चंडीगढ़: आमतौर पर फिजिकल चैलेंज्ड यानी दिव्यांग लोग खुद को असमर्थ समझने लगते हैं. ज्यादातर लोग ये मान लेते हैं कि जिंदगी का कोई लक्ष्य बाकी नहीं रह गया है. ऐसे में अगर कोई बच्चा दिव्यांग होता है तो सोचिए वो बच्चा खुद को कितना कमतर समझेगा, ऐसे ही बच्चों के लिए फरिश्ता बनकर सामने आई हैं हरियाणा पुलिस में समाजिक सेवाएं दे रही रेनू माथुर (Panchkula Renu Mathur Welfare For Disabled Childs). ईटीवी भारत की टीम ने आज विश्व दिव्यांग दिवस (world disabled day) के मौके पर रेनू माथुर और उन बच्चों से मुलाकात की, जिनके कल्याण के लिए रेनू माथुर काम करती है.
रेनू माथुर पंचकूला के महिला थाने में समाजिक सेवा कर रही हैं. रेनू अपने काम के साथ विशेष रूप से फिजिकली चैलेंज्ड बच्चों के लिए काम (Renu Mathur Inspirational Work) करती हैं. जिन बच्चों के लिए वह काम कर रही हैं, वो बच्चे ना सिर्फ आज सामान्य जीवन बिता रहे हैं, बल्कि सामान्य बच्चों से आगे बढ़कर दुनिया भर में अपनी प्रतिभा का लोहा भी मनवा रहे हैं. ये बच्चे अपनी शारीरिक कमियों को पीछे छोड़ कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलों के जरिए अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं.
रेनू माथुर का कहना है कि कुछ साल पहले तक लोग ऐसे बच्चों को लेकर जागरुक नहीं थे. माता-पिता में भी जागरुकता की कमी थी. जिस वजह से बच्चे घर में पड़े-पड़े अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे, लेकिन अब धीरे-धीरे लोग जागरूक हो रहे हैं. उन्होंने कहा मैं इन बच्चों के लिए एक लड़ाई लड़ रही हूं, जिसका मकसद है कि इन बच्चों को भी दूसरे बच्चों की तरह समान अधिकार मिले. दिव्यांग बच्चों को समाज में शिक्षा और नौकरियों के अवसर मिले. सभी के समान ही सैलरी मिले.
रेनू माथुर ने बताया कि उनके साथ जुड़े बच्चे खेलों में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. दिव्यांग बच्चों को खेलों में भी दूसरे बच्चों की तरह अच्छी ट्रेनिंग मिले और बेहतर सुविधाएं मिलें. हालांकि कुछ शारीरिक सीमाएं हैं, लेकिन फिर भी यह बच्चे सामान्य बच्चों से बिल्कुल भी कम नहीं है.
दिव्यांग खिलाड़ी ऊषा ने बताया कि वो रनिंग, क्रिकेट, बास्केटबॉल, फुटबॉल जैसे कई खेलों में हिस्सा लेती हैं और वह राष्ट्रीय स्तर पर भी खेल चुकी हैं. सलीम ने भी बताया कि वह रनिंग और क्रिकेट खेलता है. रनिंग में वो राष्ट्रीय खिलाड़ी है. दिल्ली में हुए राष्ट्रीय खेलों में उसने कांस्य पदक जीता था, जबकि लुधियाना के राष्ट्रीय खेलों में उसने दो रजत पदक और एक कांस्य पदक जीता है. सलीम ने कहा कि वह हर रोज रनिंग की प्रैक्टिस करता है और दुनिया में अपना नाम करना चाहता है.
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खिलाड़ी जतिन ने का कहना है कि वह स्पेशली एबल्ड होने के बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खिलाड़ी बन चुका है. साल 2019 में उसने साउथ अफ्रीका में हुई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था. इसके अलावा वह अन्य कई प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा ले चुका है, जतिन ने कहा कि सरकार उनके लिए अच्छा काम कर रही है, लेकिन उन्हें अभी तक इतनी सुविधाएं नहीं मिल पा रही है. सामान्य बच्चों को मिलती है. अगर उन्हें भी सामान्य बच्चों की तरह सुविधाएं दी जाए तो वह खेलों में और अच्छा प्रदर्शन कर देश का नाम रोशन कर सकते हैं.
जतिन की माता सरोज बिश्नोई ने बताया कि जतिन जन्म से ही स्पेशली एबल्ड चाइल्ड था, लेकिन धीरे-धीरे जतिन ने उन सब चुनौतियों से आगे बढ़ते हुए अपने लिए जीने की एक रहा बनाई. खेलों में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहा है. सरोज बिश्नोई ने कहा कि बहुत से माता-पिता ऐसे हैं, जिन्हें यह नहीं पता कि वह ऐसे बच्चों का पालन पोषण कैसे करें और उन्हें जिंदगी में कैसे आगे बढ़ाए.
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उन्होंने कहा कि ऐसे बच्चों के लिए बहुत-सी संस्थाएं और बहुत से लोग हैं जो इन्हें जीने की दिशा दे सकते हैं और जिंदगी में आगे बढ़ने में सहायता कर सकते हैं. ऐसे बच्चों के माता-पिता को निराश नहीं होना चाहिए और इन बच्चों का पालन पोषण सामान्य बच्चों की तरह करना चाहिए. यह बच्चे सामान्य बच्चों के बराबर ही अपनी प्रतिभा समाज को दिखा सकते हैं.
रेणु माथुर ने कहा कि इन बच्चों को डिसएबल कहना बिल्कुल गलत है. उन्होंने कहा कि दुनिया में लाखों दिव्यांग बच्चे हैं, जिन्हें समाज के तिरस्कार का सामना करना पड़ता है. इन बच्चों को दूसरों से कम आंका जाता है. यह बच्चे उपहास का विषय बनते हैं. समाज इन्हें एक समान दृष्टि देखने की बजाए दया भावना से देखता है, लेकिन कोई इनकी प्रतिभा को नहीं समझता. रेनु माथुर ने कहा कि हमारा प्रयास है कि इन बच्चों के लिए समाज की सोच बदली जाए और इन्हें भी समाज में वह स्थान दिया जाए जो एक सामान्य बच्चे को मिलता है.
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