पंचकूला: भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर हर साल 5 सितंबर को टीचर्स-डे मनाया जाता है. लेकिन इस बार कोरोना महामारी की वजह से इस बार टीचर्स डे शायद कुछ फीका रह सकता है.
कोरोना महामारी के चलते इस बार शिक्षण संस्थान बंद है. ऐसे में ईटीवी भारत ने उन टीचर्स से बातचीत की जिन्होंने कोरोना काल जैसी आपदा में अपना सब कुछ न्योछावर किया. बच्चों की पढ़ाई हो या जरूरतमंदों की सेवा. वो हर चीज में आगे रहे.
ऐसे ही एक टीचर हैं नंदकिशोर वर्मा. जो शिक्षा सदन में सहायक निदेशक शैक्षणिक प्रकोष्ठ के पद पर कार्यरत हैं. नंदकिशोर वर्मा ने ईटीवी भारत हरियाणा से बातचीत में बताया कि कोविड-19 के दौरान सबसे ज्यादा शिक्षा जगत प्रभावित हुआ, जिससे बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई है.
बच्चों को पढ़ाने के लिए दी ऑनलाइन शिक्षा
उन्होंने बताया कि लॉक डाउन के बाद परीक्षाएं रद्द हो चुकी थी, तभी विद्यालय शिक्षा विभाग हरियाणा की ओर से शिक्षा विभाग के एकेडमिक सेल के साथ मिलकर 12 अप्रैल से ही शिक्षा को बच्चों तक पहुंचाने के लिए एजुसेट के माध्यम से पढ़ने की प्रक्रिया को उन्होंने तैयार किया और फिर बच्चों तक पहुंचाने का प्रयास किया.
उन्होंने बताया कि जब उन्हें लगा कि पाठ्य पुस्तकें बच्चों तक जल्दी नहीं पहुंच पाएंगी तो विभाग ने पुरानी परंपरा को देखते हुए एक ऐसा माहौल गांव और शहर में तैयार किया, जिसमें जो विद्यार्थी कक्षा एक से कक्षा दो में चले गए थे, तो विभाग ने पारस्परिक पाठ्य पुस्तकाओं का वितरण करने का जिम्मा स्कूलों को दिया.
80% बच्चों को पहुंचाई किताबें
जिससे लगभग 80% बच्चों के पास पुरानी पाठ्य पुस्तकें पहुंच गई. जिसकी मदद से बच्चों को बहुत लाभ होने लगा. उन्होंने बताया कि इसके अलावा वो खुद लगातार इस प्रयास में लगे रहे कि घर-घर तक बच्चों के लिए मिड डे मील पहुंचाया जा सके और इसमें भी हरियाणा शिक्षा विभाग के टीचर्स ने महत्वपूर्ण काम किया.
नंदकिशोर वर्मा ने बताया कि उन्होंने अपनी मर्जी से भी बच्चों की पढ़ाई के लिए अनुदान दिया, ताकि जरूरत मंद बच्चों के पास शिक्षा के लिए पुस्तकें पहुंचे और उनकी शिक्षा बाधित ना हो. सहायक निदेशक शैक्षणिक प्रकोष्ठ नंदकिशोर वर्मा ने बताया कि 24 मार्च से लॉकडाउन लगने के बाद से आज तक वे और उनका विभाग कहीं नहीं रुका. उन्होंने व्हाट्सएप और विभिन्न चैनल्स के माध्यम से बच्चों तक शिक्षा पहुंचाने का लगातार प्रयास किया.
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उन्होंने बताया कि लॉक डाउन के दौरान उन्होंने बच्चों तक शिक्षा पहुंचाने के लिए शिक्षा के कामों को कहीं पर भी रुकने नहीं दिया. जिसके चलते 10वीं के और 12वीं के परिणाम अच्छे आए, जो कि लगभग प्राइवेट स्कूलों के बराबर रहे. उन्होंने बताया कि इसी का नतीजा है कि 12वीं के टॉपर चाहे साइंस स्ट्रीम के हों या आर्ट्स के हों, सभी के सभी राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों से रहें.