थे तो वह बहुत चिढ़ता थे. उस दिन के बाद से नीरज ने कुर्ता पजामा पहनना छोड़ दिया. हालांकि नीरज अब सरपंच साहब कहने पर बुरा नहीं मानते हैं.