पानीपत: कोरोना महामारी ने देश के बड़े-बड़े उद्योगों की कमर तोड़ कर रख दी है. ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा जहां कोरोना ने दस्तक ना दी हो. देश में कृषि के बाद मजदूरों की आय का दूसरा सबसे बड़ा साधन हैंडलूम है. ये क्षेत्र भी कोरोना से अछूता नहीं है. उद्योग नगरी पानीपत में हैंडलूम का बड़ा कारोबार है. जहां कोरोना की वजह से हैंडलूम फैक्ट्रियों के मालिकों से लेकर मजदूर तक सभी परेशान हैं.
उद्योग नगरी पानीपत में 50 प्रतिशत तक हैंडलूम फैक्ट्रियां बंद हो गई हैं. बाकी जो बची हैं. उनमें भी काम नहीं चल रहा है. फैक्ट्रियों में काम ना चलने से मजदूरों की रोजी के लाले पड़ गए हैं. कोरोना का डर हैंडलूम फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूरों के जहन में घर कर गया है. एक ओर कोरोना का डर और दूसरी ओर परिवार की चिंता. ऐसे में मजदूर क्या ही करे.
हैंडलूम उद्योग पर कोरोना का कहर
मजदूरों का कहना है कि पिछले 5 महीने से वो यहीं पर रहकर काम कर रहे हैं. वो पानीपत पैसा कामने के लिए आए थे, लेकिन लॉकडाउन की वजह से उनका जीना मुहाल हो गया है. उनको प्रोपर काम नहीं मिल रहा है. कोरोना की वजह से वो अपने घर भी नहीं जा सकते और कर्जे से बचे रहें. पहले उनको 400 से 500 रुपये मिलता था, लेकिन अब उनको देहाड़ी भी नहीं मिल रही है.
कोरोना महामारी की वजह से मजदूर ही नहीं फैक्ट्री मालिक भी परेशान हैं. फैक्ट्री मालिकों का कहना है कि उनका हैंडलूम का काम पहले से आधा हो गया है. उनको ना तो रॉ मेटेरियल मिल रहा है और ना ही नए ऑर्डर, सिर्फ लोकल के सहारे ही उनकी फैक्ट्रियां चल रही हैं.
50 प्रतिशत हैंडलूम का काम बंद
वहीं फैक्ट्री मालिकों का कहना है कि सरकार द्वारा 20 लाख करोड़ रुपये पैकेज देने की बात कही, लेकिन उनको कुछ नहीं मिल रहा है. ना तो सरकार ने हैंडलूम व्यापार के लिए कोई योजना बनाई और नहीं मजदूर वर्ग को कोई राहत थी. जिसकी वजह से पानीपत में 50 प्रतिशत हैंडलूम उद्योग बंद हो गया है. साथ ही फैक्ट्री मालिकों ने सरकार से लोन मुहैया कराकर उस पर सब्सिडी की मांग की है, जिससे कि वो इस घाटे से उभर सकें.
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सरकार लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के तमाम दावे तो कर रही है, लेकिन उस दिशा में काम होता नहीं दिख रहा है. जिस देश में मजदूर कृषि के बाद सबसे ज्यादा हैंडलूम उद्योग पर निर्भर हैं. अगर वो ही बंद होने की कगार पर पहुंच जाए तो, कैसे आत्मनिर्भर भारत को मजबूती मिलेगी?