पानीपत: उम्र के जिस पड़ाव में लोग अपने घरों में आराम से रहना चाहते हैं, उस उम्र में जिंदगी जीने के लिए 91 साल के एक बुजुर्ग कुली किशनचंद आज भी रेलवे स्टेशन पर लोगों का बोझ ढो रहे हैं. ईटीवी की इस खास रिपोर्ट में हम एक ऐसे खुद्दार इंसान से रूबरू करवा रहे हैं, जिसने जिंदगी की शुरुआत इसी रेलवे स्टेशन पर की और जिंदगी के आखिरी पड़ाव में भी इसी रेलवे स्टेशन पर आज भी काम करते हैं. पुराने समय का हर इंसान कुली किशनचंद को जानता है और इनकी ईमानदारी की प्रशंसा भी करता है.
किशनचंद बताते हैं कि वह बंटवारे से पहले पाकिस्तान खेलैया जिले में रहते थे. बंटवारा जिस वक्त हुआ हिंदुस्तान के टुकड़े हुए तो वह पाकिस्तान से चलकर भारत में आए. उन्होंने खूनी मंजर अपनी आंखों से देखा पाकिस्तान से पानीपत आए किशनचंद के परिवार ने पहला कदम पानीपत के स्टेशन पर ही रखा. उस वक्त किशनचंद की उम्र लगभग 15 साल थी.
घर बार ना होने की वजह से अपना घर स्टेशन को ही समझ लिया, बेघर हालत और पेट की आग को काम की तलाश थी. तो उन्होंने स्टेशन पर ही कुली का काम शुरू कर दिया. 1947 में आठ नंबर कुली किशनचंद की जिंदगी यहीं से शुरू हो गई और उस वक्त की मजबूरी उनका व्यवसाय बन गई. आज किशनचंद 91 साल के हो चुके हैं और घर की मजबूरियों के चलते आज भी लोगों का बोझ उठा रहे हैं.
91 साल की उम्र में किशन चंद की लड़खड़ाती जुबान और कांपते हाथ आज भी ईमानदार और खुद्दारी की ही गवाही देते हैं. किशनचंद इतने खुद्दार इंसान हैं कि पानीपत में पैर रखने के बाद उन्होंने कुली का काम शुरू कर दिया था. यहीं, 35 वर्ष की उम्र में उनकी शादी हुई और उनकी एक बेटी और चार बेटे हैं. लेकिन चार बेटों के होने के बावजूद भी वह अपना खर्च स्वयं ही कुली का काम कर निकाल रहे हैं. किशन चंद ने बताया कि उनके चारों बेटे मेहनत मजदूरी करते हैं परंतु उन्होंने कभी अपने बेटों के सामने हाथ नहीं फैलाया और वह सुबह 8 बजे रेलवे स्टेशन पर पहुंच जाते हैं और रात 9 बजे तक रेलवे स्टेशन पर ही कुली का काम करते हैं.
कुली किशनचंद बताते हैं कि जिस वक्त कोयले के इंजन चलते थे और दिल्ली से चलकर आने वाली ट्रेन में कोयला डालने वाला फायरमैन थक जाता था. तो उन्हें एक रुपए के हिसाब से अंबाला तक कोयला डालने की मजदूरी पर रख लिया जाता था. कई सरकारें आई और गई आज तक किसी का ध्यान उनके ऊपर नहीं गया. जब लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान रेल मंत्री बने तो उन्होंने कुली को रेलवे में नौकरी देने का प्रस्ताव पास कर दिया. लेकिन नौकरी उन कुलियों को दी गई जिनकी उम्र 50 साल से कम थी.
जिस वक्त यह प्रस्ताव पास हुआ किशनचंद की उम्र 50 साल हो चुकी थी. तो उन्हें कोई सरकारी सहायता नहीं मिली. आज भी किशन चंद सालाना 90 रुपये देकर अपने लाइसेंस को रिन्यू करवाते हैं और अपना कुली का काम बड़ी शिद्दत, ईमानदारी और लगन से करते हैं. जब हमने उनसे पूछा कि आप इस उम्र में बोझ कैसे उठा पाते हैं. तो उन्होंने बड़ी शालीनता से जवाब दिया कि बोझ नहीं उठाएंगे तो कटोरा उठाएंगे.
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जब किशनचंद को कोई सवारी उनकी उम्र देखकर ज्यादा पैसे देने की पेशकश करता है, तो वह उन्हें उनकी मेहनत के पैसे देने की ही बात करते हैं. आज वह दिन में 100 रुपये से 200 रुपये की दिहाड़ी लिए जद्दोजहद कर रहे हैं और उन्होंने पानीपत स्टेशन पर एक आना दो आना से अपना कार्य शुरू किया था. किशनचंद बताते हैं कि कभी-कभी उनकी दिहाड़ी 400 रुपये तक चली जाती है. और कभी तो स्टेशन पर पूरा दिन ही खाली निकल जाता है.